Feb ०७, २०२२ १९:०८ Asia/Kolkata

सूरए साद आयतें 29-33

 

كِتَابٌ أَنْزَلْنَاهُ إِلَيْكَ مُبَارَكٌ لِيَدَّبَّرُوا آَيَاتِهِ وَلِيَتَذَكَّرَ أُولُو الْأَلْبَابِ (29)

इस आयत का अनुवाद हैः

यह बरकतों वाली किताब है जिसे हमने तुम्हारे पास भेजा है कि वे इसकी आयतों पर सोच-विचार करें और समझदार इससे पाठ लें। [38:29]

पिछले कार्यक्रम में हमने बताया कि मख़लूक़ को पैदा करने की व्यवस्था भी और सज़ा या पुरस्कार देने का सिस्टम भी दोनों न्याय पर केन्द्रित हैं। इसलिए अल्लाह नेक और बुरे लोगों को एक नज़र से नहीं देखता। यह आयत इसी बात को आगे बढ़ाते हुए कहती है कि क़ुरआन वह किताब है जिसे रचना और पैदाइश के उद्देश्य को बयान करने के लिए उतारा गया है और यह सारे इंसानों के उत्थान का माध्यम है। अलबत्ता जो लोग इसके बारे में चिंतन करेंगे और उसकी आयतों को समझने के लिए विवेक का इस्तेमाल करेंगे वही ईश्वरीय निर्देशों की गहराई को, जो तत्वदर्शिता में डूबे हुए होते हैं, समझ सकते हैं और कामयाब व सौभाग्यशाली ज़िंदगी हासिल कर सकते हैं। क्योंकि जो लोग अल्लाह और ख़ुद अपने वजूद से ग़ाफ़िल हैं वह दरअस्ल मुर्दा लोग हैं चाहे ज़ाहिरी तौर पर वह ज़िंदा ही क्यों न हों और उनका शरीर विकास ही क्यों न कर रहा हो।

इस आयत से हमने सीखाः

क़ुरआन नाज़िल किए जाने का उद्देश्य इसकी आयतों में चिंतन मनन है। हालांकि इसकी तिलावत से भी इंसान की ज़िंदगी में बड़ी बरकतें आती हैं।

कुछ लोगों को लगता है कि अल्लाह के संदेश वहि उतरने वाली बात समझ से परे है लेकिन हक़ीक़त यह है कि वहि पूरी तरह तर्कपूर्ण और विवेकपूर्ण विषय है। क़ुरआन में ऐसा कुछ है ही नहीं जो बुद्धि से मेल न खाता हो। दरअस्ल वहि इसलिए नाज़िल की गई कि इंसान की बुद्धि का विकास हो अक़्ल को स्थगित करने या उसका विरोध करने के लिए नहीं।

अक़्लमंद लोग क़ुरआन की आयतों पर ग़ौर करके उसमें छिपे रहस्यों को जान लेते हैं।

अब आइए सूरए साद की आयत 30 से 33 तक की तिलावत सुनते हैं,

وَوَهَبْنَا لِدَاوُودَ سُلَيْمَانَ نِعْمَ الْعَبْدُ إِنَّهُ أَوَّابٌ (30) إِذْ عُرِضَ عَلَيْهِ بِالْعَشِيِّ الصَّافِنَاتُ الْجِيَادُ (31) فَقَالَ إِنِّي أَحْبَبْتُ حُبَّ الْخَيْرِ عَنْ ذِكْرِ رَبِّي حَتَّى تَوَارَتْ بِالْحِجَابِ (32) رُدُّوهَا عَلَيَّ فَطَفِقَ مَسْحًا بِالسُّوقِ وَالْأَعْنَاقِ (33)

इन आयतों का अनुवाद हैः

और हमने दाऊद को सुलैमान (जैसा बेटा) प्रदान किया। बेहतरीन बंदा अल्लाह की बारगाह की ओर बार बार उन्मुख होने वाला। [38:30] उल्लेखनीय है वह मौक़ा जब शाम के वक़्त उसके सामने ख़ूब सधे हुए तेज़ रफ़तार घोड़े पेश किए गए। [38:31] तो उसने कहा, "मैंने इस माल का प्रेम अपने रब की याद के कारण अपनाया है।" यहाँ तक कि जब वे (घोड़े) निगाह से ओझल हो गए [38:32] (तो उसने हुक्म दिया) "उन्हें मेरे पास वापस लाओ!" फिर वह उनकी पिंडलियों और गरदनों पर हाथ फेरने लगा [38:33]

यह आयतें शुरू में हज़रत दाऊद के बेटे हज़रत सुलैमान की पैदाइश की ख़बर देती हैं। वह बेटा जो ख़ुद भी अपने पिता की तरह अल्लाह के नेक बंदे थे और हमेशा अल्लाह की बारगाह से ख़ुद को जुड़ा रखते थे।

इसके बाद हज़रत सुलैमान के विशाल और महान शासन, उनकी सेना और तेज़ रफ़तार घोड़ों का उल्लेख किया गया है। आयत कहती है कि जब हज़रत सुलैमान के सामने घुड़सवारों की क़तारें गुज़र रही थीं तो घमंड में पड़ने के बजाए और यह सोचने के बजाए कि उनके पास काफ़ी ताक़त मौजूद है, यह कहा कि मैं अल्लाह की ख़ातिर इन घोड़ों को चाहता हूं ताकि यह समाज की सुरक्षा का साधन और दुश्मनों से जेहाद में मददगार बनें।

हज़रत सुलैमान दौड़ते घोड़ों को उस वक़्त तक ताकते रहे जब तक वे नज़रों से दूर नहीं हो गए। उन्होंने आदेश दिया कि घोड़ों को एक बार फिर उनके सामने से गुज़ारा जाए। इस बार वह ख़ुद घोड़ों के स्वागत के लिए गए, उन्हें प्यार किया उनके सर और गरदन पर हाथ फेरा। जैसे आम तौर पर घोड़ों के मालिक घोड़े से उतरने के बाद करते हैं। यह दरअस्ल घोड़ों से अपने लगाव के इज़हार करने और सराहने का एक तरीक़ा था।

अलबत्ता कुछ ग़लत रिवायतों की बुनियाद पर इन आयतों की अलग रूप में भी व्याख्या की गई है और इस घटना के बारे में हज़रत सुलैमान को लेकर कुछ ग़लत बातें कही गई हैं।

जैसे कुछ रिवायतों में कहा गया है कि हज़रत सुलैमान घोड़ों का तमाशा देखने में इतना खो गए कि सूरज डूब गया और अस्र की नमाज़ उन्होंने नहीं पढ़ी। फिर उन्होंने अल्लाह से प्रार्थना की कि वह सूरज को पलटा दे ताकि वह अस्र की नमाज़ पढ़ सकें। यह कैसे कल्पना की जा सकती है कि हज़रत सुलैमान अपने लशकर को देखने में इतना खो जाएं कि नमाज़ पढ़ना भूल जाएं और सूरज डूब जाए?

ज़ाहिर है कि इस तरह की बातें ग़लत हैं। यह काम तो एक आम इंसान भी नहीं करता तो अल्लाह के ख़ास और चुने हुए बंदे की तो बात ही अलग है। अल्लाह ने इन्हीं आयतों में हज़रत सुलैमान को अपना नेक बंदा और तौबा करने वाला बंदा कहकर सराहा है। अतः यह बातें आयत में कही गई बातों से बिल्कुल मेल नहीं खातीं।

इन आयतों से हमने सीखाः

इंसान का सबसे ऊंचा स्थान अल्लाह की बंदगी और अल्लाह की बारगाह से जुड़े रहना है। इसीलिए क़ुरआन ने बार बार पैग़म्बरों के बारे में अब्द का शब्द इस्तेमाल किया है जिसका अर्थ होता है बंदा।

सुरक्षा की ज़िम्मेदारी संभालने वालों पर ख़ास तवज्जो समाज के शासकों की ज़िम्मेदारी है। इसलिए परेड करवाना और लश्कर तथा जंग के साधनों का मुआइना करना अच्छा अमल है। इसलिए कि समाज के शासकों को यह पता होना ज़रूरी है कि उनके पास लड़ाई के क्या संसाधन मौजूद हैं ताकि वह दुश्मन का सामना कर सकें।

सत्ता अगर अल्लाह के ख़ास बंदों और नेक इंसानों के हाथ में हो अत्याचार और अन्याय नहीं होता। क्योंकि वह शासन और ताक़त का इस्तेमाल केवल अल्लाह की ख़ुशी के लिए करते हैं।

 

 

 

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