क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-847
सूरए साद आयतें 34-38
وَلَقَدْ فَتَنَّا سُلَيْمَانَ وَأَلْقَيْنَا عَلَى كُرْسِيِّهِ جَسَدًا ثُمَّ أَنَابَ (34) قَالَ رَبِّ اغْفِرْ لِي وَهَبْ لِي مُلْكًا لَا يَنْبَغِي لِأَحَدٍ مِنْ بَعْدِي إِنَّكَ أَنْتَ الْوَهَّابُ (35)
इन आयतों का अनुवाद हैः
निश्चय ही हमने सुलैमान को भी परीक्षा में डाला। और हमने उनके तख़्त पर (उनके बेटे का) निर्जीव सा शरीर डाल दिया। फिर वह विनती करने लगे [38:34] उन्होंने कहा, "ऐ मेरे रब! मुझे क्षमा कर दे और मुझे वह राज्य प्रदान कर, जो मेरे पश्चात किसी के लिए शोभनीय न हो। निश्चय ही तू बड़ा दाता है।" [38:35]
पिछले कार्यक्रम में हज़रत सुलैमान पर अल्लाह के ख़ास करम की चर्चा की गई। अब इन आयतों में हज़रत सुलैमान की एक कड़ी परीक्षा का उल्लेख किया गया है। अलबत्ता परीक्षा क्या थी इसको विस्तार से आयतों में बयान नहीं किया गया है इसलिए हम इस बारे में जो रिवायतें उनमें से सबसे अधिक तार्किक रिवायत है को बयान करेंगे।
हज़रत सुलैमान की यह आरज़ू थी कि उनकी अनेक संतानें हों ताकि वह उनमें सबसे बहादुर और योग्य पुत्र को अपना उत्तराधिकारी बनाएं और वह हज़रत सुलैमान के बाद उनका शासन संभाले। लेकिन चूंकि इस आरज़ू में उनका ध्यान अल्लाह की तरफ़ से भटका और उन्होंने अल्लाह पर भरोसा रखने के बजाए और अल्लाह की इच्छा पर अमल करने के बजाए अपनी इच्छा और अपने इरादे पर ध्यान दिया तो अल्लाह ने उनके साथ कड़ाई बरती नतीजा यह हुआ कि उनकी पत्नियों में से किसी के यहां कोई संतान न हुई। बस एक संतान हुई जो अपंग थी और जिसे निर्जीव शरीर की तरह उनके सामने लाकर रख दिया गया। यह देखा तो हज़रत सुलैमान को अपनी ग़लती का एहसास हुआ कि वह अल्लाह की तरफ़ से ग़ाफ़िल हुए और संतान का मोह दिल में बसाया तो अल्लाह ने उन्हें इस कड़े इम्तेहान में डाल दिया। अब उन्होंने अपनी ग़फ़लत की वजह से तौबा की और अल्लाह की बारगाह का सहारा लिया।
कुछ रिवायतों में आया है कि ख़ुद हज़रत सुलैमान गंभीर रूप से बीमार हो गए और निर्जीव शरीर की तरह अपने तख़्त पर लेट गए। आयतों में आगे कहा गया है कि अल्लाह की बारगाह में तौबा करने और माफ़ी मांगने के बाद अल्लाह से उन्होंने दुआ की कि उनके राज में कोई असाधारण घटना हो जो अन्य पैग़म्बरों के चमत्कार की तरह उनकी पैग़म्बरी की दलील बने। वह घटना हो जो किसी अन्य हुकूमत में कभी न हुई हो ताकि इस पहलू से हज़रत सुलैमान का शासन दूसरे सभी शासनों से अलग हो।
इन आयतों से हमने सीखाः
इम्तेहान अल्लाह की परम्पराओं में से एक है जिससे आत्मा में नई ज्योति पैदा होती है और बंदे को अल्लाह का सामिप्य हासिल होता है। इसलिए सभी इंसानों यहां तक कि पैग़म्बरों और अल्लाह के ख़ास बंदों का भी इम्तेहान होता है और इससे कोई अपवाद नहीं है।
कुछ पैग़म्बरों ने आम इंसानों को उपदेश देने और मार्दर्शित करने के साथ ही शासन का गठन भी किया अतः इन दोनों ज़िम्मेदारियों में कोई विरोधाभास नहीं है।
दुआ में हमें छोटी छोटी चीज़ें मांगने के बजाए हज़रत सुलैमान की तरह बड़े उद्देश्यों की पूर्ति की कोशिश करना चाहिए हौसले बुलंद होने चाहिए और महत्वपूर्ण चीज़ों की दुआ मांगनी चाहिए।
अब आइए सूरए साद की आयत संख्या 36 से 38 तक की तिलावत सुनते हैं,
فَسَخَّرْنَا لَهُ الرِّيحَ تَجْرِي بِأَمْرِهِ رُخَاءً حَيْثُ أَصَابَ (36) وَالشَّيَاطِينَ كُلَّ بَنَّاءٍ وَغَوَّاصٍ (37) وَآَخَرِينَ مُقَرَّنِينَ فِي الْأَصْفَادِ (38)
इन आयतों का अनुवाद हैः
तब हमने वायु को उनके लिए वशीभूत कर दिया, जो उनके आदेश से, जहाँ वह पहुँचना चाहते, सरलतापूर्वक चलती थी [38:36] और शैतानों को भी (वशीभुत कर दिया), प्रत्येक निर्माता और ग़ोताख़ोर को [38:37] और दूसरों को भी जो ज़जीरों में जकड़े हुए रहते [38:38]
यह आयतें बताती हैं कि हज़रत सुलैमान की तमन्ना पूरी हुई और अल्लाह ने उन्हें ख़ास ताक़त और अधिकार प्रदान किए जो उनसे पहले किसी भी सरकार में किसी भी शासक को नहीं मिले थे। यह ताक़त चमत्कारी थी जिससे साफ़ ज़ाहिर था कि यह अल्लाह की ख़ास देन है और हज़रत सुलैमान की हुकूमत अल्लाह की प्रदान की हुई ख़ास हुकूमत है।
अल्लाह ने हज़रत सुलैमान को सबसे पहले जो ख़ास चीज़ प्रदान की वह यह थी कि हवा को उनकी सवारी बना दिया। हवा हज़रत सुलैमान का तख़्त उठाती थी और वह जहां जाना चाहते थे पहुंचाती थी। आजकल के हवाई जहाज़ की तरह वह आसमान में सफ़र करते थे और बहुत लंबी दूरी बेहद कम समय में तय कर लेते थे।
अल्लाह ने हज़रत सुलैमान को दूसरी बेहद ख़ास चीज़ यह प्रदान की कि जिन्नातों को उनके अधीन कर दिया जो अलग अलग तरह की सेवाएं करते थे। इन आयतों के अनुसार जिन्नात रूपी शैतान भी हज़रत सुलैमान के अधीन थे। जिन्नातों का एक गिरोह पुल और बांध बनाने जैसे निर्माण कार्य करते थे। जिन्नातों का एक गिरोह समुद्रों के भीतर पानी में सेवारत रहता था।
जिन्नातों का एक गिरोह ऐसा भी था जो अवज्ञा करता था जिसे जेलों में डाल दिया गया था और अन्य क़ैदियों की तरह उन्हें भी हथकड़ियां और बेड़ियां पहनाई गई थीं।
इस तरह अल्लाह ने अपनी कृपा से और चमत्कार दिखाते हुए सारी प्राकृतिक शक्तियों, इंसानों और जिन्नातों को हज़रत सुलैमान के अधीनस्थ कर दिया था।
इन आयतों से हमने सीखाः
जिन्नातों के पास अक़्ल समझ और महारत होती है। इसलिए इंसान अपने कुछ कामों को अंजाम देने के लिए जिन्नातों की मदद भी ले सकता है।
देश और शासन का इंतेज़ाम चलाने और बड़ी परियोजनाओं को पूरा करने के लिए माहिर श्रमबल का इस्तेमाल ज़रूरी है।
जो लोग या समूह समाज को नुक़सान पहुंचाते हैं और सामाजिक व्यवस्था में विघ्न डालते हैं इन्हें गिरफ़तार करके निगरानी में रखना चाहिए। यानी वही काम जो हज़रत सुलैमान ने बाग़ी जिन्नातों के साथ किया।