Mar ०६, २०१९ १७:१३ Asia/Kolkata

धार्मिक स्थलों का निर्माण हमेशा कलाकारों की आस्था और उनकी श्रद्धा का प्रतीक रहा है ।

इस्लाम धर्म में हर मुसलमान का एक कर्तव्य , पांच वक्त की नमाज़ पढ़ना है। नमाज़ का समय निर्धारित है और उस निर्धारित समय में अज़ान दी जाती है अज़ान में वास्तव में मुसलमानों को नमाज पढ़ने का आहवान करते हुए इस कर्तव्य की याद दिलायी जाती है। अज़ान विभिन्न रूपों और स्वरों में दी जाती है। यूं तो अज़ान कोई भी दे सकता है किंतु जहां मस्जिद होती है वहां किसी एक व्यक्ति को अज़ान के लिए रखा जाता है जो पांच समय अज़ान देकर लोगों को नमाज़ के लिए बुलाता है।

 

मीनार वास्तव में बुर्जियों की भांति बनाए जाते थे और इसे सड़कों के किनारे रोशनी के लिए या फिर किलों में पहरेदारी के लिए बनाया जाता था किंतु अब , मीनार, मस्जिद निर्माण और इस्लामी वास्तु कला का अभिन्न अंग बन चुका है। वैसे इस्लाम से पहले भी उपासना स्थलों में छोटे और वर्गाकार मीनारे बनाए जाते रहे हैं लेकिन मुसलमान शिल्पकारों ने उसका रूप पूरी तरह से बदल  दिया और उसकी लंबाई बढ़ा कर उसकी उपयोगिता को विस्तृत कर दिया। सब से पहला मीनारा सन 45 हिजरी कमरी अर्थात 665 ईसवी में इराक़ के बसरा नगर की जामा मस्जिद में बनाया गया। उसके बाद से इस्लामी देशों में मस्जिदों में मीनार बनाने का चलन आम हुआ।

 

 

ईरान में मीनारों का निर्माण, इस्लामी काल से पहले से था। रेगिस्तानों  में यात्रियों के मार्गदर्शन के लिए इस प्रकार के मीनारे बनाए जाते थे जो किसी सीमा तक वर्तमान मीनारों से मिलता जुलता था। इन मीनारों पर आग जलायी जाती थी ताकि उसके प्रकाश के सहारे लोग रास्ता खोज लें लेकिन इस्लाम के बाद इस प्रकार के मीनारे , मस्जिदों में बनाए जाने लगे ताकि लोगों का इस पवित्र स्थल की ओर मार्गदर्शन हो सके।

 

 

मीनार मुख्य रूप से चार भागों पर आधारित होते हैं। चौकोर , छे या बारह कोणों में शंकुवाकार खंभा , चौकोर या अष्टकोण में ऊपरी भाग और अंत में छत  बनायी जाती है। पूरे इस्लामी जगत में मीनारों का निर्माण प्रायः इसी शैली में होता है अलबत्ता हर क्षेत्र में स्थानीय कला की झलक भी उसमें शामिल रहती है। उदाहरण स्वरूप उत्तरी अफ्रीका में मीनारे विशाल और चौकोर होते हैं जबकि मिस्र में कई मंज़िला और तुर्की में पेंसिल की तरह कई बालकनियों के साथ बनाए जाते हैं और ईरान में पतले और शंकुवाकार किंतु बेहद ऊंचे और खूबसूरत छत के साथ बनाए जाते हैं। चूंकि मीनारे पतले और ऊंचे होते हैं इस लिए उसके निर्माण में नींव का बेहद महत्व होता है क्योंकि यदि  नींव कमज़ोर हुई और वह धंस गयी तो पूरा मीनारा गिर जाता है इसी लिए नींव के लिए उस समय तक खुदाई की जाती है् जहां तक कड़ी ज़मीन न मिल जाए, ठोस ज़मीन तक पहुंचने के बाद उसे मसालों और पत्थरों से भर दिया जाता है फिर मीनारे का खंबा बनाया जाता है जो विभिन्न रूपों में होता है। कुछ ईंट से और साधारण रूप में बनाए जाते हैं और उनमें सजावट नहीं होती जबकि कुछ मीनारें एसी बनायी जाती हैं जो बेहद ऊंची और फैली होती हैं और उन पर सजावट भी नज़र आती है। यह मीनारे जैसे जैसी ऊंची होती जाती हैं उनकी चौड़ाई कम होती जाती है।

 

 

 

ईरानी शिल्पकला में जोड़े के महत्व के कारण दो दो मीनार बनायी जाती हैं जिससे मस्जिद के बाहरी हिस्से की खूबसूरती बढ़ती है तथा इसके साथ ही मस्जिद की दीवारों को खिसकने से रोकने में भी दो मीनारों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। विशेषज्ञों का कहना है कि मस्जिद के मुख्य द्वार को बेहद खूबसूरत बनाने का सब से अधिक प्रभावशाली मार्ग यह है कि उसके दोनों तरफ मीनारें बना दी जाएं। इन मीनारों के बीच टेढ़ी मेढ़ी सीढ़ियां होती हैं जो बिल्कुल ऊपरी भाग तक जाती हैं और अज़ान देने वाला इन्ही सीढ़ियों पर चढ़ कर ऊपर पहुंचता है। वैसे कुछ मीनारों में सीढ़ियां बाहर से भी बनायी जाती हैं लेकिन अधिकांश मीनारों में सीढ़ियां भीतर ही बनायी जाती हैं। आप के लिए यह जानना भी रोचक होगा कि यज़्द की जामे मस्जिद , गुलपाएगान की सल्जूक़ी मस्जिद  और , शीराज़ में खान स्कूल के मीनारे , ईरानी मस्जिदों में बनाए जाने वाले सभी मीनारों में अलग स्थान रखते हैं और उन्हें अदभुत शैली से बनाया गया है। इन सभी मीनारों में दो तरह की सीढ़ियां बनायी गयी हैं। एक ऊपर जाने के लिए और दूसरी नीचे आने के लिए । और इन दोनों में कोई संंबंध भी नहीं है। मीनारों में छोटे छोटे रोशनदान हैं जो एक ईंट की जगह के बराबर हैं । इस तरह से मीनार के भीतर रौशनी की व्यवस्था की गयी है।

 

मीनार के ऊपरी हिस्से की चौड़ाई बढ़ा दी जाती है और गोलाकार या चौकोर रूप में वहां अज़ान देने वाले की जगह बनायी जाती है। दो मीटर ऊंचे इस स्थान को नीची दीवारों या धातु से बनी छड़ों द्वारा घेर दिया जाता है। अधिकांश मीनारों को ईंट और चूने से बने मसाले से बनाया जाता है लेकिन सीस्तान जैसे कुछ इलाक़ों में मीनारों को कच्ची ईंटों से भी बनाया जाता है। अतीत में मीनार की ऊंचाई काफी अलग थी। इन मीनारों की ऊंचाई बीस मीटर से शुरु होती थी और कहीं कहीं सौ मीटर तक होती थी। विश्व में सब से ऊंचा मीनार दिल्ली का कुतुब मीनार है जिसकी ऊंचाई 74 मीटर है जिसका चार मीटर तबाह हो चुका है। नये मीनार जो कंकरीट से बनाए जाते हैं अधिक ऊंचे होते हैं इसी प्रकार मक्का में मस्जिदुल हराम के मीनारों की ऊंचाई 90 मीटर है। मीनार में प्रयुक्त  मसाला जितना हल्का होगा उसकी ऊंचाई उतनी ही कम होगी यही वजह है कि लकड़ी के मीनारों की ऊंचाई बीस मीटर तक होती है।

 

 

 

यज़्द की जामा मस्जिद के मीनार, ईरान में बनाए गये मीनारों में अत्याधिक खूबसूरत हैं । इस मस्जिद की इमारत छठी हिजरी कमरी शताब्दी बराबर बारहवीं सदी ईसवीं के बाद से सौ वर्षो के दौरान कई बार बनायी गयी। उसके दो मीनारों की ऊंचाई 52 मीटर है और चौड़ाई लगभग आठ मीटर है। इस की टाइलों का अदभुत डिज़ाइन , फूल पत्तियां , पैड़ पौधे से सजावट और नीले, हरे और भूरे रंगों के प्रयोग ने इन मीनारों को अत्याधिक सौन्दर्य प्रदान कर दिया है। इन मीनारों की ऊंचाई जैसै जैसे बढ़ती जाती है वह पतले होते जाते हैं यज़्द के प्रसिद्ध शिल्पकार मुहम्मद अली देहक़ान बेनारकी इस मस्जिद के बारे में कहते हैं इस मस्जिद और उसके मीनारों के निर्माण में लोहे का प्रयोग नहीं किया गया और पूरा निर्माण कार्य, ईंटों , मिट्टी के गारे और चूने से किया गया है। उसमें टाइलों के काम में भी सभी रंगों का प्रयोग किया गया है और उसके मीनारे और मेहराब ईरानी कला का उत्कृष्ट नमूना हैं। आप को यह भी बताते चलें कि इस मस्जिद को राष्ट्रीय धरोहर के रूप में पंजीकृत किया गया है।

 

ईरान के इस्फहान नगर के निकट बरिसान मस्जिद के मीनारे भी ईरान के प्राचीन मीनारों में से एक हैं जिन पर सन 491 हिजरी क़मरी बराबर 1097 ईसवी की तारीख लिखी है। यह मीनारें गोलाकार हैं और ईंट व चूने से बनाये गये हैं। उनका व्यास छे मीटर और ऊंचाई 36 मीटर है। मीनारों को चौकरे और तिकोनी ईंटों से सजाया गया है। बहुत से विशेषज्ञ इन मीनारों को सलजूक़ी काल में ईंट चुनने की कला का उत्कृष्ट नमूना बताते हैं। फ्रांस के ईरानी कला विशेषज्ञ आंद्रे गेदार  ने बरसियान   मस्जिद को चार ताक़ों वालों अदभुत ईरानी इमारत बताया है। उनका कहना है कि यह मस्जिद ईरानी मस्जिदों में नयी शैली का आरंभ है। इस मस्जिद का कलात्मक निर्माण और उसके खूबसूरत मीनार, ईंटों  से सजावट और मीनारों पर खूबसूरत लिपि में लिखी गयीं क़ुरआने मजीद की आयतों को देख कर हर व्यक्ति मोहित हो जाता है। कूफी लिपि की भांति लिखावट , बरसियान मस्जिद के मीनारों के चारों ओर नज़र आती है जो उसे अत्याधिक सुन्दरता प्रदान कर देती है। (Q.A.)

 

 

 

 

टैग्स