Jun २४, २०१९ १४:४२ Asia/Kolkata

हमने कहा था कि डाक्टर मुस्तफा चमरान ने कुर्दिस्तान और अहवाज़ क्षेत्र में अव्यवस्थित युद्ध का नेतृत्व किया था।

    

उनके नेतृत्व में ही ईरानी शूरवीरों ने क्रांति के विरोधी तत्वों और अतिक्रमणकारी इराकी सैनिकों को आगे बढ़ने से रोक दिया था। उस समय इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ईरान की उच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद में स्वर्गीय इमाम खुमैनी के प्रतिनिधि थे। इसी प्रकार हमने पिछले कार्यक्रम में असंगठित युद्ध में वरिष्ठ नेता की भूमिका की चर्चा की थी।  

हमने यह भी कहा था कि ईरान पर सद्दाम ने जो युद्ध थोपा था उसके पहले वर्ष में इराकी अतिक्रमण से मुकाबले के लिए विभिन्न कारणों से ईरान में एकजुटता नहीं थी। सद्दाम ने जिस समय ईरान पर अतिक्रमण किया था उस समय ईरान की इस्लामी क्रांति को सफल हुए मात्र 19 महीने का समय हुआ था। इस दौरान बहुत से राजनीतिक धड़ों और व्यक्तियों ने इस्लामी क्रांति के संबंध में अपने दृष्टिकोणों की घोषणा नहीं की थी। ईरान की इस्लामी क्रांति स्वर्गीय इमाम खुमैनी के दिशा- निर्देशन में क्रांतिकारी लोगों और जवानों के प्रयासों से सफल हुई। उस समय बहुत से धड़े और राजनेता विभिन्न कारणों व लक्ष्यों से क्रांतिकारियों की पंक्ति में शामिल हो गये थे पर जब इस्लामी क्रांति सफल हो गयी तो उन्होंने अपना वास्तिक लक्ष्य स्पष्ट कर दिया। इस प्रकार सत्ता अपने हाथ में लेने और क्रांतिकारी व इस्लामी व्यवस्था के संस्थापक स्वर्गीय इमाम खुमैनी के निष्ठावान लोगों को हाशिये पर डालने के लिए स्वयं को स्वर्गीय इमाम खुमैनी और क्रांति के मूल्यों के प्रति निष्ठावान लोगों से अलग कर लिया। जिन लोगों ने ऐसा किया उनमें से एक अबुल हसन बनी सद्र था। इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद बनी सद्र ईरान का पहला राष्ट्रपति था। इस प्रकार ईरान के राजनीतिक और सैनिक क्षेत्र के बीच गहरी दराड़ मौजूद थी। इस प्रकार की परिस्थिति में सद्दाम ने ईरान पर हमला किया था और शहीद डाक्टर मुस्तफा चमरान जैसे क्रांतिकारी संघर्षकर्ता ने अव्यवस्थित युद्ध में सद्दाम की अतिक्रमणकारी सेना को ईरान के खुज़िस्तान प्रांत में आगे बढ़ने से रोक दिया था। इसके अतिरिक्त जो लोग देश के विभिन्न क्षेत्रों से खुज़िस्तान की रक्षा के लिए आये थे उन सबको उन्होंने संगठित भी किया। इराक की अतिक्रमणकारी सेना के मुकाबले में ईरान की इस्लामी क्रांति संरक्षक बल सिपाहे पासदारान और सेना सबका संयुक्त उद्देश्य अहवाज़ पर दुश्मन की सेना का नियंत्रण होने से रोकना और उसके आस- पास के दूसरे नगरों को स्वतंत्र कराना था। इराक की बासी सेना के अतिक्रमण के बाद ईरान के दक्षिण से लेकर पश्चिम तक का क्षेत्र रणक्षेत्र में बदल गया। खुर्रमशहर के अलावा खुज़िस्तान प्रांत के दो अन्य शहर सूसंगर्द और हुवैज़ा भी इतिहासिक प्रतिरोध के केन्द्र बन गये थे। सूसंगर को आज़ाद कराने में शहीद चमरान का नाम और हुवैज़ा पर अतिक्रमणकारी सेना का नियंत्रण होने से रोकने में शहीद हुसैन अलमुल हुदा नाम सबसे उपर है। अव्यवस्थित युद्ध में शहीद चमरान का प्रयास एक ओर दुश्मन के ठिकानों पर हमला करना था ताकि उसे आगे बढ़ने से रोक सकें और दूसरी ओर उनका प्रयास शहरों को आज़ाद कराने के लिए संघर्षकर्ताओं के ठिकानों को मज़बूत करना था। सूसंगर्द को आज़ाद कराने के लिए जो कार्यवाही अंजाम दी गयी वह इन कार्यवाहियों में से एक थी और उसे इराक के बासी अतिक्रमणकारियों को बाहर खदेड़ने की दिशा में एक महत्वपूर्ण व निर्णायक कार्यवाही समझा जाता है। यह कार्यवाही 26 आबान 1359 हिजरी शमसी बराबर 17 नवंबर 1980 में आरंभ हुई यानी इराक द्वारा ईरान पर थोपे गये युद्ध के लगभग दो महीने बाद यह कार्यवाही आरंभ हुई थी।

 

डाक्टर मुस्तफा चमरान अपनी यादों में लिखते हैं” हमारी कार्यवाही आरंभ हो चुकी थी। सूसंगर के परिवेष्टन में हमारे जो साथी थे उन्हें देखने के लिए हम बेचैन थे और प्रतिरोध में उनकी तन्हाई की याद हमें सता रही थी हमारी आंखों से आंसू जारी थे। हमें उन संघर्षकर्ताओं की याद आ रही थी जो सूसंगर में थे। लेक्टिनेन्ट फरजी और लेफ्टिनेन्ट इख़वान। उन सबी ने घायलावस्था में कई बार हमसे संपर्क किया था तीन दिनों से उन लोगों ने कुछ नहीं खाया था। सूसंगर नगर को आज़ाद करने के लिए की जाने वाली कार्यवाही तीन ओर से आरंभ की गयी थी। इस अव्यवस्थित युद्ध में सेना, इस्लामी क्रांति संरक्षक बल सिपाहे पासदारान और दूसरे समस्त बलों का लक्ष्य सूसंगर नगर की ओर आगे बढ़ना था। शहीद चमरान का प्रयास अपने साथ लड़ने वाले गुट के साथ सीधे सूसंगर नगर में प्रवेश करना था। इस बारे में डाक्टर मुस्तफा चमरान लिखते हैं" हमने हर क्षण अपनी गति में वृद्धि की। अचानक हमने एक टैंक को देखा जो उत्तर से तेज़ी से हमारी ओर आ रहा था। हमने अपने जवानों को मोर्चा संभालने का आदेश दिया। इस बीच हमने अपने एक जवान को आरपीजी लेकर इस टैंक को लक्ष्य बनाने के लिए भेजा। टैंक एक क्षण के लिए अपनी गति को आहिस्ता किया। एसा लगा कि वह ईरानी जवानों के वहां पर होने को समझ गया था कुछ क्षण बीतने के बाद उसने अपनी गति अधिक कर दी और पूरी गति के साथ सूसंगर के रास्ते से चला गया और दक्षिण की ओर भाग गया। जिस जवान को आरपीजे के साथ टैंक को लक्ष्य बनाने के लिए भेजा था उसका प्रयास विफल हो गया।“

इस प्रकार की कठिन परिस्थिति में डाक्टर मुस्तफा चमरान ने थल सेना के कमांडर जनरल फल्लाही का आह्वान किया कि तोपखानों, हेलीकाप्टरों और युद्धक विमानों से दुश्मन के लक्ष्यों को निशाना बनाया जाये।

जनरल फल्लाही को डाक्टर मुस्तफा चमरान की मांग पूरा करने के लिए बहुत सी सीमितताओं का सामना था पर उन्होंने अंततः डाक्टर मुस्तफा चमरान के नेतृत्व में लड़ने वाली सेना की सहायता के लिए 105 नामक बंदक सैन्य उपकरण भेजे। डाक्टर शहीद मुस्तफा चमरान ने इसी सैन्य उपकरण की सहायता से दुश्मन के 6 टैंकों को लक्ष्य बनाया। दूसरी ओर डाक्टर शहीद मुस्तफा चमरान के नेतृत्व में जो सेना लड़ रही थी शत्रु के टैंकों को लक्ष्य बनाने के लिए उसके पास कुछ आरपीजी बची थी। इस कठिन परिस्थिति में ईरानी संघर्षकर्ताओं ने अल्लाहो अकबर का नारा लगाकर दुश्मन पर हमला कर दिया। आमने- सामने की इस लड़ाई में डाक्टर शहीद मुस्तफा चमरान घायल हो गये। डाक्टर शहीद मुस्तफा चमरान अपने आस- पास की घटनाओं पर रहस्यवादी दृष्टि रखते थे। उन्होंने अपने घायल पैरों से इस प्रकार बात की। हे मेरे घायल पैर! तूने पूरे जीवन मेरा भार उठाया। मुझे पहाड़ों, जंगलों और रास्तों से गुज़ारा अब मेरा अंतिम समय है मैं तुझसे चाहता हूं कि घायल और पीड़ा को सहन कर और हमेशा की भांति मज़बूत रह और मुझे रणक्षेत्र में अपमानित न कर।“ इस आमने- सामने की लड़ाई में अंततः इराकी सैनिक पीछे हटने पर मजबूर हो गये। इराकी सैनिकों के पीछे हटने के बाद डाक्टर शहीद मुस्तफा चमरान की स्थिति बहुत खराब हो गयी थी उन्हें इराकी सैनिकों से छीनी एक एम्बुलेन्स में बैठाकर मोर्चे से पीछे हटाया गया। ईरानी रणबांकुरे सूसंगर नगर में प्रविष्ट हो गये और अतिक्रमणकारी सैनिकों का मुकाबला करने वाले जियालों से जा मिले। पूरे नगर में खुशी की लहर दौड़ गयी। वे सब सूसंगर की जामेअ मस्जिद में एकत्रित होकर खुशी मनाने लगे। डाक्टर शहीद मुस्तफा चमरान का मानना था कि सूसंगर नगर की आज़ादी सेना, संरक्षक बल सिपाहे पासदारान और ग़ैर संगठित सेना के बीच होने वाली सहकारिता का परिणाम था और इनमें से अकेले कोई भी इस प्रकार की सफलता नहीं प्राप्त कर सकता था। सेना और लोगों के मध्य एकजुटता ने उनकी उपयोगिता में वृद्धि कर दी और सेना तथा जनसेना की एकजुटता ने सफलता व वीरता का नया इतिहास रच दिया।

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