Nov १८, २०१९ १६:२४ Asia/Kolkata
  • विज्ञान की डगर ईरान का सफ़रः  पार्किन्सन बीमारी के एलाज के लिए विशेष उपकरण,  नैनो पिगमेंट थालोसायनिन, कृत्रिम ज़बान, ज़ीका जैसी बीमारी को ख़त्म करने के लिए मच्छरों का उत्पादन, इन विषयों पर पेश है ख़ास चर्चा!

ईरान की अमीर कबीर यूनिवर्सिटी ऑफ़ टेक्नॉलोजी के शोधकर्ता पार्किन्सन बीमारी के एलाज के लिए दिमाग़ को सक्रिय करने वाला उपकरण बनाने में सफल हुए।

इस उपकरण को बिना किसी साइड इफ़ेक्ट के अल्ज़हायमर और अवसाद या डिप्रेशन जैसी बीमारी के एलाज के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता।

विज्ञान की डगर ईरान का सफ़र

 

यह उपकरण या औज़ार स्मरण शक्ति को मज़बूत करने में भी प्रभावी है। इस यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने राष्ट्रपति कार्यालय के अधीन वैज्ञानिक व प्रौद्योगिकी विभाग के सहयोग से दिमाग़ की विद्युत तरंग को सक्रिय करने वाला उपकरण बनाने में सफलता हासिल की। इस तरह ईरान में उत्पादित इस उपकरण के निर्माण में शोधकर्ताओं की ज़रूरत को मद्देनज़र रखा गया है। इसी तरह इस उपकरण को कंप्यूटर से भी जोड़ा जा सकता है।

डॉक्टर जेम्ज़ पार्किन्सन ने 1817 ईसवी में पहली बार पीडी या पार्किन्सन्स डिज़ीज़ से पर्दा उठाया। यह बीमारी पार्किन्सन के नाम से जानी जाती है। यह केन्द्रीय स्नायु तंत्र से जुड़ी बीमारी है जो आम तौर पर बूढ़े लोगों में दिखाई देती है। यह बीमारी उस सयम होती है जब दिमाग़ का विशेष हिस्सा डोपामिन नामक रसायन का उत्पादन नहीं कर पाता। 

पार्किन्सन बीमारी में दिमाग़ का विशेष हिस्सा डोपामिन नामक रसायन का उत्पादन नहीं कर पाता 

60 साल से ज़्यादा उम्र के 100 लोगों में एक व्यक्ति को यह बीमारी होती है। विश्व आंकड़े के मुताबिक़, दुनिया में इस बीमारी से ग्रस्त लोगों में 5 से 10 फ़ीसद लोग ही 55 साल की उम्र में इससे ग्रस्त होते हैं। इस समय दुनिया में 43 लाख लोग पार्किन्सन से ग्रस्त हैं और इस बात का अंदाज़ा है कि 2050 में इस बीमारी से ग्रस्त होने वालों की संख्या 90 लाख पहुंच जाएगी।

आराम की हालत में हाथ में पैर में कपकपाहट, हाथ पैर के आम हालत में मूवमंट में मुश्किल, संतुलन न होना, क़द झुक जाना, पलक झपकाने, मुस्कुराने और हाथ हिलाने जैसे आटोमेटिक मुवमेंट में मुश्किल, खाने को निगलने में मुश्किल, मुंह से राल टपकना, अस्पष्ट आवाज़, नतीजे में अवसाद और बेचैनी, इस बीमारी के लक्ष्ण हैं। अभी तक यह बात स्पष्ट नहीं हो पायी है कि पार्किन्सन बीमारी क्यों होती है, लेकिन शोधकर्ताओं का मानना है कि इसके पीछे जेनेटिक और पर्यावरण संबंधी तत्व ज़िम्मेदार लगते हैं। यही वजह है कि पार्किन्सन बीमारी के संबंध में कहा जाता है कि इस बीमारी का जीन से संबंध है लेकिन इस बात की अभी तक पूरी तरह पुष्टि नहीं हुयी है।

आटोमेटिक मुवमंट में मुश्किल, खाने को निगलने में मुश्किल, मुंह से राल टपकना, अस्पष्ट व एकसुरी आवाज़, नतीजे में अवसाद और बेचैनी, पार्किन्सन के लक्ष्ण हैं

वर्ष 2007 में वैज्ञानिक व मेडिकल सेमिनार में पेश हुए अध्ययन के नतीजे दर्शाते हैं कि उन लोगों के पार्किन्सन से ग्रस्त होने की आशंका ज़्यादा होती है जो कीटनाशक दवाओं के संपर्क में होते हैं। इसी तरह फ़ोलिक एसिड की कमी और डायबिटीज़ टाइप टू से ग्रस्त लोगों के भी पार्किन्सन से ग्रस्त होने की आशंका अधिक होती है। इसी तरह अनसैचरेटिड चर्बी के उपभोग से इस बीमारी से ग्रस्त होने की संभावना कम हो जाती है। इसी तरह फ़िज़िकल थेरैपी, थेरैप्यूटिक वर्क अर्थात उपचरात्मक कार्य और स्पीच थेरैपी भी पार्किन्सन के मरीज़ों की देखभाल के मूल उसूल हैं।

अक्तूबर 2016 के अंतिम दिनों में अमीर कबीर यूनिवर्सिटी ऑफ़ टेक्नॉलोजी में प्रोफ़ेसर उस्ताद फ़र्ज़ाद तौहीद ख़्वाह ने इस यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा पार्किन्सन बीमारी के एलाज के लिए दिमाग़ को सक्रिय करने वाले उपकरण की डिज़ाइन और निर्माण किए जाने की सूचना दी। इस यूनिवर्सिटी के उस्ताद के मुताबिक़, इस उपकरण के 2 नमूने अंतर्राष्ट्रीय स्टैंडर्ड के अनुसार बनाए गए हैं जो शोध प्रोजेक्ट के लिए डायरेक्ट करंट स्टिमुलेशन और अल्टर्नेटिंग करंट स्टिमुलेशन में सक्षम हैं।

इस उपकरण द्वारा 2 मिलिएम्पियर तक का करंट पैदा होता है। इस उपकरण की दूसरी पीढ़ी भी तय्यार है जो दिमाग़ पर अधिक फ़ोकस करने में सक्षम है। इस तरह का उपकरण इससे पहले स्पेन, जर्मनी और अमरीका में बन चुका है लेकिन ईरान में बने इस उपकरण की उत्पादन लागत विदेशी उपकरण की तुलना में एक तिहाई है। ईरान में इस उपकरण की लागत लगभग 5300 डॉलर है। अब इस उपकरण का औद्योगिक नमूना बन चुका है और बिकने के लिए तय्यार है। 

******

नैनो पिगमेंट थालोसायनिन

ज़न्जान यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता नीले रंग के नैनो पिगमेंट थालोसायनिन के अर्ध औद्योगिक उत्पादन तक पहुंचने में सफल हुए हैं। यह पिगमेंट अधिक गर्मी के दबाव को सहन करने में सक्षम है। इस नैनो पिगमेंट से नैनो स्केल पर सभी रंग निकाले जा सकते हैं। माइक्रो स्तर के ये रंग इससे पहले भारत, चीन जर्मनी इत्यादि देशों से आयात होते थे। अब ईरान इन रंगों का नैनो स्केल पर उत्पादन करने में सक्षम हो गया है। नीले रंग का नैनो पिगमेंट अब अर्ध औद्योगिक उत्पादन स्तर पर पहुंच गया है। इसकी शुद्धता उच्च स्तरीय है। इसे कार निर्माण, बुनाई, मोहर की रौशनाई, हस्तकला उद्योग, टायर, चित्रकारी, रंग बनाने और रौशनाई जैसे केमिकल उद्योग में इस्तेमाल कर सकते हैं। ईरानी नैनो पिगमेंट इस जैसे नमूनों की तुलना में तीन गुना अधिक रंग देता और दुगुना सर्फ़ेस को कवर करता है। यह नैनो पिगमंट 250 डिग्री गर्मी को बर्दाश्त कर सकता है, जबकि विदेशी रंग 200 डिग्री से ज़्यादा गर्मी बर्दाश्त नहीं कर सकते।

ज़न्जान यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं की नीले रंग के नैनो पिगमेंट थालोसायनिन के अर्ध औद्योगिक उत्पादन तक पहुंचने में सफलता

ईरानी शोधकर्ताओं ने प्रयोगशाला के स्तर पर एक तरह का नैनो कैटलिस्ट भी बनाया है जिसके ज़रिए ब्रेस्ट कैंसर की दवा को सस्ती क़ीमत पर बनाया जा सकता है। दिल के दौरे के बाद ख़ास तौर पर औद्योगिक देशों में सबसे ज़्यादा मौत ब्रेस्ट कैंसर से होती है। हर 10 में 1 औरत इस बीमारी का अपने जीवन में अनुभव करती है। इसलिए नए केमिकल कम्पाउंड का उत्पादन इस बीमारी के एलाज के लिए बहुत अहमियत रखता है।          

ईरान में इसी तरह मुत्राशय के कैंसर के एलाज के लिए पहली बार बायोलोजिकल दवा का बड़े पैमाने पर उत्पादन हुआ। मुत्राशय के कैंसर की मौजूदा दवाओं के संबंध में कई मुश्किले हैं। जैसे यह दवा जल्द ख़राब हो जाती है। इसी तरह इसे आसानी से एक जगह से दूसरी जगह नहीं ले जा सकते क्योंकि इसे 20 डिग्री से कम तापमान में रखना होता है। लेकिन अब ईरान में यह दवा बनने लगी है और इसका निर्यात के स्तर पर उत्पादन करने में ईरान सक्षम हो गया है।       

मुत्राशय के कैंसर के एलाज के लिए पहली बार ईरान में बायोलोजिकल दवा का उत्पादन

 

कृत्रिम ज़बान

दक्षिण कोरिया के शोधकर्ता नैने कार्बन, ग्राफ़ीन और इंसान के बदन से प्रोटीन निकालकर कृत्रिम ज़बान बनाने में सफल हुए हैं जो प्राकृतिक ज़बान की तुलना में 10000 गुना मज़ा चखने में तेज़ है। यह बायोइलेक्ट्रॉनिक्स ज़बान मीठे और नमकीन को अलग कर सकती है। इस विशेषता की वजह से इस ज़बान को खाद्य पदार्थ के उत्पादन और उसकी निगरानी करने वाले उपकरण बनाने में इस्तेमाल कर सकते हैं।

ज़ीका जैसी बीमारी को ख़त्म करने के लिए मच्छरों का उत्पादन

आपको एक और वैज्ञानिक उपलब्धि के बारे में बता दें। वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में दसियों लाख की तादाद में मच्छर पाले हैं जिन्हें नाना प्रकार के संक्रामक रोग फैलाने वाले कीड़ों को ख़त्म करने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा।  ब्राज़ील में एक बहुत बड़ा आधुनिक प्रतिष्ठान है जहां सिर्फ़ मच्छरों का उत्पादन होता है। इन मच्छरों का उत्पादन ज़ीका जैसी बीमारी को ख़त्म करने के लिए किया गया है। इन मच्छरों के जीन्स में बदलाव लाया गया है। यह अंदाज़ा लगाया गया है कि लगभग 6 करोड़ मच्छर का उत्पादन हो ताकि ख़तरनाक रोग फैलाने वाले मच्छरों को ख़त्म करने के लिए ऐतिहासिक वैज्ञानिक उपलब्धि हासिल हो। ये मच्छर ज़ीका, येलो फ़ीवर या डेंगू फैलाने वाले मच्छरों को ख़त्म कर देंगे जिससे ये बीमारियां नहीं फैलेंगी। ब्राज़ील के इस प्रतिष्ठान में पैदा होने वाले मच्छर, रोग फैलाने वाली मादा मच्छर से जोड़ा खाएंगे, जिसके नतीजे में जेनेटिक डिस्आर्डर वाले मच्छर पैदा होंगे जो बिना बीमारी फैलाए मर जाएंगे। 

संक्रामक रोग फैलाने वाले मच्छरों को ख़त्म करने के लिए करोड़ों की तादाद में मच्छरों का पालन

 

टैग्स