Feb १०, २०२० १९:५६ Asia/Kolkata
  • आइए ईरान घूमेंः बूशहर प्रान्त के पर्यटन स्थलों में विविधता बहुत अधिक है।

गुनावे, दीलम, दीर, कंगान जैसे बंदरगाह और बराज़जान, खूरमौज, दश्तिस्तान और तंगिस्तान जैसे नगर अपनी अपनी जगह पर खास हैं और खास प्रकार के पर्यटकों को लुभाते हैं।

तंगिस्तान को बूशहर प्रान्त के आकर्षक पर्यटन स्थलों में गिना जाता है। इसकी वजह यह है कि इस नगर में समुद्री तट भी है और जंगल भी हैं और पहाड़ भी मौजूद हैं तो फिर जहां यह तीनों चीज़ें हों वहां पर्यटकों का तांता तो बंधा ही रहता है। तंगिस्तान शहर के निवासियों की अधिकतर गतिविधियां सेवाओं पर आधारित हैं और इस नगर के लोग कृषि और शिकार भी किया करते हैं लेकिन इस क्षेत्र के निवासियों को ख्याति किसी और कारण से मिली है। इस नगर के लोग हालिया वर्षों के दौरान देश प्रेम और वीरता में प्रसिद्ध रहे हैं। इस  क्षेत्र  के लोगों की वीरता की कहानी ईरान के हर क्षेत्र में सुनी और सुनायी जाती है। यहां के निवासियों ने प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटेन की सेना का उस समय जम कर मुक़ाबला किया जब उन्होंने ईरान के दक्षिणी क्षेत्रों और शीराज़ पर हमला किया था। तंगिस्तान में ही दिलवार बसा है। 

जब आप बूशहर से देयर बंदरगाह की ओर चलते हैं तो लगभग चालीस किलोमीटर चलने के बाद दिलवार नामक तटीय नगर पहुंच जाएंगे। इस नगर का अर्थ ही दिलेर और बहादुर है। ईरान के इतिहास में दिलवार की भूमिका काफी अहम रही है और इस क्षेत्र में निर्णायक घटनाएं घटी हैं जिनसे ईरान के इतिहास का रुख बदल गया। इस नगर के पश्चिम में फार्स की खाड़ी और पूरब में ज़ागरुस पर्वतीय  श्रंखला के पहाड़ सिर उठाए खड़े हैं। दिलवार के शहीद रईस अली दिलवारी का नाम बूशहर से जुड़ा है।  दक्षिणी ईरान में ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध संघर्ष का नेतृत्व करने वाले रईस अली दिलवारी पूरे ईरान में वीरता व संघर्ष का प्रतीक माने जाते हैं। 

रईस अली दिलवारी

दरअस्ल प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन ने दक्षिणी ईरान पर अधिकार करने का प्रयास किया था। ऐसे समय में  रईस अली दिलवारी ने देश की रक्षा के लिए संघर्ष आरंभ और ब्रिटिश सेना के मुक़ाबले के लिए जनता का नेतृत्व किया। उन्होंने दक्षिणी ईरान की महत्वपूर्ण बूशहर बंदरगाह पर अधिकार करने के ब्रिटिश सेना के प्रयासों को कई बार विफल बनाया। यह संघर्ष 7 वर्ष तक जारी रहा। सन 1915 में ब्रिटेन के सैनिकों और स्थानीय जनता के बीच भीषण युद्ध आरंभ हुआ था। इस युद्ध के दौरान रईस अली दिलवारी ने जनता के सहयोग से महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ब्रिटेन के सैनिकों से रईस अली दिलवारी के नेतृत्व में होने वाला युद्ध ईरान के इतिहास में वर्चस्ववादियों के मुक़ाबले में प्रतिरोध का उदाहरण है। 

दरअस्ल हुआ यह था कि अगस्त सन 1915 में ब्रिटेन की सेना बिना किसी सूचना या घोषणा के बूशहर में घुस गयी। फार्स की खाड़ी पर क़ब्ज़े के बाद ब्रिटेन की नज़र बूशहर पर थी जो व्यापारिक लेन देन के लिहाज़ से एक बहुत ही महत्वपूर्ण बंदर गाह थी। लेकिन तंगिस्तान की जनता ने अली दिलवारी के नेतृत्व में ब्रिटेन के खिलाफ संघर्ष शुरु कर दिया और अन्ततः रईस अली दिलवारी अग्रेज़ों से लड़ते लड़ते शहीद हो गये। आज शहीद रईस अली दिलवारी के घर को संग्रहालय बना दिया गया है जहां स्थानीय लोगों की जीवन शैली से सैलानियों को परिचित कराया जाता है। 

रईस अली दिलवारी संग्रहालय

रइस अली दिलवारी के संग्रहालय को देखने और ईरान की इस प्रसिद्ध हस्ती से परिचित होने के बाद हम अहरम नगर का रुख करते हैं जहां कलात नामक एतिहासिक क़िला भी मौजूद हैं। अहरम तंगिस्तान का केन्द्र है और यह नगर   भी बूशहर के हरे भरे क्षेत्रों में गिना जाता है। यह नगर  ऐतिहासिक, धार्मिक व प्राकृतिक दृष्टि से पर्यटन के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण स्थल समझा जाता है। अहरम में विभिन्न फलों के बाग़ और जलसोते पाये जाते हैं जिसकी वजह से इस नगर में  प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में देशी और विदेशी पर्यटक आते हैं।  इस नगर में  मौजूद दो क़िलों के अवशेष, उन लोगों की याद दिलाते हैं जिन्होंने अपने देश की रक्षा के लिए अपने प्राण  न्योछावर कर दिये। इन दोनों क़िलों  के अवशेष भी ईरान की ऐतिहासिक धरोहर  हैं। यह नगर बूशहर से 54 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस नगर में कलात क़िला, ओबा गर्म सोता, मीर अहमद सोता, खाईज़ संरक्षित क्षेत्र, इमामज़ादा इब्राहीम का मज़ार, इमामज़ादा जाफर का मज़ार, अहरम डैम, क़ूचरक गर्म पानी का सोता और तंगिस्तान के हरे भरे खजूरों के बाग, सैलानियों को हमेशा तंगिस्तान आने का निमंत्रण देते हैं। 

ज़ायर ख़िज़्र ख़ान अहरमी दुर्ग

कलात अहरम का क़िला काजारी काल के अंतिम समय की यादगार है। यह क़िला अहरम शहर के उत्तरी भाग में स्थित है और कहते हैं कि इसके मालिक का नाम ज़ायर ख़िज़्र अहरमी था। पूरा क़िला 3400 वर्ग मीटर पर बनाया गया है। क़िले में चार बुर्जियां हैं और बीच में भी पहरे के लिए एक बुर्जी बनी है। इस क़िले में रहने वालों के लिए अपनी व्यवस्था थी। कलात क़िले के निर्माण में जिन मसालों का प्रयोग किया गया है उसमें गारा और ईंट सब से अधिक है। प्रथम विश्व युद्ध में यह क़िला, साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष करने वालों का ठिकाना था  और अग्रेज़ों के खिलाफ कई युद्ध इसी क़िले की मदद से लड़े गये। क़िले में जगह जगह आज भी गोलियों के निशान हैं इसी प्रकार अंग्रेज़ सिपाहियों को इसी क़िले में बंदी बना कर रखा जाता था। इस क़िले को ईरान की राष्ट्रीय धरोहर में शामिल किया गया है। 

अहरम में गर्म पानी का सोता, सैलानियों के लिए बेहद आकर्षक जगह है और ईरान के कोने कोने से पर्यटक इस सोते को देखने के लिए अहरम जाते हैं। इस पानी से बहुत सी बीमारियों का इलाज भी होता है इसी लिए एक बार इस सोते को पानी से उपचार के अत्याधिक लोकप्रिय केन्द्र का इनाम भी मिल चुका है। यह सोता, पत्थरों के बीच फूटने वाली पानी की धारा से बना है और गर्म होता है। इस सोते के पास दो हौज़ बनाए गये हैं एक महिलाओं के लिए और दूसरा पुरुषों के लिए। अहरम जाने वाले अपने परिचतों के लिए इस नगर से खजूर ख़रीदते हैं जो कई तरह की होती हैं। (Q.A.)

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