Feb २७, २०२० १६:१५ Asia/Kolkata
  • जल संकट, आशा व निराशाः पानी एक अनमोल ईश्वरीय उपहार है, क्या हम उसका सही इस्तेमाल करते हैं?

जल ही जीवन है यह बहुत मशहूर कथन है और जैसा कि हमने बताया कु़रआने मजीद ने भी कहा है कि हमने हर चीज़ को पानी से जीवन प्रदान किया।

जल को जीवन का आरंभ बिन्दु भी कहा जाता है और हक़ीक़त में हर प्राणी का जीवन, पानी से ही शुरु होता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि पानी, मेथोनाॅल और अमोनिया, पृथ्वी के वातावरण के मुख्य तत्व हैं जिनकी वजह से पहली बार अमोनिया एसिड बनी है। अमोनिया एसिड को हर प्राणी का उत्पत्ति बिन्दु समझा जाता है। हर जीवित प्राणी के अधिकांश सेल्स, पानी से बने होते हैं। मानव शरीर में सेल्स का जो जाल है उसका अधिकांश भाग पानी होता है और अगर पानी नहीं तो फिर जीवन भी नहीं। यही वजह है कि मानव सभ्यता में पानी को हमेशा महत्व प्राप्त रहा है। प्राचीन काल में भी पानी को चार मुख्य तत्वों में गिना जाता है। इसी तरह भारत दर्शन में भी पंच तत्व में पानी शामिल है। 

मानव ही नहीं हर जीवन के लिए इतना महत्वपूर्ण जल, धरती पर मिलने वाले सब से अधिक पदार्थों में से एक है और एकमात्र पदार्थ है जो प्राकृतिक रूप से ठोस , द्रव और गैस के रूप में मौजूद है। इन्सानों ने पानी का पहला प्रयोग पीने के लिए किया। पानी को अच्छी तरह से इस्तेमाल करने के प्रबंध का इतिहास भी बहुत पुराना है। प्राचीन काल से ही मनुष्य को पानी के महत्व का पता था और जब से इन्सानों ने समूहों में रहना आरंभ किया तभी से उन्होंने पानी को सुरक्षित रखने की व्यवस्था के बारे में सोचा। मानव इतिहास गवाह है कि प्राचीन काल में जब मानवीय समाजों की शुरुआत हुई तो लोग नदियों के किनारे ही बसा करते थे। इसके साथ ही उन्होंने नदियों के पानी से सिंचाई आदि की व्यवस्था भी बनायी। पानी के महत्व के बारे में प्राचीन मानव समाज में भी चेतना थी। 

प्राचीन काल में लोग पानी की मात्रा पर ध्यान देते थे और उसकी गुणवत्ता का महत्व नहीं था हालांकि प्राचीन काल में उपलब्ध पानी बहुत से प्रदूषणों  से मुक्त होने की वजह से अपेक्षाकृत अच्छी गुणवत्ता रखता था क्योंकि उस वक़्त पानी को प्रदूषित करने वाली उतनी चीज़ें नहीं थीं और न ही उद्योग था। नदियों के किनारे और बारिश के पानी के सहारे पनपने वाली सभ्यताओं का अपना इतिहास है। यह सभ्यताएं नदियों के किनारे उपजाऊ भूमियों के निकट फली फूलीं और मशहूर हुईं। दुनिया की अत्यधिक मशहूर सभ्यताएं नदियों के किनारे परवान चढ़ी हैं। यही वजह है कि नदियों और उनके निकट मौजूद उपजाऊ भूमियों को हटा दें तो फिर किसी प्राचीन सभ्यता की कल्पना बेहद कठिन हो जाती है। इराक़ में मेसोपोटामिया में जन्म लेने वाली सभ्यता हो, मिस्र की नील नदी के हरे भरे तट हों, ईरान में खुज़िस्तान के हरे भरे मैदान हों या फिर भारतीय उप महाद्वीप के सिंध व पंजाब का इलाक़ा हो, पानी और नदी के बिना इन क्षेत्रों में फलने फूलने वाली सभ्यताओं की कल्पना नहीं की जा सकती, यहां पानी की वजह से बड़ी बड़ी सभ्यताओं ने जनम  लिया है। 

 

आप दुनिया के किसी भी हिस्से में चले जाएं , वहां की नदी तलाश करें और उसके किनारे किनारे चलते जाएं आप को सभ्यताओं  के निशान मिलते जाएंगे। नदियों के किनारे से गुज़रने वाले यह रास्ते, सदियों से और सदियों तक कृषि व व्यापार के क्षेत्र में बड़ी बडी खोजों बल्कि बड़े बड़े साम्राज्यों का साधन रहे हैंं। नदियों के इन रास्तों की गोद में न जाने कितनी कहानियों, आस्थाओं और विचारधाराओं ने जनम लिया है और मानव समाज को  संवारने या बिगाड़ने का काम किया है। नयी नयी चीज़ों की खोज और नये नये तथ्यों  की जानकारी का यह अत्यधिक पुराना रास्ता आज भी उपयोगी है और रोचक बात यह है कि आज भी वैज्ञानिक जीवन के नये नये रूपों की खोज के लिए नदियों  के तट से निकट क्षेत्रों में भी अध्ययन करते हैं और नदियों के  रास्तों से ही मदद लेते हैं। 

 

यदि आप धरती को ऊपर से, बहुत ऊपर से देखें तो आप को नीले रंग का एक गोला नज़र आएगा, हम सब को मालूम है कि धरती को नीला रंग, धरती पर मौजूद पानी ने दिया है। धरती का अधिकांश भाग नदियों और समुद्रों से ढंका हुआ है। धरती का कुल क्षेत्रफल 510 मिलयन वर्गकिलोमीटर है और उसमें से 361 मिलयन वर्ग किलोमीटर, पर पानी की चादर बिछी है। इस धरती और धरती पर रहने वालों और पानी का प्रयोग करने वालों के लिए पानी के भांति भांति के स्रोत हैं। मात्रा की बात करें तो पृथ्वी पर मौजूद कुल पानी का 97 दशमलव 2 प्रतिशत भाग, समुद्रों महासागरों में है और केवल दो दशमलव 8 प्रतिशत भाग, नदियों, बर्फ के तोदों, वायु मंडल, धरती के भीतर और भूमिगत जलाशयों में मौजूद है। 

प्रकृति ने हमारे लिए बहुत से रूपों में और अलग अलग जगहों पर पानी जैसी क़ीमती चीज़ संजो कर रखी है और अलग अलग समय में अलग अलग शैलियों में यह जीवन दायक पदार्थ हमें मिलता है, कभी पैरों के नीचे की धरती खोद कर, कभी वर्षा और कभी बर्फ जैसे विभिन्न रूपों में प्रकृति हमें पानी प्रदान करती है, हमारे जीवन के लिए ज़रूरी पानी का प्रंबंध करके प्रकृति अपना कर्तव्य निभा देती है लेकिन क्या उसे सही रूप से प्रयोग करने की अपनी ज़िम्मेदारी हम पूरी करते हैं? Q.A.

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