Dec १४, २०२० १५:२८ Asia/Kolkata
  • जंग का एक बड़ा कारण पानी बन सकता है, दाइश ने ख़ास तौर पर जल संसाधनों पर क़ब्ज़ा किया था...सीरिया संकट की शुरुआत की वजह बना था पानी

युद्ध वास्तव में एक भयानक न्रास्दी है जो वास्तव में जीवन के मूल भूत ढांचे को ही निशाना बनाती है और उसे पूरी तरह से तबाह कर देती है।  अब तक हम ने विभिन्न प्रकार के युद्ध देखे हैं।

शीत युद्ध, साफ्ट वॅार, अफीम युद्ध, गुप्त युद्ध और इसी तरह के न जाने कैसे कैसे युद्धों के बारे में आप ने पढ़ा और सुना होगा।  यदि हम इन सभी युद्धों पर ध्यान दें तो हमें यह पता चलेगा कि इस प्रकार के सभी युद्ध, प्रायः प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार के लिए हुए हैं। युद्धों के इतिहास पर नज़र डालने से यही साबित होता है कि आक्रमणकारी देशों ने कभी मसालों तो कभी तेल और कभी किसी अन्य चीज़ पर क़ब्ज़े के लिए दूसरे देशों  पर हमले  किये हैं, मगर आधुनिक युग  में युद्ध की एक और वजह बढ़ गयी है। 

विश्व के जो हालात हैं उन पर ध्यान देने से हमें यह पता चलता है कि पुराने ज़माने में जिन मुद्दों पर युद्ध होता था उनमें एक मुद्दा वर्तमान दौर मे बढ़ गया है। विशेषज्ञ अब वॅाटर वॅार की ओर से सचेत कर रहे है । इस युद्ध के लक्षणों को दुनिया के कई देशों में अभी से देखा जा सकता है। आज से दस वर्ष पहले विशेषज्ञों ने जल संकट के बारे में चेतावनी दी थी और कहा था कि सन 2015 तक करोड़ों लोगों को जल संकट का सामना करना होगा। और दुनिया के दो तिहाई लोग, पेय जल से वंचित हो जाएंगे। चेतावनियों में कहा गया है कि दुनिया में दिन प्रतिदिन कम होते पानी की वजह से खाद्य पदार्थों और ऊर्जा की कमी हो सकती है इस लिए पानी के लिए युद्ध अब कोई काल्पनिक चीज़ नहीं रह गयी है और न ही दशकों बाद सामने आने वाली कोई समस्या है बल्कि अब वॅाटर वॅार एक गंभीर मुद्दा है क्योंकि बहुत से देशों में पानी को लेकर विवाद शुरु हो चुका है। यह वह देश हैं जो जल संकट की ओर बढ़ रहे हैं। इसकी एक मिसाल इथोपिया और मिस्र की है जो पानी की वजह से युद्ध के मुहाने तक पहुंच गये थे। 

अमरीकी पत्रिका क्रिश्चिन साइंस माॅनिटर ने कुछ दिन पहले पानी के लिए युद्ध पर अपनी एक विचार योग्य रिपोर्ट प्रकाशित की थी। इस रिपोर्ट में  लिखा गया था कि विशेषज्ञों के मानना है  कि बढ़ती आबादी और कम होते पानी की वजह से अगले कुछ दशकों में पानी की मांग में असाधारण रूप से वृद्धि होगी। वर्ल्ड रिसोर्सेस इंस्टीट्यूट ने अपने एक अध्ययन में बताया है कि सन 2020 से सन 2030 के बीच और 2040 तक दुनिया के 167 देशों में पानी के लिए तनाव व युद्ध की आशंकाओं का जायज़ा लिया गया है और अध्ययन के नतीजे में यह पाया गया है कि सन 2040 तक दुनिया के 33 देशों में जल की वजह से तनाव होगा। इस अंतरराष्ट्रीय संस्था के अनुसार पानी के लिए सब से अधिक विवाद और तनाव,  मध्यपूर्व और उत्तरी अफ्रीका के 14 देशों में देखा जाएगा। 

 

शोधकर्ताओं के अनुसार, मध्य पूर्व एसा क्षेत्र है जहां सब से कम पानी पाया जाता है। इसी लिए इस क्षेत्र में भूमिगत जल स्रोतों का बुरी तरह से दोहन हो रहा है और समुद्र के पानी को भी मीठा बनाया जा रहा है, अनुमान लगाया जा रहा है कि आगामी दशकों में इस क्षेत्र में पानी की समस्या गंभीर रूप धारण कर लेगी। अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि पानी के लिए होेने वाले विवादों का सब से अधिक प्रभाव, कृषि और अर्थ व्यवस्था पर पड़ेगा। पानी की कमी के चलते गांवों से नगरों की ओर पलायन बढ़ेगा जिसका प्रभाव अर्थ व्यवस्था पर भी पड़ेगा और सामाजिक समस्याएं भी जन्म लेंगीं। 

अध्ययन कर्ताओं का मानना है कि सूखे की वजह बनने वाले मौसम में बदलाव के चिन्ह अभी सामने नहीं आए हैं लेकिन जो प्रमाण हैं उनसे यही लगता है कि युरोप के भी कुछ इलाक़े बहुत बुरी तरह  सूखे से ग्रस्त होंगे। इसी तरह, चीन, भारत और अमरीका विशेषकर कर उसके दक्षिण पश्चिमी क्षेत्र सन 2020 के बाद से जल संकट का सामना करेंगे। रिपोर्टों के अनुसार चिली, नामीबिया और बोत्सवाना जैसे बहुत से देशों को इस समय भी जल संकट का सामना है जिसकी वजह सूखा है। इस रिपोर्ट में एक महत्वपूर्ण बात यह भी बतायी गयी है कि सन 2011 में पानी की कमी सीरिया युद्ध की एक बड़ी वजह रही है क्योंकि सीरिया में जल संकट और सूखे की वजह से अशांति बढ़ी और फिर यह देश गृहयुद्ध में फंस गया। 

 

पानी पर झगड़ा आम तौर पर छोटी सी बात से शुरु होता है लेकिन जैसे जैसे यह जीवनदायक पदार्थ कम होता जाएगा झगड़े बढ़ते जाएंगे। सीरिया के दक्षिणी नगर दरआ में कुछ युवा, पानी के विभाजन के बारे में कमिश्नर के फैसले के खिलाफ दीवारों पर नारे लिख रहे थे लेकिन उसी समय पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। इन युवाओ के साथ पुलिस का गलत व्यवहार लोगों में आक्रोश का कारण बना और प्रदर्शन शुरु हो गये क्योंकि इन युवाओं का क़बीला मैदान में उतर गया था और सीरिया में यह विवाद इतना बढ़ा कि दुनिया भर के आतंकवादी वहां जमा हुए और भयानक गृहयुद्ध छिड़ गया।   अमरीका, इस्राईल और  सऊदी शाही परिवार के कुछ सदस्यों के सहयोग से बनने वाले आतंकवादी संगठन दाइश को गृहयुद्ध और विवादों में पानी की भूमिका का पता था। इस लिए उसने सीरिया के रिक़्क़ा नगर को अपना केन्द्र बनाया जो जो सीरिया के मुख्य जल भंडार यानी असद झील से मात्र 40 किलो मीटर की दूरी पर है। रिक़्क़ा नगर की पूरी अर्थ व्यवस्था, इसी झील के पानी से सींचे जाने वाले कपास के खेतों पर निर्भर रही है। यह झील इस तरह बनी है कि उससे 2500 वर्गमील के इलाक़े की सिंचाई की जाती है। इसी तरह दाइश ने इराक़ के सब से बड़े बांध पर क़ब्ज़े के लिए जो मौसिल के पास है , भयानक युद्ध किया। दाइश के आतंकवादियों ने इसी प्रकार फुरात नदी के दो बांधों पर भी क़ब्ज़ा किया जिनमें से एक फ़ल्लूजा में और दूसरा हदीसा में है। 

कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि पिछले 50 वर्षों में  37 देशों के बीच पानी की वजह से इतना तनाव बढ़ा के वह सैन्य टकराव की हद तक चले गये। इस्राईल भी अपने पड़ोसियों के साथ  पानी के लिए 30 बार तनाव और सैन्य टकराव तक जा चुका है। सब से अधिक टकराव 1950 के दशक से लेकर 60 के दशक तक था । इन वर्षों में इस्राईल, सीरिया और जार्डन के बीच पानी को लेकर बेहद गंभीर विवाद पैदा हुए थे। अध्ययनों से पता चलता है कि गत 50 वर्षों के दौरान, दुनिया में 1831 जल संबंधित घटनाएं घटी हैं जिनमें से 1228 घटनाएं विवाद की वजह से हुई थीं। 

अध्ययनकर्ता पानी को सहयोग व भागीदारी की चीज़ समझते हैं मगर राजनेताओं के विचार इससे अलग हैं। मिस्र के तीसरे राष्ट्रपति अनवर सादात ने सन 1979 में कहा कि मिस्र को एक नये युद्ध में केवल पानी फंसा सकता है। संयुक्त राष्ट्र संघ के छठें महासचिव पितरुस गाली ने भी सन 1985 में कहा था कि मध्य पूर्व में अगला युद्ध पानी के लिए होगा। विश्व बैंक के उपाध्यक्ष इस्माईल सिराजुद्दी ने सन 1995 में कहा था कि इस सदी की बहुत सी लड़ाइयां तेल के लिए थीं मगर अगली सदी में युद्ध पानी के लिए होगा। संयुक्त राष्ट्र संघ के सातवें महासचिव कूफी अन्नान ने सन 2001 में कहा  था कि जल स्रोतों की वजह से होने वाले विवाद भविष्य में युद्धों का कारण बन सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव बान की मून ने भी सन 2009 में कहा थ कि दारफोर का संकट पर्यावरण और पानी की वजह से अधिक गहरा हुआ। इराक़ के प्रधानमंत्री नूरी मालेकी ने सन 2012 में चेतावनी दी थी कि अगर जल्द ही कोई उपाय नहीं किया गया तो अरब देश पानी के लिए युद्ध कर सकते हैं। 

इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि भले ही पानी को युद्ध का मुख्य कारण न समझा जाए लेकिन यह सच्चाई है कि पानी, युद्ध का एक कारण बनता जा रहा है।

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