Jan ०३, २०२१ १९:५४ Asia/Kolkata

अमरीकी लेखक माइकल टी क्लार ने सन 2001 में एक लेख लिखा था जिसका शीर्षक था " तनाव का नया भुगोल "। इस लेख में उन्होंने विश्व वासियों को इस प्रकार से चेतावनी दी थीः निकट भविष्य में झड़पों के इलाक़े वह इलाक़े होंगे जहां प्राकृतिक संसाधन अधिक होंगे।

उत्पादन और मांग की प्रक्रिया से पैदा होने वाले दबाव और उसके साथ बढ़ती आबादी और दुनिया के बहुत से क्षेत्रों में तेज़ी से बढ़ने वाली आर्थिक गतिविधियों की वजह से महत्वपूर्ण पदार्थों तक पहुंच की भूख बहुत अधिक बढ़ गयी है। इस आधार पर ऊर्जा और जीवन के लिए ज़रूरी पदार्थों की कमी की वजह से बचे हुए संसाधनों पर क़ब्ज़े के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ जाएगी।

वह दुनिया में तेल के इस्तेमाल में वृद्धि का उल्लेख करते हुए कहते  हैं कि सन 2000 में दुनिया में प्रतिदिन 77 मिलयन बैरल तेल का इस्तेमाल होता था और सन 2020 में 110 मिलयन बैरल हो जाएगा लेकिन यह  सच्चाई है कि तेल उत्पादन, हर रोज़ बढ़ती मांग को पूरा नहीं कर सकता और इसी लिए ऊर्जा की मांग बढ़ जाएगी लेकिन पानी की दशा भी बहुत अच्छी नहीं है। आज इन्सान, आधे से अधिक पानी, पीने, धोने, खाने और उद्योग के लिए इस्तेमाल करता है और अधिक पानी की ज़रूरत दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इस आलेख में आया है कि पानी की पर्याप्त मात्रा रखने वाले कुछ क्षेत्रों को छोड़ कर अन्य सभी इलाक़ों में सन 2050 तक पानी के लिए संघर्ष तेज़ हो जाएगा और मौसम का बदलाव और धरती का बढ़ता तापमान भी पानी की मांग को अधिक कर रहा है। पानी के लिए भविष्य में युद्ध की झलक, सूडान, मिस्र, इस्राईल, सीरिया, जार्डन, भारत और पाकिस्तान के बीच झगड़ों में मिल रही है और यह वास्तव में पूरी दुनिया के लिए एक प्रकार की चेतावनी भी है। दुनिया और विशेषकर पश्चिमी एशिया में युद्ध के छाए काले बादलों के बीच बढ़ते जल संकट को लेकर रेड क्रास सोसाइटी के अधिकारी माइकल तल्हामी ने कई वर्षों पहले इस संबंध में चेतावनी दी थी। उन्होंने कहा था कि ... माइकल तल्हामी का कहना है कि पश्चिमी एशिया और उत्तरी अफ़्रीक़ा में लगातार युद्ध की स्थिति बनी रहने की वजह से इन इलाक़ों में लगातार जल संकट बढ़ता जा रहा है। उनका कहना है कि अगर यह हालात जारी रहे तो आने वाले दिनों में यमन और सीरिया सहित कई पश्चिमी एशिया के देशों में जल संकट इतना बढ़ जाएगा कि मानवीय जीवन इन देशों में ख़तरे में पड़ जाएगा।

विश्व की वर्तमान परिस्थितियों के मद्देनज़र, हम चाहें या न चाहें, वर्तमान परिस्थितियों को समझें या न समझें, पानी की कमी एक संकट में बदल चुकी है। इन हालात में अगर दुनिया के विभिन्न इलाक़ों में पानी के लिए युद्ध छिड़ जाए तो इस पर किसी को हैरत नहीं होना चाहिए और अगर जल्द ही कोई रास्ता नहीं निकाला गया तो सब को यह यक़ीन रखना चाहिए कि पानी के लिए टकराव और भी अधिक गंभीर रूप से होगा। पानी के लिए तनाव के कुछ नमूने आप को लेटिन अमरीका में नज़र आ जाएंगे। इस संबंध में अंतर-अमेरिकी विकास बैंक में कैंपोस जी जल और स्वच्छता विभाग के प्रमुख सर्जियो आई का कहना है ... सर्जियो का कहना है कि हमारे सामने सबसे प्रमुख मुद्दा साफ पानी और उसके वितरण का है। हम लगातार लैटिन अमेरिका के सभी देशों के साथ बात कर रहे हैं। लैटिन अमेरिका में जारी जल संकट को समझाने के लिए आपको हम कोचाबामा ले चलते हैं। सन 1999 के अंत से लेकर सन 2000 के मध्य तक बोलोविया के चौथे सबसे बड़े नगर कोचाबामा में निरंतर प्रदर्शन हुए।  इस प्रदर्शन की वजह , जल निगम का निजीकरण था। जल निगम के निजीकरण के खिलाफ लोगों में आक्रोश था और वह सड़क पर उतर कर उसका प्रदर्शन कर रहे थे। इसे सरकार के खिलाफ एक विद्रोह भी कहा गया। यह तनाव उस समय पैदा हुआ जब एक नयी नयी बनने वाली कंपनी ने बांध बनाने का फैसला किया जिससे पानी की क़ीमत में वृद्धि हो गयी जिसके बाद एक संघ बनाया गया और उसने पूरे नगर में प्रदर्शन शुरु कर दिया। प्रदर्शनों में एक व्यक्ति की मौत भी हुई। इन प्रदर्शनों को पानी के संकट का एक गंभीर लक्षण समझा गया।

अफ्रीका जाएं तो भी वहां हमें यही दशा नज़र आती है। विशेषज्ञों का कहना है कि नील नदी के लिए तनाव, इस्राईल की साज़िश की वजह से बढ़ रहा है जिसमें अमरीका भी पूरी तरह से शामिल है। यह तनाव वास्तव में एक युद्ध की आहट है। एथोपिया की ओर से अन्नेहज़ा बांध का निर्माण इस युद्ध के फलीते में आग लगाएगा। एथोपिया द्वारा इस बांध के निर्माण की फंडिग, इस्राईल के साथ ही साथ यूएई और अमरीका भी कर रहा है। एथोपिया की ओर से अन्नेहज़ा बांध के निर्माण के फैसले के मिस्र के पानी को काबू में रखने की कोशिश कहा जा रहा है और इससे मिस्र में पानी का संकट शुरु हो जाएगा।

जार्डन के अलग़द समाचार पत्र ने पानी के संकट पर एक लेख प्रकाशित किया था जिसका शीर्षक था। एशिया में पानी के लिए नया मोर्चा। इस लेख में चीन पर यह आरोप लगाया गया है कि वह पूर्वी एशिया में पानी के स्रोतों पर क़ब्ज़ा कर रहा है। लेख में कहा गया है कि कई दशकों के दौरान चीन ने पानी के सिलसिले में अपने पड़ोसियों के लिए कई प्रकार के खतरे पैदा किये हैं और उसने पानी को अपने पड़ोसियों पर अपनी पकड़ मज़बूत करने और प्रभाव बढ़ाने के लिए प्रयोग किया  है, वह नदियों पर धड़ल्ले से बांध बना रहा है  और इस तरह से वह नेपाल, क़ाज़ेकिस्तान, जैसे मकोंग नदी के तटवर्ती देश और अपने छोटे पड़ोसियों को  चीन पर निर्भर रख रहा है। इस बारे में विऑन नामक एक चैनल ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि चीन कई देशों में लगभग 87 हज़ार बांधों का निर्माण कर रहा है।

चीन ने अब तक पानी के बंटवारे पर अपने किसी भी पड़ोसी देश के साथ समझौता नहीं किया है लेकिन सूचनाओं और जानकारियों के बारे में वह सहयोग करता है ताकि बाढ़ आदि से लोगों की सुरक्षा की जाए मगर एक बार उसने भारत के साथ सूचनाएं साझा करने से भी इन्कार कर दिया था जिसकी वजह से भारत के पूर्वोत्तर में बाढ़ से बचाव की सरकारी क्षमता कमज़ोर हो गयी जिसके बाद ब्रहमपुत्र नदी में जब बाढ़ आयी तो उसने तिब्बत से निकले के बाद और बांग्लादेश में प्रवेश से पहले भारत में तबाही मचा दी थी। चीन दुनिया के उन तीन देशों में शामिल है जिन्होंने सन 1997 में अंतराष्ट्रीय जलमार्ग के कन्वेशंन के खिलाफ वोटिंग की थी। इस समझौते में कहा गया है कि संयुक्त तट रखने वाले देशों के लिए एक दूसरे के साथ जानकारियों का आदान प्रदान किया  जाना आवश्यक है  लेकिन भारत के साथ उसने एक समझौता किया है जिसके आधार पर ब्रहमपुत्र नदी के बारे में सूचनाओं का आदान प्रदान होता है।

महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि पूरी दुनिया के देश अन्य देशों को नदियों के बारे में सूचनाएं निशुल्क देते हैं लेकिन चीन रक़म लेकर ही यह काम करता है जबकि अंतरराष्ट्रीय समझौते में कहा गया है कि यह सेवा निशुल्क होना चाहिए। इस प्रकार से हम देखते हैं कि पानी पर आगे क्या कुछ हो सकता है और पानी का मानव जीवन में क्या महत्व है इस पर कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है इस लिए पूरी दुनिया को देर होने से पहले इस बेहद गंभीर संकट की आहट पर कान धरना चाहिए और उसके लिए गंभीर कदम उठाना चाहिए।

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