Feb १४, २०२३ १९:३२ Asia/Kolkata
  • भारत में बुल्डोज़र के नीचे कुचलता और आग में जलता न्याय, सरकार के साथ मिलकर सत्ता के सुख का आनंद लेने वाले न्यायधीशों इंसाफ़ की उम्मीद करना बेकार!

भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के कानपुर देहात ज़िले के रूरा थाना इलाक़े के मडौली गांव में अतिक्रमण विरोधी अभियान के दौरान सोमवार को एक महिला और उसकी बेटी की झोपड़ी में आग लगने की वजह से उसी में जलकर मौत हो गई।

प्राप्त जानकारी के मुताबिक़, मरने वाली दोनों महिलाओं के परिवार वालों का आरोप है कि अतिक्रमण हटाओ अभियान के दौरान जब महिलाएं झोपड़ी के अंदर थीं और अपनी झोपड़ी न तोड़ने की गुहार लगा रही थीं तभी पुलिस ने उनकी झोपड़ी में आग लगा दी। ग्रामीणों का कहना है कि अधिकारी सुबह बुल्डोज़र लेकर पहुंचे और उन्हें कोई पूर्व सूचना भी नहीं दी गई थी। वहीं पुलिस का कहना है कि मां-बेटी ने आत्महत्या की है। वैसे इस मामले में उप-जिलाधिकारी (एसडीएम), थानाध्यक्ष, चार लेखपालों, एक दर्जन से अधिक पुलिसकर्मियों सहित 39 लोगों के ख़िलाफ़ मंगलवार को एफआईआर दर्ज की गई है।  पीड़ितों की पहचान प्रमिला दीक्षित (45 वर्ष) और उनकी बेटी नेहा दीक्षित (20 वर्ष) के रूप में हुई है।

पुलिस महानिरीक्षक ने बताया कि हत्या, हत्या के प्रयास के अलावा मवेशियों को मारने या अपंग करने, घर को नष्ट करने के इरादे से आग लगाने और जान-बूझकर अपमान करने के आरोपों में एफआईआर दर्ज की गई है। उन्होंने बताया कि पुलिस ने एक आरोपी को गिरफ़्तार कर लिया है, जिसकी पहचान अब तक उजागर नहीं की गई है। इस बीच पीड़ितों के घर को गिराने में इस्तेमाल की गई जेसीबी को भी ज़ब्त कर लिया गया है। दो महिलाओं की मौत के बाद इलाक़े में तनाव को देखते हुए गांव और उसके आसपास भारी पुलिस बल तैनात किया गया है। इस बीच हाथरस की ही तरह गांव में पत्रकारों और विपक्षी पार्टी के नेताओं को पुलिस जाने से रोक रही है। जिसकी वजह से इस पूरे मामले में संदेह गहराता जा रहा है। लोगों का यह भी आरोप है कि पुलिस सबूतों को मिटाने के लिए इस तरह की घेराबंदी किए हुए है और किसी को जाने की अनुमति नहीं दे रही है।

वहीं इस घटना के बाद पूरे भारत में बुल्डोज़र और अतिक्रमण की कार्यवाही को लेकर बहस शुरु हो गई है। सबसे पहली बात तो यह है कि आमतौर पर देखा गया है कि पुलिस प्रशासन अतिक्रमण के नाम पर ग़रीबों की झोपड़ियों और दुकानों को ही तोड़ती है। दूसरे उन झोपड़ियों में रहने वालों को अपने बचाव का समय भी नहीं दिया जाता। तीसरे यह कि अदालतों तक पहुंचने से पहले ही प्रशासन उनपर कार्यवाही कर देता है। सबसे अहम बात यह है कि इन तमाम मामलों पर अदालतें चुप्पी साधे रहती हैं। सोशल मीडिया पर इन तमाम सवालों पर बहस हो रही है। लोगों का यह भी आरोप है कि जिस तरह सरकारें न्यायधीशों को बड़े-बड़े पद देकर सत्ता का सुख दे रही है उसको देखते हुए अब न न्यायपालिका और न ही न्यायधीशों से कोई इंसाफ़ की उम्मीदें रह गई हैं। वहीं संविधान को ताक पर रखकर जिस तरह सरकारें अपनी मर्ज़ी से किसी का भी घर तोड़ने का आदेश दे रही हैं उससे तो ऐसा लगता है कि भारत में अब सब कुछ सत्ता के हाथ में है। अदालतों को भी सत्ता में बैठे नेता चला रहे हैं। यही कारण है कि किसी प्रभावशाली व्यक्ति के लिए रात दो बजे भी अदालतों का दरवाज़ा खुल जाता है, जबकि एक आम इंसान के लिए उसकी उम्र गुज़र जाती हैं अदालतों का चक्कर काटते-काटते। वैसे ऐसी स्थिति में पहले भारत में यह कहकर इंसान शांत हो जाता था कि अब राम भरोसे ही है सब कुछ, लेकिन इस समय जो पार्टी सत्ता में है उसने राम को भी केवल अपने राजनीतिक स्वार्थ तक ही सीमित कर दिया है तो अब आम इंसान किस उम्मीद रखे उसे खुद समझ में नहीं आ रहा है। (रविश ज़ैदी R.Z)

नोटः लेखक के विचारों से पार्स टुडे हिन्दी का सहमत होना ज़रूरी नहीं है। 

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