Jun ०५, २०२४ १७:१० Asia/Kolkata
  • धर्म ने इंसानों के चिंतन- मनन पर बल दिया है/ धर्म और चिंतन- मनन
    धर्म ने इंसानों के चिंतन- मनन पर बल दिया है/ धर्म और चिंतन- मनन

पार्सटुडे- पिछले कुछ दशकों की अपेक्षा हालिया चार दशकों के दौरान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धर्म के बारे में अध्ययन का अधिक स्वागत किया गया है और धीरे- धीरे उसकी कई शाखायें हो गयीं हैं।

धर्म- कुछ ने धर्म की परिभाषा में कहा है कि कुछ चीज़ों और कानूनों पर आस्था धर्म है और उसने इंसान के जीवन के सिद्धांत, अख़लाक़ और जीवन के दूसरे पहलुओं के बारे में बात की है। दूसरे शब्दों में धर्म में कुछ आस्थायें और कानून हैं जो वही अर्थात ईश्वरीय संदेश के माध्यम से इंसान और इंसानी समाज को संचालित करता है। (जवाद आमूली, दीन शनासी, पेज 27)

 

धर्म इंसान की ज़िन्दगी में एक शक्तिशाली ताक़त है और धर्म का इतिहास उतना ही पुराना है जितना कि इंसान की ज़िन्दगी। आज इस बात के बहुत सारे प्रमाण व साक्ष्य मौजूद हैं कि इंसान धर्म स्वीकार करने के लिए एक प्रकार से विवश हैं और अध्ययन कर्ताओं को ऐसी कोई क़ौम नहीं मिली है जो किसी न किसी धर्म की अनुयाई न हो और हर कौम की ज़िन्दगी पर उसके गहरे प्रभाव पड़े हैं।

 

महान ईश्वर पवित्र क़ुरआन में कहता है कि हमने तुम्हारे फ़ाएदे के लिए धर्म को बनाया जिसकी सिफारिश नूह को की और जो कुछ तुम्हारी ओर (हज़रत मोहम्मद) वही किया और इब्राहीम, मूसा और ईसा को उसकी सिफ़ारिश की है कि इस चुने हुए धर्म को क़ायेम रखें और उसे अपनी इच्छानुसार अलग- अलग खंडों व भागों में बांटने से परहेज़ करें। (सूरे शूरा आयत 13)

अक़्ल- बहुत से दार्शनिकों का मानना है कि इंसान को जानवरों से अलग व भिन्न करने वाली चीज़ अक़्ल और उसके अंदर चिंतन- मनन करने की उसकी शक्ति है। यह चीज़ एक वास्तविकता है कि इंसान प्रगति व परिपूर्णता के मार्ग में अपनी अक़्ल से कितना लाभ उठाता है।

 

जो लोग अपनी बुद्धि व अक़्ल और चिंतन- मनन से काम नहीं लेते हैं महान ईश्वर ने पवित्र क़ुरआन में इस प्रकार के लोगों को जानवरों के समान बल्कि उनसे भी अधिक गुमराह बताया है।

महान ईश्वर पवित्र कुरआन में कहता है बहुत से इंसानों और जिनों को हमने नरक में डालने के लिए पैदा किया है उनके पास दिल हैं और वे उनसे सोचते- विचारते नहीं, और उनके पास आंखे हैं और वे उनसे देखते नहीं हैं और उनके पास कान हैं और वे उनसे सुनते नहीं हैं। ये लोग जानवरों की तरह बल्कि उनसे भी अधिक गुमराह हैं। (सूरे आराफ़ की आयत नंबर 179)

 

पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के कथनों में भी अक़्ल व बुद्धि से काम लेने पर बल दिया गया है और उसे आंतरिक मार्गदर्शक के रूप में याद किया गया है। लोगों पर दो दलीलें और दो तर्क हैं यानी इंसान के दो मार्गदर्शक हैं। एक ज़ाहिरी और दूसरा आंतरिक है। तो ज़ाहिरी मार्गदर्शक रसूल, अंबिया यानी पैग़म्बर और अइम्मा अलैहिमुस्सलाम हैं और आंतरिक मार्गदर्शक अक़्लें हैं। (ऊसूले काफ़ी जिल्द एक, पेज 16)

धर्म और अक़्ल- पवित्र क़ुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम ने जिस चीज़ पर बल दिया है उसका नतीजा यह है कि धर्म और अक़्ल को एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता और अगर कोई शख्स या सम्प्रदाय बुद्धि से काम लेना और चिंतत- मनन करना छोड़ दे तो सही मानों में उसने धर्म को नहीं समझा है और इसी प्रकार वह यह नहीं कह सकता कि उसका रास्ता ईश्वरीय और पैग़म्बरों का रास्ता है।

 

आज इस्लामी जगत विशेषकर शिया समुदाय दाइश, अलकायदा या बोकोहराम जैसे गुटों को इस्लामी नहीं समझता है और वह इन गुटों को गुमराह गुट कहता है और उसका मानना व कहना है कि इन गुटों को साम्राज्यवादी हितों की पूर्ति के लिए बनाया गया है। उसकी एक मुख्य वजह यह है कि धर्म विशेषकर इस्लाम ने बुद्धि से काम लेने और शांतिपूर्ण ढंग से ज़िन्दगी गुज़ारने पर बल दिया है और वह दाइश और बोकोहराम जैसे गुटों के कृत्यों की पुष्टि नहीं कर सकता। क्योंकि दाइश ने मुसलमानों के अस्ली दुश्मन इस्राईल से जंग करने के बजाये इराक और सीरिया में लोगों, महिलाओं और बच्चों का जनसंहार किया है। MM

कीवर्ड्सः धर्म क्या है, धर्म की परिभाषा, अक़्ल और धर्म, क़ुरआन में चिंतन- मनन, धर्म और सोच का संबंध

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