बड़ा संकट और नाकाम नेता, कोरोना से सामने आ गई लीडरों की हक़ीक़त, कोई संकट के वजूद का इंकार करता रहा, किसी ने इसे दमन का माध्यम बना लिया!
(last modified Tue, 21 Apr 2020 05:24:10 GMT )
Apr २१, २०२० १०:५४ Asia/Kolkata
  • बड़ा संकट और नाकाम नेता, कोरोना से सामने आ गई लीडरों की हक़ीक़त, कोई संकट के वजूद का इंकार करता रहा, किसी ने इसे दमन का माध्यम बना लिया!

अंतर्राष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ मोज़ीस नेईम का मानना है कि कोरोना संकट ने दुनिया को हिलाकर रख दिया वह भी इन हालात में जब नेतृत्व का एक बड़ा संकट मौजूद है।

कोरोना वायरस से पैदा होने वाली परिस्थितियों के बहुत से नतीजे सामने आएंगे। एक नतीजा कोरोना वायरस की महामारी सामने आने के सामय परफ़ार्मेन्स के स्तर पर छोटे साबित होने वाले नेताओं के ख़िलाफ़ मज़बूत प्रतिक्रिया है।

स्पेन के एलपाइस अख़बार में अपने लेख में मोज़ीस ने लिखा कि कोरोना वायरस से उन देशों का क्या हाल होगा जो ग़रीब हैं और जहां ग़रीबी के चलते लाकडाउन में रह पाना असंभव है। अगर कोरोना की कई लहरें आ गईं तब क्या होगा? क्या दुनिया के नेता इस संकट से निपट पाने में सक्षम होंगे।

अमरीका के मशहूर डिपलोमैट हेनरी केसेंजर ने जो कहा वह बहुत महत्वपूर्ण है। उनका कहना है कि कोरोना वायरस के बाद अब दुनिया पूरी तरह बदल जाएगी। यदि दुनिया के नेता कोरोना से सही प्रकार न निपट सके तो पूरा दुनिया जल उठेगी।

हेनरी केसेंजर

 

मोज़ीस का मानना है कि इस समय दुनिया में कुछ अपवादों को छोड़कर शेष देशों में मौजूद लीडरशिप की हालत बहुत ख़राब है। संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव एंटोनियो गुटेरस ने कहा कि दुनिया के नेताओं के पास एक ही रास्ता है कि सब एकजुट हो जाएं वरना कोरोना की महामारी हम सब को ध्वस्त करके चली जाएगी।

मोज़ीस ने अपने लेख में ब्रितानी स्तंभकार मार्टिन वुल्फ़ का हवाला दिया जिन्होंने लिखा है कि वर्तमान संकट दूसरे विश्व युद्ध के बाद का सबसे बड़ा संकट है। दुनिया को इस परिस्थिति का सामना इन हालात में करना पड़ा है कि जब देशों के बीच गहरा मतभेद है और बड़े पैमाने पर विभाजन पाया जाता है। सरकारों के कामकाज की बात की जाए तो वह बेहद कमज़ोर है।

मिसाल के तौर पर अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प के रवैए को देख लीजिए और अगर यूरोप की बात की जाए तो ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जानसन, हंग्री के नेता विक्टर ओरबन और स्पेन के नेता बीद्रो सांचेज़ की मिसालें सामने हैं। यह लोग तो मानने को तैयार ही नहीं थे कि संकट क़रीब आ पहुंचा है और फिर जब हालात ख़राब हुए तो वह कुछ भी नहीं कर पाए।

अगर ब्राज़ील के राष्ट्रपति बोलसोनारो की बात की जाए तो उन्हें भी मामले की गंभीरता का एहसास ही नहीं था, फ़िलिपीन के राष्ट्रपति ने तो लाक डाउन तोड़ने वाले को गोली मार देने के आदेश दिए। भारत के प्रधानमंत्री मोदी की सरकार कोरोना वायरस की महामरी का इस्तेमाल मुसलमानों के उत्पीड़न के लिए कर रही है और उन्हीं को सारी समस्या की जड़ ठहराने पर तुली हुई है।

स्रोतः स्पैनिश मीडिया

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