Aug २४, २०२१ १८:३५ Asia/Kolkata
  • क़ुरआन की सबसे ख़ूबसूरत कहानी कौन सी है? कहानियों का इतिहास क्या है?

अज्ञानता के काल में जब लोग अपने दैनिक कामों से फ़ुरसत पाते थे तो वे किसी एक स्थान पर इकटठा होकर मनोरंजन किया करते थे।  एसे मे हर एक का यह प्रयास रहता था कि वह इस महफिल को जहां तक हो सके आकर्षक बनाए रखे। 

एक स्थान पर जमा होने वालों में कोई शेर पढ़ता तो कोई कहानी सुनाता तो कोई अपने पूर्वजों की प्रशंसा में भाषण देता था। जिस ज़माने में क़ुरआन नाज़िल हुआ था उस ज़माने में अरब जगत विशेषकर मक्के में अलंकृत भाषा और वाकपटुता अपने चरम पर थी। शेर कहने और भाषण देने में उस समय के अरब बड़ी दक्षता रखते थे।

इस्लाम के आगमन से पहले अज्ञानता के काल के अरब अपनी कविताओं को “ओकाज़” नामक बाज़ार में लाकर पढ़ा करते थे।  उस काल में क़बीलों के बाज़ार विस्तृत मैदानी क्षेत्र मे होते थे।  बाज़ार के लिए यह शर्त थी कि एक तो वह खुले मैदान में हों और दूसरे वह दूर से दिखाई दे।  ओकाज़ नामक बाज़ार में यह सारी बातें पाई जाती थीं।  यही कारण है कि अज्ञानता के काल में ओकाज़ बाज़ार को विशेष ख्याति प्राप्त थी।  इस बाज़ार में रोम, ईरान, भारत और चीन की वस्तुएं मौजूद होती थीं।  यह सारी चीज़ें एक ही समय में अरब के किसी भी बाज़ार मे नहीं पाई जाती थीं। ओकाज़ बाज़ार में वस्तुओं के साथ ही ग़ुलामों की भी बिक्री होती थी।  यह बाज़ार हर साल हज से पहले ज़ीक़ादा के महीने में लगता था और बहुत बड़ी संख्या मे लोग इसमें आते थे।

मक्का शहर की पुरानी तसवीर

 

इन सारी बातों के बावजूद जिस चीज़ ने ओकाज़ बाज़ार को ख्याति प्रदान की थी वह वहां पर पाई जाने वाली वस्तुएं नहीं बल्कि वहां पर आयोजित होने वाली सांसकृतिक संगोष्ठियां थीं।  वहां पर अज्ञानता के काल के बड़े-बड़े कवि और साहित्यकार आकर अपने काव्य को पेश करते थे।  वे कविताएं पढ़ते और भाषण दिया करते थे।  यह लोग अपने अरब के इतिहास, अपने क़बीले की तारीफ़ें, क़बीले के पूर्वजों की प्रशंसा आदि को कविताओं के माध्यम से पेश करते थे ताकि दूसरे क़बीले वालों को उनके बारे में पता चले।  विभिन्न क़बीले वाले अपने क़बीले के कवि को ओकाज़ बाज़ार में लाकर पेश करते और वह कविताएं पढ़कर दूसरों को यह बताने का प्रयास करते थे कि उनका क़बीला और क़बीले वाले कैसे हैं।  अगर किसी शायर का शेर सबसे अच्छा होता तो उसके शेर को काबे की दीवार पर टांग दिया जाता था।

कविताएं पढ़ने और भाषण देने के साथ ही ओकाज़ के बाज़ार में धर्म के प्रचार का भी माहौल था।  वहां पर उपदेशक, उपदेश दिया करते थे।  इस बाज़ार में सन्यासी भी आकर अपनी बातें पेश करते थे।  ईसाई और यहूदी धर्म के प्रचारक भी अपने धर्म का प्रचार ओकाज़ बाज़ार में आकर किया करते थे।  कहानियां सुनाने वाले यहां पर आकर दूसरे देशों के बारे मे क़िस्से सुनाते थे जिसे लोग बहुत ही ध्यान से सुनते थे।

अज्ञानता के काल में अरब जगत में एक दक्ष वक्ता का बहुत महत्व था।  अगर किसी क़बीले में कोई दक्ष वक्ता होता तो वह उस क़बीले के लिए बहुत ही गौरव की बात होती थी।  अपने क़बीले में किसी दक्ष वक्ता के होने पर क़बीले वाले बड़े गर्व से दूसरे क़बीले वालों को बताते थे कि उनके यहां एक दक्ष वक्ता मौजूद है।  इस बात का महत्व इससे पता चलता है कि एक जवान विवाह के लिए किसी क़बीले में गया।  लड़की वालों ने मालूम किया की लड़के के पास क्या है।  उसने जवाब में कहा कि मेरे पास संपत्ति नहीं है।  लड़के के साथ आने वालों ने बताया कि उसके पास संपत्ति तो नहीं है लेकिन उसके क़बीले में एक दक्ष वक्ता मौजूद है।  वह अपने फन में इतना माहिर है कि घंटों भाषण देने की क्षमता उसके भीतर पाई जाती है।  इसी बात के कारण लड़की वालों ने अपनी बेटी का विवाह उस लड़के से कर दिया जिसके क़बीले में एक दक्ष वक्ता मौजूद था।

 

उस समय में अरब जगत में कहानी और क़िस्से सुनाने की भी रस्म थी।  वे लोग किसी एक स्थान पर आकर जमा हो जाते और फिर घंटों  कहानी सुनाने का सिलसिला जारी रहता। बताया जाता है कि उस समय ईरान के कथा सुनाने वालों को विशेष ख्याति हासिल थी। जब लोगों को यह पता चलता था कि ईरानी व्यापारी वहां पर आए हैं तो उनसे कहानियां सुनने के लिए लोग जमा हो जाया करते थे।  लोगों को ईरानी कहानियां बहुत पसंद थीं।

जब इस्लाम का उदय हुआ तो अरबों के बीच क़िस्सागोई या कहानी सुनाने की प्रथा कम होती गई।  पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) काल्पनिक कथाओं के स्थान पर पवित्र क़ुरआन की आयतों को पढ़कर सुनाते थे।  इसके बावजूद अब भी बहुत से लोग चाहते थे कि प्राचीन काल के किस्से उनको सुनाए जाएं।  इस प्रकार के लोग पैग़म्बरे इस्लाम के पास आते और उनसे कहते कि हम चाहते हैं कि आप पुराने ज़माने के लोगों के बारे मे हमें कहानियां सुनाइए।

जिस समय लोग पैग़म्बरे इस्लाम से प्राचीनकाल की कहानियां सुनाने की मांग कर रहे थे उसी समय सूरए यूसुफ की तीसरी आयत नाज़िल हुई जिसमें ईशवर कहता है कि हमने तुमपर क़ुरआन नाज़िल करके यूसुफ की दास्तान को जो, सबसे अच्छी दास्तान है, तुमको बताया।  निश्चित रूप से तुम इससे पहले इन बातों से अपरिचित थे। 

 

हज़रत यूसुफ़ की दास्तान को सबसे अच्छी दास्तान बताया गया है क्योंकि इसका अंत सुखद है।  इसमें अंत में युसुफ को हुकूमत मिलती है, उनके भाई तौबा कर लेते हैं, बाप को आखों की रौशनी मिल जाती है, जिस देश में वर्षों से सूखा पड़ा होता है वहां का सूखा समाप्त हो जाता है और अंततः हर ओर खुशी की लहर दौड़ती है।  पवित्र क़ुरआन के कुछ व्याख्याकारों ने कहा है कि हज़रत यूसुफ की कहानी को इसलिए “अहसनुल क़िसस” कहा गया है क्योंकि इस कहानी में सच्चे प्रेम, जेल, आज़ादी, सूखा, हरियाली और अंततः खुशी की बात कही गई है।  तत्वदर्शिता की ओर झुकाव रखने वाले क़ुरआन के कुछ व्याख्याकारों ने कहा है कि इसको सबसे अच्छी कहानी का नाम इसलिए दिया गया है क्योंकि इसके सबसे महत्वपूर्ण कैरेक्टर हज़रत यूसुफ एक अच्छे इंसान है जो सबके लिए भलाई चाहते हैं।

इस कहानी में हसद रखने वालों के अंजाम को बहुत अच्छी तरह से देखा जा सकता है।  इसमें षडयंत्रों को विफल होते दिखाया गया है।  तक़वे के महत्व को दर्शाया गया है।  पवित्र क़ुरआन के एक जाने माने ईरानी व्याख्याकार आयतुल्लाह जवादी आमोली इसकी व्याख्या करते हुए लिखते हैं कि हज़रत यूसुफ़ की कहानी की शैली, कहानी सुनाने की सबसे अच्छी शैली है।  क़ुरआन तक़वे को सबसे अच्छी पूंजी बताता है।

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