क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-828
सूरए साफ़्फ़ात आयतें 62-68
أَذَلِكَ خَيْرٌ نُزُلًا أَمْ شَجَرَةُ الزَّقُّومِ (62) إِنَّا جَعَلْنَاهَا فِتْنَةً لِلظَّالِمِينَ (63)
यह (स्वर्ग) आतिथ्य के लिए अच्छा है या ज़क़्क़ूम का पेड़? (37:62) निश्चय ही हमने उस (पेड़) को ज़ालिमों के लिए दंड व यातना बना दिया है। (37:63)
पिछली आयतों में स्वर्ग वालों को मिलने वाली अनुकंपाओं और ऐश्वर्य के कुछ उदाहरणों का उल्लेख किया गया था। ये आयतें नरक वालों से उनकी स्थिति की तुलना करते हुए कहती हैं। विभिन्न प्रकार के पेयों के साथ स्वर्ग वालों का आतिथ्य और सत्कार बेहतर है या तरह तरह के कड़वे व अप्रिय पेयों के साथ नरक वालों का सत्कार?
स्पष्ट है कि इन दोनों की आपस में तुलना नहीं की जा सकती कि यह कहा जाए कि कौन बेहतर है क्योंकि नरक तो आराम की जगह है ही नहीं कि विभिन्न प्रकार के आनंदों व आराम वाले स्वर्ग से उसकी तुलना की जा सके। इस तरह की बात निश्चेत लोगों को जगाने और सतर्क करने के लिए होती है कि अगर वे जो अनुचित व ग़लत काम कर रहे हैं, उसमें उन्हें आनंद मिल रहा है तो वे उसकी तुलना स्वर्ग के असीम व अमर आराम व आनंद और नरक में दंड व यातना में ग्रस्त होने से करें।
इन आयतों से हमने सीखा कि कामों की एक दूसरे से तुलना करते समय, नश्वर और जल्दी समाप्त होने वाले सांसारिक परिणामों को न देखा जाए बल्कि उन पर परलोक में मिलने वाले दंड या पारितोषिक को भी मद्देनज़र रखा जाए।
नरक में जाने की कसौटी, अत्याचार है, ख़ुद पर अत्याचार, दूसरों पर अत्याचार, ईश्वरीय धर्म पर अत्याचार और ईश्वर के प्रिय बंदों पर अत्याचार।
आइये अब सूरए साफ़्फ़ात की आयत नंबर 64, 65 और 66 की तिलावत सुनें।
إِنَّهَا شَجَرَةٌ تَخْرُجُ فِي أَصْلِ الْجَحِيمِ (64) طَلْعُهَا كَأَنَّهُ رُءُوسُ الشَّيَاطِينِ (65) فَإِنَّهُمْ لَآَكِلُونَ مِنْهَا فَمَالِئُونَ مِنْهَا الْبُطُونَ (66)
वह एक पेड़ है जो नरक की तह से निकलता है। (37:64) उसकी कलियां मानो शैतानों के सिर (जैसे कुरुप व वीभत्स) हैं। (37:65) तो नरक वाले उसमें से खाएँगे और उसी से पेट भरेंगे। (37:66)
ये आयतें ज़क़्क़ूम के बारे में बताती हैं जिसका उल्लेख पिछली आयत में हुआ था। इसी तरह सूरए दुख़ान की 43वीं से 46वीं आयतों में भी ज़क़्क़ूम के बारे में इसी तरह की बातों का उल्लेख हुआ है। इन सब आयतों के मुताबिक़ ज़क़्क़ूम एक प्रकार का पेड़ है जो नरक की जलती हुई आग के बीच उगता है और नरक वाले उसका फल खाते हैं। स्वाभाविक है कि जो पेड़ पानी से नहीं बल्कि आग से उगता हो, उसमें जलाने वाली ही विशेषता होगी और उसका फल, खाने वाले को यातना ही देगा।
इस पेड़ के फल के बुरे स्वाद व गंध के अलावा क़ुरआने मजीद ने कुरूपता व डरावनेपन में इसे शैतान व राक्षस के सिर जैसा बताया है। पुराने ज़माने में लोग, राक्षस के सिर को बड़ा ही डरावना बताया करते थे जबकि फ़रिश्तों को अपने मन में सुंदर व मनमोहक समझते थे जबकि किसी ने भी न तो राक्षस को देखा है और न ही फ़रिश्ते को।
इन आयतों से हमने सीखा कि प्रलय की व्यवस्था, इस संसार की व्यवस्था से अलग है। यही कारण है कि नरक की तह में और उसकी धधकती हुई आग के बीच भी पेड़ के उगने की संभावना पाई जाती है।
जो लोग दुनिया में शैतान के आदेशों का पालन करते हैं वे नरक में उन पौधों व पड़ों के दंड में ग्रस्त होंगे जो हरे भरे व सुंदर होने के बजाए, बुरे व घृणित हैं, ज़मीन से निकलने वाले शैतानों के भयानक सिरों की तरह।
आइये अब सूरए साफ़्फ़ात की आयत नंबर 67 और 68 की तिलावत सुनें।
ثُمَّ إِنَّ لَهُمْ عَلَيْهَا لَشَوْبًا مِنْ حَمِيمٍ (67) ثُمَّ إِنَّ مَرْجِعَهُمْ لَإِلَى الْجَحِيمِ (68)
फिर उस पर उन्हें पीन के लिए खौलता हुआ पानी मिलेगा। (37:67) फिर इसके बाद उनकी वापसी (नरक की) उसी भड़कती हुई आग की ओर होगी। (37:68)
स्वाभाविक है कि ज़क़्क़ूम के पेड़ का फल खाने पर प्यास लगेगी और ये आयतें कहती हैं कि जो लोग ज़क़्क़ूम का फल खाएंगे, वे अपनी प्यास बुझाने के लिए ऐसा पानी पिएंगे जो अत्यंत गर्म, जलाने वाला और दूषित होगा और प्यास बुझाने के बजाए प्यास भड़काने वाला होगा।
आगे चल कर आयतें कहती हैं कि इन सबके बाद वे नरक में दाख़िल होंगे। इसका मतलब यह है कि ज़क़्क़ूम के पेड़ का फल खाने और उसके बाद गर्म पानी पीने के बारे में जो कुछ कहा गया है, वह नरक में जाने से पहले नरक वालों का स्वागत होगा, जैसे ख़ुशी की महफ़िल या समारोह में मेहमानों के पहुंचने पर उनका स्वागत किया जाता है। अगर नरक में पहुंचने से पहले का स्वागत इस प्रकार का है तो फिर नरक में जाने के बाद उनका किस तरह स्वागत किया जाएगा?
इन आयतों से हमने सीखा कि नरक वालों को भी स्वर्ग वालों की तरह खाने-पीने को मिलेगा लेकिन वह न केवल यह कि स्वादिष्ट और अच्छा नहीं होगा बल्कि उसका रूप और स्वाद भी बुरा होगा और उससे उन्हें यातना होगी।
जो लोग दुनिया में अपना पेट हराम से भरते हैं और ईश्वर के आदेशों पर ध्यान नहीं देते, प्रलय में भी उनका पेट ऐसी चीज़ों से भरेगा जो उनके लिए पीड़ा व यातना का कारण होंगी।
प्रलय के अलग अलग चरण हैं। नरक वाले विभिन्न चरणों से गुज़रने के बाद, नरक में अपने अस्ली ठिकाने तक पहुंचेंगे।