क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-829
सूरए साफ़्फ़ात आयतें 69 -78
إِنَّهُمْ أَلْفَوْا آبَاءَهُمْ ضَالِّينَ (٦٩) فَهُمْ عَلَىٰ آثَارِهِمْ يُهْرَعُونَ (٧٠) وَلَقَدْ ضَلَّ قَبْلَهُمْ أَكْثَرُ الْأَوَّلِينَ (٧١)
इन आयतों का अनुवाद हैः
ये वे लोग हैं जिन्होंने अपने बाप-दादा को पथभ्रष्ट पाया।(37:69) इसके बाद भी वे उन्हीं के पद-चिन्हों पर दौड़ रहे हैं।(37:70) निश्चय ही उनसे पहले वाले अधिकतर लोग भी गुमराह हो चुके हैं। (37:71)
पिछले कार्यक्रम में नरक में काफ़िरों व अपराधियों की अत्यंत कठिन व पीड़ादायक स्थिति का उल्लेख किया गया। ये आयतें उनके नरक में जाने के कारण का उल्लेख करते हुए कहती हैं। उन लोगों ने बिना सोचे-समझे अपने पूर्वजों व बाप-दादा के विचारों व आस्थाओं को स्वीकार कर लिया और उनकी राह का अंधा अनुसरण किया। हालांकि अगर वे ग़ौर करते तो समझ जाते कि उनके विचार ग़लत हैं और उनका कोई सही व बौद्धिक आधार नहीं है।
आगे चलकर आयतें कहती हैं कि खेद की बात है कि इस तरह का अंधा अनुसरण इतिहास में विभिन्न जातियों व राष्ट्रों में प्रचलित रहा है। बहुत से लोग सोचते हैं कि उनके पूर्वजों की परंपराएं, विचार व आस्थाएं सही हैं। यहां तक कि अगर उन्हें उन परंपराओं व विचारों के ग़लत होने का पता चल भी जाए तो वे उनके बारे में कुछ कहने और उनके ग़लत होने की घोषणा करने का साहस नहीं करते।
अतीत के लोगों व पूर्वजों की धरोहर की रक्षा का मतलब, उनका तर्कहीन और अंधा अनुसरण नहीं है। उदाहरण के तौर पर अगर इंसान, विज्ञान में केवल पूर्वजों के ज्ञान को ही काफ़ी समझता तो कभी भी उसके जीवन में कोई प्रगति या विकास दिखाई नहीं देता। दूसरे शब्दों में पूर्वजों की धरोहरों की रक्षा का मतलब उनकी अच्छी व लाभदायक परंपराओं और रीति-रिवाजों की रक्षा है।
इन आयतों से हमने सीखा कि इस्लामी संस्कृति में आस्थाओं के मामले में दूसरों का अनुसरण सही नहीं है, न तो बाप-दादाओं का और न ही धर्मगुरुओं का। हर किसी को एकेश्वरवाद, नुबुव्वत और प्रलय संबंधी बुनियादी आस्थाओं के बारे में ख़ुद अध्ययन करना चाहिए और तर्क के आधार पर विश्वास तक पहुंचना चाहिए।
तर्कहीन व अंधा अनुसरण, इंसान को लोक-परलोक में बुरे अंजाम से दोचार कर देता है।
पूर्वजों की परंपराओं, विचारों व आस्थाओं को जाति व मूल संबंधी भावनाओं के आधार पर नहीं बल्कि बुद्धि व तर्क की कसौटी पर परखना चाहिए।
अब आइए सूरए साफ़्फ़ात की आयत संख्या 72 से 74 तक की तिलावत सुनते हैं,
وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا فِيهِم مُّنذِرِينَ (٧٢) فَانظُرْ كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الْمُنذَرِينَ (٧٣) إِلَّا عِبَادَ اللَّهِ الْمُخْلَصِينَ (٧٤)
इन आयतों का अनुवाद हैः
और निश्चय ही हमने उनके बीच सचेत करने वाले (पैग़म्बर) भेजे थे।(37:72) तो अब देख लो कि उनका कैसा अंजाम हुआ जिन्हें सचेत किया गया था। (37:73) (वे सभी तबाह हो गए) सिवाय अल्लाह के उन (निष्ठावान) बंदों के जिन्हें उसने चुन लिया है। (37:74)
पिछली आयतों में गुमराह लोगों के नरक में जाने का उल्लेख किया गया था। यह आयतें कहती हैं कि इन लोगों की गुमराही इस वजह से नहीं थी कि इन्हें ईश्वरीय मार्गदर्शक नहीं मिले थे। क्योंकि अल्लाह ने विभिन्न जातियों में ऐसे लोगों को भेजा था जो उनका मार्गदर्शन करते थे, उन्हें उपदेश देते थे और लोक-परलोक में बुरे अंजाम की ओर से डराते थे।
हालांकि आसमानी किताब वाले पैग़म्बर संख्या में कम रहे हैं लेकिन बहुत से पैग़म्बर, उन बड़े पैग़म्बरों की शिक्षाओं का प्रचार करते थे, यहां तक कि हदीसों में आया है कि पैग़म्बरों की संख्या एक लाख चौबीस हज़ार तक थी।
पैग़म्बरों की अहम ज़िम्मेदारियों में से एक, लोगों को शिक्षित करना, उन्हें अंधविश्वास से मुक्त करना और अनेकेश्वरवाद, कुफ़्र व अत्याचार से दूर करना था। लेकिन खेद की बात है कि बहुत से लोग इन हितैषी शिक्षकों के उपदेशों और चेतावनियों पर ध्यान नहीं देते थे और लोक-परलोक में बुरे अंजाम में ग्रस्त हो जाते थे।
अलबत्ता अल्लाह के निष्ठावान बंदे, जो जीवन के सभी मामलों में केवल अल्लाह को नज़र में रखते हैं और उसी को ख़ुश करने की लगातार कोशिश करते हैं, बुरे अंजाम से दूर हैं और उन्हें कल्याण व मोक्ष प्राप्त होगा। निष्ठावान बंदे अगर अल्लाह की पहिचान औ उस पर ईमान में परिपूर्णता के दर्जे तक पहुंच जाते हैं तो उन्हें अल्लाह की ओर से विशेष पारितोषिक हासिल होता है ताकि वे आंतरिक इच्छाओं व शैतान के उकसावे के ख़तरों से सुरक्षित रहें।
इन आयतों से हमने सीखाः
नरक से बचाने के लिए गुमराहों को सचेत करना, उस घर के लोगों को सचेत करने की तरह ज़रूरी है जिसमें आग लगने वाली है।
अगर समाज के ज़्यादातर लोग गुमराह हो जाएं तब भी उनके जैसा नहीं हो जाना चाहिए बल्कि उन्हें उपदेश देने और उनका मार्गदर्शन करने की कोशिश करनी चाहिए।
अतीत के लोगों और पिछली जातियों के इतिहास का अध्ययन और उनके अंजाम पर ध्यान देना, इंसान के लिए पाठ और उसकी प्रगति का कारण है जिससे उसे सही व ग़लत को समझने में मदद मिलती है।
अल्लाह की बंदगी व उपासना में निष्ठा, इंसान के कल्याण और बुरे अंजाम से उसके बचने का कारण है।
आइए अब सूरए साफ़्फ़ात की आयत नंबर 75 से 78 तक की तिलावत सुनते हैं,
وَلَقَدْ نَادَانَا نُوحٌ فَلَنِعْمَ الْمُجِيبُونَ (٧٥) وَنَجَّيْنَاهُ وَأَهْلَهُ مِنَ الْكَرْبِ الْعَظِيمِ (٧٦) وَجَعَلْنَا ذُرِّيَّتَهُ هُمُ الْبَاقِينَ (٧٧) وَتَرَكْنَا عَلَيْهِ فِي الْآخِرِينَ (٧٨)
इन आयतों का अनुवाद हैः
और (इससे पहले) नूह ने हमें पुकारा था, तो देखो कि हम कैसे अच्छे जवाब देने वाले हैं।(37:75) और हमने उन्हें और उनके घर वालों को बड़े दुख व पीड़ा से बचा लिया।(37:76) और हमने उनके वंश ही को बाक़ी रखा।(37:77) और बाद में आने वाली नस्लों में उनका अच्छा नाम छोड़ा। (37:78)
पिछली आयतों में कहा गया कि अल्लाह ने पिछली जातियों के बीच अनेक पैग़म्बर भेजे थे। ये आयतें उनमें से एक पैग़म्बर यानी हज़रत नूह अलैहिस्सलाम की तरफ़ इशारा करती हैं जो एक बड़े पैग़म्बर हैं। आयतें कहती हैं कि हज़रत नूह ने बरसों तक अपनी जाति के लोगों के बीच धर्म का प्रचार किया, उन्हें उपदेश दिए और कुफ़्र व अनेकेश्वरवाद से रोकते हुए नरक से डराया लेकिन अधिकतर लोगों ने उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया और उनकी पैग़म्बरी को झुठला दिया।
आख़िरकार हज़रत नूह, अपनी जाति के मार्गदर्शन की ओर से निराश हो गए और उन्होंने अल्लाह से प्रार्थना की कि वह काफ़िरों को जड़ से तबाह करके ईमान वालों को मुक्ति दे दे। ईश्वर ने उनकी दुआ को स्वीकार कर लिया और फिर एकए भयानक तूफ़ान आया और हर जगह पानी ही पानी हो गया जिसके परिणाम स्वरूप सारे काफ़िर मारे गए और केवल ईमान वाले ही, जो हज़रत नूह के वादों पर ईमान रखते थे, उनके साथ नाव में सवार होकर बच गए।
इन आयतों से हमने सीखा कि दुआ, अल्लाह की सहायता प्राप्त करने का रास्ता है। अलबत्ता उन्हीं लोगों के लिए जो अपनी ज़िम्मेदारियों को सही तरह से पूरा करते हैं। अल्लाह के सच्चे बंदों पर जब कठिन समय आता है तो वे अल्लाह से दुआ व प्रार्थना करके कठिनाइयों को नियंत्रित कर लेते हैं और समस्याओं से मुक्ति पा जाते हैं। नस्लों को बाक़ी रखना या तबाह कर देना, अल्लाह के हाथ में है। अल्लाह ने हज़रत नूह, उनके साथियों और उनकी पैग़म्बरी पर ईमान रखने वालों को भयंकर तूफ़ान से बचा लिया और गुमराहों को तबाह कर दिया।
नेक लोग, भले कर्म करने और अल्लाह से डरने वाले आख़िरकार लोक-परलोक में बड़ी मुसीबतों व कठिनाइयों से मुक्ति पा लेते हैं और उनका अंजाम अच्छा होता है।