Nov १०, २०२१ २०:१३ Asia/Kolkata

सूरए साफ़्फ़ात आयतें 93 -101

فَرَاغَ عَلَيْهِمْ ضَرْبًا بِالْيَمِينِ (93) فَأَقْبَلُوا إِلَيْهِ يَزِفُّونَ (94) قَالَ أَتَعْبُدُونَ مَا تَنْحِتُونَ (95) وَاللَّهُ خَلَقَكُمْ وَمَا تَعْمَلُونَ (96)

फिर वे (मूर्तियों की तरफ़ गए और) उन पर सीधे हाथ का भरपूर वार किया। (37:93) फिर वे लोग (वापस आकर) भागे भागे उनकी ओर आए। (37:94) इब्राहीम ने कहाः क्या तुम अपनी ही तराशी हुई चीज़ों को पूजते हो? (37:95) जबकि ईश्वर ही ने तुम्हें भी पैदा किया है और उन चीज़ों को भी, जिन्हें तुम बनाते हो? (37:96)

पिछले कार्यक्रम में बताया गया कि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को मूर्ति पूजा करने वालों को निश्चेतना से जगाने के लिए एक अवसर का इंतेज़ार था। उनकी कोशिश थी कि उन्हें यह समझाएं कि मूर्तियां कुछ नहीं कर सकतीं और इन निर्जीव वस्तुओं का उनके भविष्य और जीवन पर कोई प्रभाव नहीं है।

इसी लिए वे, धार्मिक पर्व के दिन, जब सब लोग शहर से बाहर निकल गए, बीमारी के बहाने शहर में ही रुके रहे। एक उचित अवसर पर वे कुल्हाड़ी लेकर उपासना स्थल पहुंचे और सबसे बड़ी मूर्ति को छोड़ कर सभी बुतों को तोड़ दिया। जब मूर्ति पूजा करने वाले वापस लौटे तो उन्हें एक अजीब और अविश्वसनीय दृश्य दिखाई दिया। उनके छोटे बड़े देवी-देवता टूट कर बिखरे पड़े थे।

हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम द्वारा मूर्तियों और मूर्ति पूजा की आलोचना के अतीत को देखते हुए वे सीधे उनके पास पहुंचे और चूंकि वे उनके साथ शहर से बाहर नहीं गए थे, इस लिए उन्हें विश्वास हो गया कि यह काम उन्हीं का है। इसी लिए वे लोग बड़े ग़ुस्से में उनके पास पहुंचे ताकि उन्हें सबक़ सिखाएं।

हज़रत इब्राहीम उनके क्रोध व आक्रोश से बिलकुल भी नहीं घबराए और उन्होंने ठोस व तर्कसंगत तरीक़े से उनकी बातों का जवाब दिया। उन्होंने कहा कि कौनसा बुद्धिमान इंसान, उस चीज़ की पूजा करता है जिसे उसने ख़ुद बनाया है? अगर बनाई हुई चीज़ या रचना की पूजा की जा सकती है तो बनाने वाला या रचयिता तो निश्चित रूप से पूज्य हो सकता है। इस लिए बुतों की पूजा करने के बजाए अनन्य ईश्वर की उपासना करो क्योंकि ये मूर्तियां भी उसकी रचना हैं, जैसे कि तुम सब भी उसकी उचनाएं हो।

इन आयतों से हमने सीखा कि गुमराही के कारणों को ख़त्म करने के लिए सही कार्यक्रम तैयार करना चाहिए और सही समय पर वार करना चाहिए।

अनेकेश्वरवाद से संघर्ष और गुमराही के कारणों को जड़ से उखाड़ने की राह में पैग़म्बर, लोगों को सचेत, अवगत व सावधान करने के लिए जब भी उचित समझते थे, व्यवहारिक क़दम उठाते थे। वही काम जो हज़रत इब्राहीम ने किया।

इंसान के हाथ की बनी हुई चीज़ें, चाहे साधारण हों या विकसित, वास्तव में ईश्वर की ही रचनाएं हैं क्योंकि इंसान की हर पहल, आविष्कार और खोज का स्रोत, वह बुद्धि व योग्यता है जो ईश्वर ने उसे प्रदान की है।

आइये अब सूरए साफ़्फ़ात की आयत नंबर 97 और 98 की तिलावत सुनें।

قَالُوا ابْنُوا لَهُ بُنْيَانًا فَأَلْقُوهُ فِي الْجَحِيمِ (97) فَأَرَادُوا بِهِ كَيْدًا فَجَعَلْنَاهُمُ الْأَسْفَلِينَ (98)

उन्होंने (आपस में) कहाः इसके लिए एक अलाव तैयार करो और इसे दहकती हुई आग के शोलों में फेंक दो। (37:97) तो उन्होंने इब्राहीम के साथ एक चाल चलनी चाही लेकिन हमने उन्हीं को नीचा दिखा दिया। (37:98)

अनेकेश्वरवादियों ने हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की ठोस व तर्कसंगत बातों पर ध्यान देने और उन्हें मानने के बजाए, उन्हीं को ख़त्म करने का इरादा कर लिया ताकि दूसरे इससे पाठ सीखें। इसी लिए उन्होंने एक बड़ा अलाव तैयार किया और उसे बहुत अधिक लकड़ियों व ईंधन से भर कर एक बड़ी आग तैयार की।

इसके बाद उन्होंने हज़रत इब्राहीम को उसके अंदर फेंक दिया ताकि अपने विचार में उनका काम तमाम कर दें लेकिन ईश्वर की इच्छा से, वह आग हज़रत इब्राहीम के लिए गुलज़ार बन गई और उन्हें जलाने के बजाए उनके ठंडी व सुरक्षित हो गई। इब्राहीम, अनेकेश्वरवादियों की हैरत के बीच आग के शोलों के बीच से सही सलामत बाहर निकल आए और इस तरह उनके दुश्मनों की चाल और साज़िश पूरी तरह से विफल हो गई।

इन आयतों से हमने सीखा कि कुफ़्र व अनेकेश्वरवाद का कोई आधार नहीं है इसी लिए अनेकेश्वरवादी, एकेश्वरवाद से मुक़ाबला करने के लिए ताक़त का इस्तेमाल करते हैं।

ईश्वर के प्रिय बंदे अपने अभियान को पूरा करने की राह में और अत्याचार व कुफ़्र को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए हर तरह का ख़तरा उठाने के लिए तैयार रहते भैं और उन्हें आग में जलाए जाने का भी डर नहीं होता।

ईश्वर का इरादा, प्रकृति के क़ानूनों के ऊपर है इस लिए वह जब भी चाहे, प्राकृतिक नियमों व कारकों को बदल देता है जैसा कि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के मामले में उसने आग की जलाने की विशेषता ख़त्म कर दी।

आइये अब सूरए साफ़्फ़ात की आयत नंबर 99,100 और 101 की तिलावत सुनें।

وَقَالَ إِنِّي ذَاهِبٌ إِلَى رَبِّي سَيَهْدِينِ (99) رَبِّ هَبْ لِي مِنَ الصَّالِحِينَ (100) فَبَشَّرْنَاهُ بِغُلَامٍ حَلِيمٍ (101)

(इब्राहीम उस संकट से बच निकले) और उन्होंने कहाः मैं अपने पालनहार की तरफ़ जा रहा हूँ, वह जल्द ही मेरा मार्गदर्शन करेगा। (37:99) हे मेरे पालनहार! मुझे एक नेक संतान प्रदान कर। (37:100) तो हमने उसे एक विनम्र (और सहनशील) बेटे की शुभ सूचना दी। (37:101)

जब हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम, उनके ख़िलाफ़ तैयार की गई साज़िश से सुरक्षित निकल आए तो उन्हें लगा कि बाबिल की धरती पर उनका दायित्व ख़त्म हो गया है। इस लिए उन्होंने शाम या वर्तमान सीरिया जाने का फ़ैसला किया क्योंकि वह इलाक़ा हमेशा से पैग़म्बरों व ईश्वर के प्रिय बंदों का इलाक़ा रहा है। हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने ईश्वर से प्रार्थना की कि वह अपना दायित्व पूरा करने में उनका मार्गदर्शन करे।

उन्होंने इसी तरह ख़ुदा से दुआ की कि वह उन्हें एक भला व सद्कर्मी पुत्र प्रदान करे जो उनकी पैग़म्बरी, उनकी राह और उनकी शैली का अनुसरण करे और हर दृष्टि से भला व अच्छा हो। ईश्वर ने उनकी दुआ स्वीकार कर ली और उन्हें इस्माईल व इस्हाक़ जैसे बेटे प्रदान किए। दोनों ही पवित्र व सद्कर्मी इंसान थे और पैग़म्बरी के उच्चे दर्जे तक पहुंचे।

इन आयतों से हमने सीखा कि ईश्वर के सच्चे बंद, उसी की राह पर आगे बढ़ते हैं और हर काम और हर रास्ते पर उनकी मंज़िल सिर्फ़ ख़ुदा होता है। वे ईश्वर से दुआ करते हैं कि वह पूरे रास्ते में उनका मार्गदर्शन करता रहे और ईश्वर पर भरोसा करके वे राह खोज लेते हैं।

अगर हम ईश्वर की राह में क़दम उठा रहे हैं तो हमें उसकी कृपा, मार्गदर्शन और मदद की तरफ़ से निश्चिंत रहना चाहिए।

अच्छी संतान के लिए दुआ, पैग़म्बरों की दुआओं में से है। यह, पवित्र, अच्छे व सद्कर्मी वंश की अहमियत और समाज की पवित्रता पर उसके प्रभाव को दर्शाती है।

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