क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-833
सूरए साफ़्फ़ात की आयतें 106-113
إِنَّ هَذَا لَهُوَ الْبَلَاءُ الْمُبِينُ (106) وَفَدَيْنَاهُ بِذِبْحٍ عَظِيمٍ (107) وَتَرَكْنَا عَلَيْهِ فِي الْآَخِرِينَ (108)
निश्चय ही यह एक खुली हुई परीक्षा थी। (37:106) और हमने इस्माईल को एक बड़ी क़ुरबानी के बदले में छुड़ा लिया। (37:107) और हमने बाद की नस्लों में उनका (अच्छा) नाम छोड़ा। (37:108)
पिछले कार्यक्रम में बताया गया कि जब हज़रत इब्राहीम व हज़रत इस्माईल अलैहिमस्सलाम ईश्वर के आदेश के पालन के लिए तैयार हो गए तो ईश्वर ने आवाज़ दी कि हे इब्राहीम हमने सपने में तुम्हें जो आदेश दिया था उसे तुमने बिना किसी कमी के पूरा कर दिया और दायित्व के पालन की राह में थोड़ी सी भी ढिलाई नहीं की।
ये आयतें कहती हैं कि पिता के हाथों इस्माईल को ज़िबह करने के आदेश के माध्यम से ईश्वर हज़रत इब्राहीम की परीक्षा लेना चाहता था और उसका इरादा यह नहीं था कि हज़रत इस्माईल का ख़ून उनके पिता के हाथों बहा दिया जाए। यह इम्तेहान था ताकि यह बात स्पष्ट हो जाए कि इब्राहीम, ईश्वर के आदेश के पालन के लिए अपने प्रिय पुत्र से हाथ धोने के लिए तैयार हैं या नहीं?
वास्तव में ईश्वर का लक्ष्य हज़रत इब्राहीम के दिल से बेटे की मुहब्बत का सिर काटना था, उनके बेटे का सिर काटना नहीं था इसी लिए जैसे ही उन दोनों ने ईश्वर का आदेश पूरा करने के लिए अपनी तैयारी दिखाई, ईश्वर ने आदेश दिया कि इब्राहीम, इस्माईल की जगह एक बड़ी भेड़ को उसकी राह में क़ुर्बान कर दे ताकि उनकी यह परंपरा इतिहास में अमर हो जाए। इसी लिए हज करने वाले लोग, मक्के के क़रीब स्थित मिना नामक स्थान पर हज़रत इब्राहीम व हज़रत इस्माईल अलैहिमस्सलाम को याद करते हैं और ख़ुदा की राह में क़ुर्बानी देते हैं।
इन आयतों से हमने सीखा कि बच्चे को छोड़ना और उसके प्यार को अपने दिल से निकालना, ईश्वर की उन सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक है जिनमें हज़रत इब्राहीम व इस्माईल कामयाब रहे।
ईश्वर की राह में क़ुर्बानी देना, हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की परंपराओं में से एक है जिसे मक्के व अन्य इस्लामी शहरों व इलाक़ों में अंजाम दिया जाता है।
अच्छी परंपराएं यादगार के रूप में छोड़ने वाले इंसानों के नाम, आगे आने वाली पीढ़ियों में बाक़ी रहते हैं और अमर हो जाते हैं।
आइये अब सूरए साफ़्फ़ात की आयत नंबर 109, 110 और 111 की तिलावत सुनें।
سَلَامٌ عَلَى إِبْرَاهِيمَ (109) كَذَلِكَ نَجْزِي الْمُحْسِنِينَ (110) إِنَّهُ مِنْ عِبَادِنَا الْمُؤْمِنِينَ (111)
सलाम है इब्राहीम पर। (37:109) हम भले कर्म करने वालों को ऐसा ही प्रतिफल देते हैं। (37:110) निश्चय ही वे हमारे ईमान वाले बन्दों में से थे। (37:111)
पिछली आयतों का क्रम जारी रखते हुए, जिनमें बेटे को ज़िबह करने की परीक्षा में कामयाब होने पर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर ईश्वर की विशेष कृपा का उल्लेख किया गया था, ये आयतें पूरे इतिहास में उन पर ईश्वर की ओर से सलाम भेजे जाने की सूचना देती हैं। इसके बाद इन आयतों में कहा गया है कि यह दया व कृपा हज़रत इब्राहीम से विशेष नहीं है और जो भी ईश्वर की राह में अपनी जान, माल और पसंद की चीज़ों की क़ुर्बानी देगा, वह ईश्वरीय पारितोषिक का पात्र बनेगा।
जो भी ईमान वाला हो और ईश्वर की बंदगी के मार्ग में पूरी तरह उसके समक्ष नतमस्तक रहे, वह भी हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की तरह ईश्वर के दुरूद व सलाम का पात्र बनेगा और यह चीज़ पूरे इतिहास में जारी रहेगी।
इन आयतों से हमने सीखा कि ईश्वर ने क़ुरआने मजीद में अपने पैग़म्बरों को सलाम किया है लेकिन हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम पर ईश्वर भी और उसके फ़रिश्ते भी दुरूद व सलाम भेजते हैं और ईश्वर ने ईमान वालों से भी कहा है कि वे हमेशा उन पर दुरूद व सलाम भेजते रहें।
हर अच्छे काम का लोक-परलोक में पारितोषिक मिलता है।
ईश्वर की ओर से पारितोषिक व दंड दिया जाना, कोई मनचाही बात नहीं है बल्कि इसका एक निर्धारित क़ानून व स्पष्ट परंपरा है।
आइये अब सूरए साफ़्फ़ात की आयत नंबर 112 और 113 की तिलावत सुनें।
وَبَشَّرْنَاهُ بِإِسْحَاقَ نَبِيًّا مِنَ الصَّالِحِينَ (112) وَبَارَكْنَا عَلَيْهِ وَعَلَى إِسْحَاقَ وَمِنْ ذُرِّيَّتِهِمَا مُحْسِنٌ وَظَالِمٌ لِنَفْسِهِ مُبِينٌ (113)
और हमने उन्हें इस्हाक़ की शुभ सूचना दी जो भलों में से एक पैग़म्बर थे। (37:112) और हमने उन्हें और इस्हाक़ को बरकत दी। और उन दोनों की नस्ल में कोई सद्कर्मी है और कोई अपने आप पर खुला अत्याचार करने वाला है। (37:113)
पिछली आयतों में क़ुरआने मजीद ने हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के बेटे हज़रत इस्माईल की तरफ़ इशारा किया था। उन आयतों में इस्माईल को एक धैर्यवान व विनम्र नौजवान बताया गया था। ये आयतें हज़रत इब्राहीम के एक अन्य बेटे यानी हज़रत इस्हाक़ के बारे में हैं जिनकी पैग़म्बरी का वादा ईश्वर ने हज़रत इब्राहीम से किया था।
ऐसा पैग़म्बर जो अन्य पैग़म्बरों की तरह अपने समय के नेक व भले लोगों में था, इस लिए ईश्वर ने उसे अपनी विशेष कृपा का पात्र बनाया। इस कृपा को क़ुरआने मजीद ने बरकत का नाम दिया है। हर चीज़ में बरकत, जैसे उम्र, ज़िंदगी, वंश, नस्ल, विचार व मत क्योंकि बरकत का मतलब है, हमेशा रहने वाली भलाई। हमेशा रहने वाली एक भलाई यह थी कि बनी इस्राईल के सभी पैग़म्बर, हज़रत इस्हाक़ के वंश से थे। अलबत्ता पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम हज़रत इस्माईल के वंश से थे।
इन आयतों के अंत में कहा गया है कि यह भी स्पष्ट रहे कि हज़रत इस्हाक़ के वंश के सभी लोग सद्कर्मी नहीं थे बल्कि एक गुट पापियों व अत्याचारियों का भी था। यह चीज़ इंसान के इरादे और उसके चयन से संबंधित है कि वह पवित्र वंश से होने के बावजूद ग़लत विकल्पों को चुनता है और ग़लत रास्ते पर चल पड़ता है।
इन आयतों से हमने सीखा कि पैग़म्बरों के परिवार में भी ग़लत लोग हो सकते हैं। पैग़म्बरों या पवित्र व सद्कर्मी इंसानों से पारिवारिक या वांशिक संबंध का मतलब, लोगों का हर स्थिति में मार्गदर्शित होना नहीं है। संभव है कि बाप, ईश्वर के चुने हुए बंदों से हो और उसका बेटा, सत्य के मार्ग से हट गया हो। हज़रत नूह और उनके बेटे का उदाहरण सभी के सामने है।
अपनी संतान और वंश के बारे में हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की दुआ ने इस्माईल, इस्हाक़ और उनके बाद की पीढ़ियों के लिए ईश्वर की अनेक कृपाओं की प्राप्ति का मार्ग समतल किया। हमें भी अपने बच्चों और आने वाली पीढ़ियों के सद्कर्मी होने की हमेशा दुआ करनी चाहिए।