क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-834
सूरए साफ़्फ़ात आयतें 114-122
وَلَقَدْ مَنَنَّا عَلَى مُوسَى وَهَارُونَ (114) وَنَجَّيْنَاهُمَا وَقَوْمَهُمَا مِنَ الْكَرْبِ الْعَظِيمِ (115) وَنَصَرْنَاهُمْ فَكَانُوا هُمُ الْغَالِبِينَ (116)
इन आयतों का अनुवाद हैः
और हम मूसा और हारून पर भी उपकार कर चुके है (37:114) और हमने उन्हें और उनकी क़ौम को बड़ी घुटन और बेचैनी से छुटकारा दिया (37:115) हमने उनकी सहायता की, तो वही प्रभावी रहे (37:116)
पिछले कार्यक्रम में क़ुरआन में उल्लेखित कुछ ऐसी नेमतों का ज़िक्र किया गया जो अल्लाह ने हज़रत इब्राहीम को प्रदान कीं थीं। यह आयतें हज़रत मूसा और उनके भाई हज़रत हारून को प्रदान की गई नेमतों का उल्लेख करती हैं। पहले तो मोटे तौर पर बयान किया गया है कि अल्लाह ने उन्हें अपनी नेमतों से नवाज़ा। इसके बाद इनमें से कुछ नेमतों को बयान किया गया है। हज़रत मूसा, हज़रत हारून और बनी इस्राईल क़ौम पर अल्लाह की पहली नेमत थी फ़िरऔन और उसके साथियों के चंगुल से उनकी आज़ादी और दुश्मनों पर उनकी फ़तह थी।
मिस्र का ख़ूंख़ार और ज़ालिम शासक फ़िरऔन पुरुषों को ग़ुलाम बनाकर उनसे बेगारी करवाता था और महिलाओं को दासी बना लेता था और लड़कों के सिर काट दिया करता था। इन हालात में हज़रत मूसा को अल्लाह की तरफ़ से यह ज़िम्मेदारी दी गई कि वह बनी इस्राईल क़ौम को निजात दिलवाएं। हज़रत मूसा ने अल्लाह पर अपने ईमान की ताक़त से बनी इस्राईल क़ौम की आज़ादी का रास्ता साफ़ किया और उन्हें बहुत बड़े दुख और पीड़ा से मुक्ति दिला दी।
अल्लाह के मेहरबानी और मदद से बनी इस्राईल क़ौम नील नदी पार कर गई और उनका पीछा करने वाला फ़िरऔन और उसका लश्कर पानी में डूब गया। इस तरह वह ख़ाली हाथ ही फ़िरऔन और हथियारों से लैस उसके सैनिकों को शिकस्त देने में कामयाब हो गए और उन्हें ज़ालिम फ़िरऔन के चंगुल से निजात मिल गई। फ़िरऔन और उसकी सेना का ख़ात्मा हो जाने के बाद बनी इस्राईल क़ौम को फ़िरऔन और उसके मानने वालों की संपत्ति, बाग़, खेत और महल सब मिल गए।
इन आयतों से हमने सीखाः
पिछले ज़मानों के पैग़म्बरों को अल्लाह की ओर से दी जाने वाली नेमतों के ज़िक्र से मोमिन बंदों को सुकून और प्रेरणा मिलती है।
दुख और पीड़ा का दूर होना, मानिसक दबाव से मुक्ति और मन को मिलने वाली शांति अल्लाह की बड़ी नेमतें हैं।
अल्लाह के पैग़म्बर और ख़ास बंदे हमेशा मज़लूम और शोषित इंसानों की चिंता में रहते हैं। उनसे हमदर्दी रखते हैं और ख़ुद को उनके दुख में भागीदार मानते हैं। अल्लाह के ख़ास बंदे तब संतुष्ट होते हैं जब मज़लूम इंसानों को ज़ालिमों और अत्याचारियों के चंगुल से रिहाई मिल जाए और उन्हें सुकून की ज़िंदगी नसीब हो जाए।
आइए अब सूरए साफ़्फ़ात की आयत संख्या 117, 118 और 119 की तिलावत सुनते हैं,
وَآَتَيْنَاهُمَا الْكِتَابَ الْمُسْتَبِينَ (117) وَهَدَيْنَاهُمَا الصِّرَاطَ الْمُسْتَقِيمَ (118) وَتَرَكْنَا عَلَيْهِمَا فِي الْآَخِرِينَ (119)
इन आयतों का अनुवाद हैः
हमने उनको अत्यन्त स्पष्ट किताब प्रदान की। (37:117) और उन्हें सीधा मार्ग दिखाया (37:118) और हमने पीछे आने वाली नस्लों में उनका अच्छा ज़िक्र छोड़ा (37:119)
फ़ुरऔन के ज़ुल्म से आज़ादी की नेमत मिल जाने के बाद इन आयतों में जिस नेमत को सबसे बड़ी नेमत के रूप में सामने रखा गया है वह लोक परलोक में समाज के मोक्ष का रास्ता सुझाने के लिए आसमानी किताब का उतारा जाना है।
यह बात साफ़ है कि फ़िरऔन के चंगुल से आज़ादी हासिल करने वाले समाज को अल्लाह की ओर से निर्धारित क़ानूनों और मार्गदर्शक की ज़रूरत है ताकि समाज व्यवस्थित रूप से चले और दोबारा ज़ुल्म और वर्चस्ववाद का माहौल न बन जाए। इसी लिए तौरत का उतारा जाना जिसमें बनी इस्राईल क़ौम की ज़रूरत के उसूल और क़ानून मौजूद थे, इसी तरह हज़रत मूसा जैसे मज़बूत रहनुमा बनी इस्राईल क़ौम के लिए बहुत बड़ी नेमत थे जिसका मक़सद समाज को स्वस्थ और विकासशील रखना था।
इन आयतों से हमने सीखाः
ज़ुल्म और अत्याचार से लोगों को मिलने वाली निजात के बाद अल्लाह के रास्ते की ओर उनका प्रस्थान और भी आसान हो जाता है।
आसमानी किताबें इंसान को ज़िंदगी गुज़ारने का सही रास्ता सिखाती हैं अलबत्ता शर्त यह है कि उनमें फेरबदल न कर दिया गया हो।
अल्लाह ने क़ुरआन में अपने रसूलों की प्रशंसा की है और पूरे इतिहास में पैग़म्बरों की बहुत बड़ी समाजी दौलत उनका नेक नाम और अच्छी याद है।
अब आइए सूरए साफ़्फ़ात की आयत नंबर 120, 121 और 122 की तिलावत सुनते हैं,
سَلَامٌ عَلَى مُوسَى وَهَارُونَ (120) إِنَّا كَذَلِكَ نَجْزِي الْمُحْسِنِينَ (121) إِنَّهُمَا مِنْ عِبَادِنَا الْمُؤْمِنِينَ (122)
इन आयतों का अनुवाद हैः
"सलाम है मूसा और हारून पर!" (37:120) निःसंदेह हम नेक अमल करने वालों को ऐसा बदला देते है (37:121) निश्चय ही वे दोनों हमारे ईमान वाले बन्दों में से थे (37:122)
हज़रत मूसा और हज़रत हारून के बारे में क़ुरआन की इन आयतों के आख़िरी हिस्से में अल्लाह ने उन पर दुरूद व सलाम भेजा है और क़ुरआन में उनका ज़िक्र किया है ताकि ईमान वालों के लिए यह सबक़ हो कि वह भी अल्लाह के पैग़म्बरों पर हमेशा दुरूद भेजें और उन महान हस्तियों के मूल्यवान योगदान और क़ुरबानियों की क़द्र करें।
इसके आगे की आयतों में अल्लाह ने कहा है कि इन दो पैग़म्बरों और ईमान वालों पर हमारा लुत्फ़ व करम हमेशा जारी रहने वाली चीज़ है और इतिहास में जो भी ईमान वाला, पाक और सदाचारी होगा और लोगों के साथ भलाई से पेश आएगा उस पर भी इसी प्रकार की कृपा की जाएगी।
हज़रत मूसा और हज़रत हारून के बारे में आख़िरी आयत उनकी बंदगी और अल्लाह के सामने उनके समर्पण का ज़िक्र करती है। अल्लाह इसमें कहता है कि वह हमारे ईमान वाले बंदे थे। यह वाक्य क़ुरआन में अधिकतर पैग़म्बरों के बारे में इस्तेमाल किया गया है और उन्हें अल्लाह का बंदा कहा गया है।
बंदा लफ़्ज़ के मुक़ाबले में मौला लफ़्ज़ है जिसका मतलब है अभिभावक। इसमें यह इशारा है कि अल्लाह के पैग़म्बर उसके आदेशों के सामने हमेशा नतमस्तक रहते थे हालांकि बहुत सारे आम लोग अल्लाह के आदेशों के सामने समर्पण के लिए तैयार नहीं होते वह केवल उन आदेशों पर अमल करना चाहते हैं जिसकी वजह और फ़ायदा उन्हें मालूम हो।
इन आयतों से हमने सीखाः
अल्लाह के बंदों पर दुरूद व सलाम भेजना अच्छा अमल है जिसे अल्लाह ने हमें सिखाया है और इसका यह अर्थ है कि यह सलाम उन महान हस्तियों को पहुंचता है।
दीन की शिक्षाओं का ज़िक्र और समाज का मार्गदर्शन एक प्रकार की नेकी है और यह अल्लाह के ख़ास बंदों के गुणों में है।
नेक बंदों पर अल्लाह का लुत्फ़ व करम एक अटल परम्परा है जो पूरे इतिहास में जारी रही है।