क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-837
सूरए साफ़्फ़ात आयतें 139-148
وَإِنَّ يُونُسَ لَمِنَ الْمُرْسَلِينَ (139) إِذْ أَبَقَ إِلَى الْفُلْكِ الْمَشْحُونِ (140) فَسَاهَمَ فَكَانَ مِنَ الْمُدْحَضِينَ (141)
इन आयतों का अनुवाद हैः
और निःसंदेह यूनुस भी रसूलो में से थे (37:139) याद करो, जब वह भरी नौका की ओर भाग निकले, (37:140) फिर पर्ची डालने में शामिल हुए और उसमें मात खाई (37:141)
पिछले कार्यक्रम में हमने कुछ पैग़म्बरों की कहानियों के बारे में संक्षेप में आपको बताया था। यह आयतें संक्षेप में हज़रत युनुस की कहानी के बारे में बताती हैं। अल्लाह ने हज़रत नूह, हज़रत इब्राहीम, हज़रत मूसा, हज़रत हारून, हज़रत इलियास और हज़रत लूत जैसे पैग़म्बरों को उनके दुश्मनों से निजात दिलाई। उनके दुश्मनों को शिकस्त दी और अज़ाब में फंसा दिया। लेकिन हज़रत युनुस की कहानी में अलग तसवीर नज़र आती है। हुआ यह कि उनकी क़ौम ने अज़ाब के लक्षण देते तो फ़ौरन तौबा कर ली और अल्लाह ने उन पर करम कर दिया। दूसरी ओर क़ौम का साथ छोड़कर चले जाने की वजह से हज़रत युनुस को मुश्किलों में फंसा दिया।
रिवायतों के अनुसार हज़रत युनुस भी दूसरे पैग़म्बरों की तरह अपनी क़ौम को अनेकेश्वरवाद और मूर्ति पूजा इसी तरह ग़लत कामों से रोकते थे। लेकिन वह उनकी बात पर कोई ध्यान नहीं देते थे। गिने चुने लोगों के अलावा कोई उन पर ईमान न लाया। अल्लाह ने उन्हें संदेश भेजा कि बहुत जल्द उनकी क़ौम पर अज़ाब आने वाला है। वह एक मोमिन व्यक्ति के साथ बस्ती से बाहर निकले और समुद्र की ओर चले गए। तट पर एक नाव देखी जिस पर सामान और यात्री मौजूद थे। उन्होंने कश्ती पर सवार लोगों से कहा कि उन्हें भी सवार कर लें और उन्होंने यही किया और कश्ती रवाना हो गई।
समुद्र के बीच में पहुंचने के बाद अचानक विशाल मछली ने हमला कर दिया और अपना मुंह खोल दिया। नौका पर सवार लोगों को अंदाज़ा हो गया कि किसी यात्री की क़ुरबानी देनी पड़ेगी वरना सारे यात्रियों की जान चली जाएगी। उन्होंने फ़ैसला किया कि सबके नाम की पर्ची डाली जाए जिसका नाम निकलेगा उसे मछली के मुंह में फेंक दिया जाएगा ताकि यात्रियों और नौका को बचाया जा सके। पर्ची हज़रत युनुस के नाम की निकल आई तो उन्हें मछली के मुंह में फेंक दिया गया।
इन आयतों से हमने सीखाः
पैग़म्बरों के पास बहुत अधिक संयम, धीरज और फ़राख़दिली होना चाहिए। अगर किसी ने बेसब्री दिखाई तो अल्लाह की ओर से उसे कठोर सज़ा दी जाती है।
पैग़म्बरों और बीते ज़मानों की क़ौमों के इतिहास और कहानियों का परिचय ज़ुल्म और नास्तिकता से भरे हमारे आज के संसार के लिए एक पाठ है।
अगर हालात बन जाएं और किसी काम के लिए उनमें से किसी एक का चयन करना हो तो नामों की पर्ची डालकर यह चयन किया जा सकता है। इसे इस्लाम में जायज़ माना गया है।
अब आइए सूरए साफ़्फ़ात की आयत संख्या 142, 143 और 144 की तिलावत सुनते हैं।
فَالْتَقَمَهُ الْحُوتُ وَهُوَ مُلِيمٌ (142) فَلَوْلَا أَنَّهُ كَانَ مِنَ الْمُسَبِّحِينَ (143) لَلَبِثَ فِي بَطْنِهِ إِلَى يَوْمِ يُبْعَثُونَ (144)
इन आयतों का अनुवाद हैः
फिर उन्हें मछली ने निगल लिया और वह निन्दनीय दशा में पहुंच गए। (37:142) अब यदि वह तसबीह करने वाले न होते (37:143) तो उसी के भीतर उस दिन तक पड़े रह जाते, जब कि लोग उठाए जाएँगे। (37:144)
आयतों से यह बात समझ में आती है कि मछली को अल्लाह ने आदेश दिया था कि वह हज़रत युनुस को निगल ले। यही वजह थी कि अल्लाह की मर्ज़ी से उन्हीं के नाम की पर्ची निकल आई। जिस अल्लाह ने मछली को आदेश दिया था कि वह हज़रत युनुस को निगल ले उसके पास यह शक्ति भी थी कि जब तक चाहता हज़रत युनुस मछली के पेट में जीवित और सुरक्षित रहते।
जब हज़रत युनुस ने देखा कि मछली ने उन्हें कोई नुक़सान नहीं पहुंचाया और वह मछली के पेट में जीवित हैं तो फिर उन्हें एहसास हुआ कि माजरा क्या है। उन्होंने अल्लाह को याद करना शुरू किया और कर्तव्य के निर्वाह में कोताही की माफ़ी मांगी और तौबा किया।
पछतावे और ग्लानि के साथ अपनी ग़लती को स्वीकार करने के नतीजे में अल्लाह ने उनकी निजात का रास्ता साफ़ कर दिया। मछली तट के क़रीब आई उसने अपना मुंह खोला और हज़रत युनुस मछली के पेट से बाहर निकल आए। ज़ाहिर है कि अगर हज़रत युनुस पर अल्लाह की कृपा न हुई होती तो वह क़यामत तक उस बड़ी मछली के पेट में ही रहते।
इन आयतों से हमने सीखाः
कभी कभी कोई हैरतअंगेज़ और चमत्कारिक काम करने के लिए अल्लाह की ओर से किसी जानवर को निर्धारित कर दिया जाता है।
जब कठिनाइयां और समस्याएं सामने आ जाएं तो ज़िम्मेदारी छोड़कर भाग जाना कोई समाधान नहीं है बल्कि संभव है कि यह क़दम उठाने की स्थिति में ज़्यादा बड़ी समस्याओं में इंसान घिर जाए।
अल्लात की तसबीह पड़ना और उससे ग़लतियों की क्षमा मांगना तथा अल्लाह की ओर उन्मुख हो जाना मुश्किलों से निजात का रास्ता है। जैसे हज़रत युनुस मछली के पेट में एक अंधेरी जगह में फंसे हुए थे तो अल्लाह की ओर रुख़ किया और उससे माफ़ी मांगी।
अब आइए सूरए साफ़्फ़ात की आयत 145 से 148 तक की तिलावत सुनते हैं,
فَنَبَذْنَاهُ بِالْعَرَاءِ وَهُوَ سَقِيمٌ (145) وَأَنْبَتْنَا عَلَيْهِ شَجَرَةً مِنْ يَقْطِينٍ (146) وَأَرْسَلْنَاهُ إِلَى مِئَةِ أَلْفٍ أَوْ يَزِيدُونَ (147) فَآَمَنُوا فَمَتَّعْنَاهُمْ إِلَى حِينٍ (148)
इन आयतों का अनुवादः
अन्ततः हमने उन्हें इस दशा में कि वह निढ़ाल थे, साफ़ मैदान में डाल दिया। (37:145) हमने उनपर बेलदार वृक्ष उगाया था (37:146) और हमने उन्हें एक लाख या उससे अधिक (लोगों) की ओर भेजा (37:147) फिर वे ईमान लाए तो हमने उन्हें एक अवधि भर सुख भोगने का अवसर दिया। (37:148)
यह आयतें जो हज़रत युनुस की घटना का अंजाम बयान कर रही हैं, उनमें बताया गया है कि अल्लाह के आदेश से मछली तट पर आई और हज़रत युनुस को अपने मुंह से उगल दिया। हज़रत युनुस जो स्वाभाविक रूप से बहुत दुर्बल हो चुके थे रास्ता नहीं चल सकते थे, वह वहीं लेट गए। अल्लाह ने उनके पास कद्दू की लता उगा दी जिसके बड़े पत्तों ने उनके शरीर को ढांप लिया ताकि वह तेज़ धूप से सुरक्षित रहें और उनकी त्वचा के घाव भी भर जाएं।
अल्लाह के इस इंतेज़ाम से हज़रत युनुस को निजात मिली। वह धीरे धीरे स्वस्थ हो गए और अपनी क़ौम की ओर वापस जाने के लिए तैयार हो गए। जब अपने शहर और बस्ती के क़रीब पहुंच गए तो उन्होंने बड़ी हैरत से देखा कि वही लोग जो नास्तिक और मूर्ति की पूजा करने वाले थे उनमें अधिकतर अल्लाह के नेक बंदे बन गए हैं और उन पर अज़ाब भी नाज़िल नहीं हुआ। बल्कि अल्लाह ने उन्हें मौक़ा दिया कि प्राकृतिक रूप से अपना जीवन गुज़ारें और ज़िंदगी का आनंद लें।
इन आयतों से हमने सीखाः
अल्लाह पर ईमान लाने और तौबा करने की वजह से हज़रत युनुस की क़ौम पर अल्लाह का करम हुआ जबकि तसबीच और दुआ की वजह से हज़रत युनुस भी अल्लाह के करम और क्षमा के पात्र बने।
कभी भी कुकर्मी इंसानों की तौबा और ग़लत रास्ते से वापसी की ओर से मायूस न हों, उनसे विमुख न हों क्योंकि हो सकता है कि वह किसी लम्हा बदल जाएं और ग़लत रास्ते से वापस आ जाएं।
पिछली ग़लतियों पर तौबा भविष्य में सफलता का मार्ग है। हज़रत युनुस की क़ौम ने तौबा की तो अल्लाह ने अपना अज़ाब रोक लिया और उन्हें कामयाबी प्रदान की।