Aug ०८, २०१८ ११:२७ Asia/Kolkata

19 जुलाई 2018 को जायोनी संसद ने यहूदी देश बनाये जाने पर आधारित एक कानून पारित किया है।

नस्लभेद के खिलाफ सबसे महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय कन्वेन्शन संयुक्त राष्ट्रसंघ की महासभा में 21 दिसंबर 1965 को पारित किया गया। इस कन्वेशन में हर प्रकार के भेदभाव से दूर रहने की बात की गयी है। इस अंतरराष्ट्रीय कन्वेशन में हर प्रकार के नस्ली भेदभाव से दूर करने की परिभाषा में आया है कि हर प्रकार के भेदभाव को जातिवाद या नस्ली-भेदभाव कहा जाता है जिसका लक्ष्य सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक दृष्टि से असमानता हो। इस बात के दृष्टिगत जायोनी शासन की संसद ने 19 जुलाई को यहूदी देश बनाये जाने पर आधारित जो कानून पारित किया है वह नस्लीभेदभाव का खुला प्रतीक है। क्योंकि यह कानून यहूदी जाति के श्रेष्ठ होने पर बल देता है। इस कानून के अनुसार फिलिस्तीनी भूमि यहूदी राष्ट्र का एतिहासिक वतन होगा, यह कानून हिब्रू भाषा को यहूदियों की आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता देता है। इसी तरह यह कानून कुद्स नगर को जायोनी शासन की राजधानी के रूप में मान्यता देने के अलावा फिलिस्तीन की अतिग्रहित भूमियों में जायोनी कालोनियों में विस्तार का भी समर्थन करता है। जायोनी शासन के इस कानून की जितनी भी समीक्षाएं की गयीं और उस पर प्रतिक्रियायें व्यक्त की गयीं सबमें इस कानून को नस्लभेद का स्पष्ट उदाहरण बताया गया।

अंतरराष्ट्रीय कन्वेशन की भूमिका में हर उस श्रेष्ठता को रद्द किया गया है और उसकी भर्त्सना की गयी है जिसका आधार जातिवाद हो और सामाजिक दृष्टि से वह अन्यायपूर्ण और ख़तरनाक है और किसी प्रकार से उसका औचित्य नहीं दर्शाया जा सकता। जाति, रंग या नस्ल के आधार पर लोगों के मध्य भेदभाव राष्ट्रों के मध्य मित्रतापूर्ण और शांतिंपूर्ण संबंधों की दिशा में बहुत बड़ी बाधा है और यह चीज़ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और इसी प्रकार एक देश या सरकार के भीतर शांतिपूर्ण संबंधों में विघ्न उत्पन्न कर सकती है और मानव समाज की आकांक्षाएं और नस्लभेद पर आधारित रुकावटें एक साथ नहीं हो सकतीं। इन सब बातों के दृष्टिगत कहना चाहिये कि नस्लभेद भर्त्सनीय है और सामाजिक दृष्टि से वह खतरनाक है, मित्रतापूर्ण संबंधों की दिशा में बहुत बड़ी रुकावट है और अंतरराष्ट्रीय शांति व सुरक्षा को खतरे में डालता है। साथ ही अंतरराष्ट्रीय कन्वेशन में स्पष्ट शब्दों में नस्लभेद और जातिवाद की भर्त्सना की गयी है। अंतरराष्ट्रीय कन्वेशन के अलावा दूसरे विभिन्न कानून व घोषणापत्र भी हैं जिनमें नस्लवाद और जातीय भेदभाव की निंदा की गयी है। संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणा पत्र में भी नस्लवाद की निंदा की गयी है। मानवाधिकार के अंतरराष्ट्रीय घोषणापत्र में भी बल देकर कहा गया है कि समस्त इंसान हैसियत, प्रतिष्ठा और अधिकार की दृष्टि से समान हैं। इसी प्रकार इस घोषणापत्र में बल देकर कहा गया है कि नस्ल एवं वंश की दृष्टि से समस्त इंसान बराबर हैं। इसी प्रकार मानवाधिकार के इस घोषणापत्र में बल देकर कहा गया है कि कानून के मुकाबले में सब बराबर हैं और सबको किसी प्रकार के भेदभाव के बिना समान कानूनी अधिकार प्राप्त हैं।

बहरहाल एक यहूदी देश का कानून, नस्ली सफाया, मानवता विरोधी अपराध, युद्ध अपराध और अतिक्रमण जैसे अपराधों का स्पष्ट उदाहरण है और यह वह चीज़ें हैं जिनका अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय के घोषणा पत्र में उल्लेख किया गया है। रोम घोषणापत्र में भी किसी गुट के सदस्यों को शारीरिक या मानसिक पीड़ा देने को नस्ली सफाये का नाम दिया गया है और एक यहूदी देश बनाये जाने के संबंध में जो कानून पारित किया गया है उससे फिलिस्तीनियों को भारी शारीरिक व मानसिक पीड़ा पहुंचेगी। इसी प्रकार रोम घोषणा पत्र में उस चीज़ को युद्ध अपराध का नाम दिया गया है जो शारीरिक व मानसिक पीड़ा का कारण बनती हो।

इस्राईली संसद ने एक यहूदी देश बनाये जाने के संबंध में जो कानून पारित किया है नस्लभेदी होने के कारण उसकी फिलिस्तीनियों, गैर फिलिस्तीनियों हस्तियों के अलावा अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने भी भर्त्सना की है।

फिलिस्तीन के जेहादे इस्लामी आंदोलन के एक नेता यूसुफ अलहसाइने ने इस कानून की प्रतिक्रिया में बल देकर कहा है कि जायोनी शासन की संसद में एक यहूदी देश बनाये जाने के संबंध में पारित होने का कानून नस्लवाद और घृणा का प्रतीक है। इस कानून से यह बात सिद्ध होती है कि अब कोई संदेह नहीं रह गया है कि जायोनी शासन अतिग्रहित फिलिस्तीनी भूमियों में फिलिस्तीनियों के अस्तित्व को समाप्त करने की दिशा में प्रयासरत है। उन्होंने कहा कि यह कानून इसी प्रकार जार्डन नदी के पश्चिमी किनारे की और अधिक भूमियों को जायोनी कस्बों में मिला लेने का मार्ग प्रशस्त करता है और इस कानून के लागू होने की स्थिति में कुद्स और फिलिस्तीन के अतिग्रहित दूसरे क्षेत्रों में फिलिस्तीनियों को उनके घरों से निकालने का नया क्रम आरंभ हो जायेगा। यहां इस बात का उल्लेख आवश्यक है कि अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय और रोम घोषणा पत्र में भी कहा गया है कि किसी को ज़बरदस्ती निकालना या भगाना खुला मानवता विरोधी अपराध है।

मलेशिया में इस्राईल बहिष्कार आंदोलन के नेता मोहम्मद नज़री इस्माईल इस संबंध में कहते हैं कि इस शासन ने दुनिया को दिखा दिया है कि उसका आधार जातिवाद व नस्लभेद है और इस शासन के लिए नस्लभेद से बेहतर कोई दूसरा शब्द नहीं मिल सकता जिस तरह से दक्षिण अफ्रीका की नस्ल व रंगभेदी सरकार का राष्ट्रों और सरकारों ने बहिष्कार किया था उसी तरह से पूरी दुनिया में इस्राईल का भी बहिष्कार किया जाना चाहिये। जार्डन से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र अर्राये में अरब पत्रकार जार्ज ज़रीफ़ ने लिखा कि इस्राईली संसद नेसेट में इस कानून का पारित होने का अर्थ नस्लभेदी व्यवस्था की मज़बूती है और इस्राईल इस कानून को पारित करके फिलिस्तीनियों के खिलाफ नस्ल भेद को लागू कर रहा है।

एक दूसरा अरब पत्रकार मोअफ्फक मुतिर फिलिस्तीनी पत्रिका अलहयातुल जदीदा में लिखता है कि इस्राईल की संसद में अतिवादी और नस्लभेदी प्रतिनिधियों ने इस कानून के पक्ष में मत देकर इस वास्तविकता को स्पष्ट कर दिया है कि इस्राईल एक अतिग्रहणकारी और नस्लभेदी सरकार है।

एक अन्य अरब पत्रकार फाएज़ रशीद भी समाचार पत्र अलवतन में लिखता है कि यहूदी देश के कानून का पारित होना अपेक्षा से परे कार्य था और इस्राईल जैसी फासीवादी सरकार से इसके अलावा कोई दूसरी अपेक्षा नहीं रखनी चाहिये। इस कानून का अर्थ जायोनी नस्लभेद की मज़बूती, फिलिस्तीनियों को अपनी मातृभूमि में वापसी के अधिकार को खत्म कर देना और जायोनी कालोनियों के निर्माण को कानूनी रूप देना है।

                         

एमनेस्टी इंटरनेश्नल ने बल देकर कहा है कि इस्राईल द्वारा एक यहूदी देश के कानून के पारित करने का अर्थ फिलिस्तीनियों के खिलाफ अतिग्रहित भूमियों में नस्लभेद को वैधता प्रदान करना है। इसी प्रकार इस संगठन ने स्पष्ट करके कहा है कि इस समय फिलिस्तीन के अतिग्रहित क्षेत्रों की कुल जनसंख्या का 20 प्रतिशत भाग फिलिस्तीनी हैं और अब उन्हें दूसरे दर्जे का नागरिक समझा जायेगा।

इस्लामी देशों की सांस्कृतिक संस्था आइसिस्को ने भी एक विज्ञप्ति जारी करके इस्राईली संसद में पारित कानून को नस्लवाद का उदाहरण बताया और उसे रद्द करते हुए विश्व समुदाय का आह्वान किया है कि वह इस नस्लभेदी कानून को स्वीकार न करे और उसने इस्राईली संसद में पारित होने वाले कानून को फिलिस्तीनियों के खिलाफ युद्ध की घोषणा की संज्ञा दी है।

वास्तविकता है कि इस्राईली संसद नेसेट में एक यहूदी देश बनाये जाने के संबंध में पारित होने वाला कानून पहला और आखिरी कानून नहीं है। क़तर की अलजज़ीरा साइट ने इस्राईली संसद में पारित होने वाले कुछ नस्लभेदी कानूनों की ओर संकेत किया और लिखा है कि 6 फरवरी 2017 को जायोनी कालोनियों के निर्माण को सुव्यवस्थित बनाये जाने के संबंध में कानून पारित हुआ, नवंबर 2016 को कुछ स्थानों पर अरबी भाषा प्रयोग न करने का प्रस्ताव पारित हुआ और इसी प्रकार 13 नवंबर 2016 को अज़ान न प्रसारित किये जाने का प्रस्ताव पारित हुआ और यह ये सब जायोनी संसद में पारित होने वाले नस्लभेदी कानून के कुछ नमूने हैं।

इससे पहले जुलाई 1998 में राष्ट्रसंघ की आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक समिति ने स्पष्ट शब्दों में इस्राईल को एक नस्लभेदी सरकार कहकर उसकी आलोचना की थी और घोषणा की थी कि 1998 में पारित होने वाले कानून के अनुसार फिलिस्तीनियों को दूसरे दर्जे का नागरिक समझा जायेगा। इसी मध्य पश्चिम एशिया के लिए राष्ट्रसंघ के आर्थिक और सामाजिक आयोग ने मार्च 2017 को एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी जिसमें जायोनी शासन पर फिलिस्तीनियों के साथ नस्लभेदी व्यवहार करने का आरोप लगाया था। इस आयोग के तत्कालीन राष्ट्रसंघ के महासचिव के सहायक रीमा ख़लफ ने कहा था कि यह पहली बार है जब राष्ट्रसंघ से संबंधित किसी संस्था ने खुल्लम खुल्ला इस्राईल को एक नस्लभेदी सरकार की संज्ञा दी है। संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव एन्टोनियो गुटेरस ने इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने के बाद रीमा ख़लफ से मांग की थी कि वह अपनी रिपोर्ट को वापस ले लें परंतु उन्होंने इस मांग को स्वीकार नहीं किया और अपने पद से त्याग पत्र दे दिया।

इस्राईल को जो नस्लभेदी सरकार की संज्ञा दी गयी है वह केवल ग़ैर इस्राईलियों तक सीमित नहीं है बल्कि स्वयं इस्राईल की कुछ हस्तियों और नेताओं ने भी उसे नस्लभेदी सरकार की संज्ञा दी है और फिलिस्तीनियों के खिलाफ इस्राईल की कार्यवाहियों की भर्त्सना करते हैं। इस्राईल की मेर्टज़ पार्टी के नेता ज़हावा गैलोन ने पिछले वर्ष तेलअवीव विश्व विद्यालय से संबंधित एक सुरक्षा संस्था की कांफ्रेन्स में भाषण देते हुए कहा था कि जो कुछ फिलिस्तीन की अतिग्रहित भूमियों में हो रहा है वह नस्लभेद है और इस्राईल ने दसियों लाख फिलिस्तीनियों को उनके मौलिक अधिकारों से वंचित कर दिया है।

यह बात सिद्ध हो गयी है कि इस्राईल नस्लभेदी कार्यवाहियां और मानवता विरोधी अपराध कर रहा है फिर भी क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यहूदी  देश कानून को लागू होने से रोकने के लिए जायोनी शासन पर दबाव नहीं डाला गया। शायद इसकी वजह यह है कि विश्व समुदाय इस परिणाम पर पहुंच गया है कि इस्राईल को  यूरोपीय और पश्चिमी देशों विशेषकर अमेरिका का व्यापक समर्थन प्राप्त है और इसी समर्थन की छत्रछाया में वह फिलिस्तीनियों के खिलाफ अपराधों को जारी रखे हुए है और उसे अंतरराष्ट्रीय कानूनों की किसी प्रकार की कोई चिंता नहीं है।

 

टैग्स