Nov २९, २०२० १७:२४ Asia/Kolkata
  • भविष्य में अगर मानव को खाद्य संकट का सामना होता है तो फिर उसका अर्थ यह है कि जल संकट की समस्या गंभीर है

मानव जाति के खाने-पीने की वस्तुओं को उपलब्ध कराना, उन महत्वपूर्ण कारकों में से है जो संसार के विभिन्न क्षेत्रों में पानी को लेकर तनाव का कारण बन सकता है एसे में इस विषय का राजनीतिकरण हो सकता है।

सच्चाई यह है कि पानी के विषय में सारी जटिलता इसलिए है कि पानी की उपलब्धता तो प्रकृति करती है लेकिन उसका इस्तेमाल हम इन्सान करते हैं।  जल की उपलब्धता विश्व में हर जगह समान रूप से नहीं है।  इसी तरह पानी का प्रयोग भी हर जगह पर सही तरीके से नहीं किया जाता। इस आधार पर जल के संदर्भ में बनाई जाने वाली नीति को एसा होना चाहिए जिससे जलसंकट जैसी चुनौती का सामना करना संभव हो।

इतिहास के अध्ययन से पता चलता है कि सूमरी जाति ने अपने काल में सिंचाई की जटिल इन्जीनियरिंग प्रणाली विकसित करके कृषि उत्पादों में वृद्धि करने में सफलता हासिल की थी।  यह बात चार शताब्दी ईसापूर्व से संबन्धित है।  कृषि उत्पादों में वृद्धि के कारण ही सूमरी जाति की जनसंख्या में भारी वृद्धि हुई।  हालांकि कृषि भूमि की उपज में कमी के कारण सूमरी जाति धीरे-धीरे विलुप्त होती चली गई।  वहां पर कृषि भूमि में उपज कम होने के कारण गेहूं की पैदावार में बहुत कमी हो गई और यही विषय, सूमरी सभ्यता की समाप्ति का कारण बना।  इसी प्रकार की घटना माया जाति के साथ भी हुई।  माया सभ्यता का विकास, वर्तमान ग्वाटेमाला में 250 वर्ष ईसापूर्व हुआ था।  माया सभ्यता में खाद्य पदार्थों की कमी, गृह युद्ध का कारण बनी और इसके परिणाम में 900 वर्ष ईसापूर्व, माया सभ्यता का भी विनाश हो गया।

वर्तमान काल में मनुष्य ने ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति करके किसी सीमा तक अपनी सुविधाओं की वस्तुओं को उपलब्ध कराया है।  इस प्रगति ने मनुष्य को जीवन के प्रति आशा बधाई है।  इस बात के दृष्टिगत जनसंख्या में भी वृद्धि हुई है।  हालांकि यह बात भी जानना ज़रूरी है कि अधिक जनसंख्या को अधिक भोजन चाहिए होगा।  अधिक जनसंख्या के कारण विश्व में हर दिन अब अधिक भूमि पर खेतीबाड़ी की जा रही है।  जैसे-जैसे कृषि की भूमि बढ़ रही है वैसे-वैसे पानी की आवश्यकता में भी वृद्धि हो रही है। एसे में दिन प्रतिदिन पानी की कमी और फसल पैदा करने वाली ज़मीन की कमी बढ़ती जा रही है।  इस मुद्दे ने विश्व में कड़ी प्रतिस्पर्धा को जन्म दिया है।  इस प्रतिस्पर्धा से देशों के बीच नए प्रकार के आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक संकट जन्म ले रहे हैं।  जानकारों का कहना है कि जिस प्रकार से 20वीं शताब्दी में तेल, बहुत से युद्धों का कारण रहा है ठीक उसी प्रकार से आने वाले समय में अब पानी के मुद्दे पर युद्ध होंगे।

कुछ भविष्यवाणियों में यह भी कहा गया है कि अगले तीन दशकों में पूरी धरती पर जलवायु में मूलरूप में परिवर्तन होगा।  अनुमानों के हिसाब से भूमध्यरेखा से क़रीब क्षेत्र अधिक वर्षा के कारण अधिक जल के स्वामी होंगे जबकि वे देश जहां पर पहले से ही जल संकट पाया जाता है उनके लिए गंभीर चुनौतियां सामने आएंगी।  कहा जा रहा है कि मध्यपूर्व, इन चुनौतियाों का केन्द्र बिंदु हो सकता है।  अब वे देश जो दुनिया की औसत वर्षा के एक तिहाई भाग के स्वामी हैं, उनके यहां इस अनुपात में वाष्पीकरण भी होगा।  हालांकि पिछली शताब्दी में तेल के साथ ही मध्यपूर्व में किसी सीमा तक खाद्य उत्पादन के शून्य को भरा गया है किंतु तेल के मूल्यों में वृद्धि के कारण इन क्षेत्रों को भी खाद्य संकट का सामना करना होगा।

वर्तमान समय में खाद्य पदार्थों की आपूर्ति का विषय, संसार के सबसे महत्वपूर्ण मुद्दे में परिवर्तित हो चुका है।  एसे में खाद्य सुरक्षा का महत्व बहुत बढ़ गया है।  खाद्य सुरक्षा के लिए तीन बातों का होना ज़रूरी है।  खाद्य वस्तुओं का होना, खाद्य पदार्थों तक पहुंच और खाद्य पदार्थों की प्राप्ति में रुकवाटों का न होना।  वर्तमान समय में तथाकथित विकसित और विकासशील देश, कृषि को विकसित करने तथा अपने और अपने सहयोगियों की खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से एक स्थाई मानदंड बनाने के लिए कम पानी की खपत के पैटर्न पर काम कर रहे हैं। इन देशों ने कृषि योग्य भूमि और पानी तक सरल पहुंच के उद्देश्य से दूसरे देशों से कृषि भूमि ख़रीदने की ओर रुख़ किया है।

इस समय अपनी सत्ता को बनाए रखने, लोगों को संतुष्ट रखने और अपनी संप्रभुता की सुरक्षा के लिए खाद्य सुरक्षा एक मूल मंत्र बन चुका है।  खाद्य सुरक्षा का मूल सिद्धांत यह है कि इस बात को सुनिश्चित बनाया जाए कि समाज का हर वर्ग इससे लाभान्वित हो चाहे उसका संबन्धि किसी से भी हो।  वर्तमान समय में वैश्विक व्यापार अब उस चरण में पहुंच चुका है जहां पर विकसित देश अपने उत्पादन को बढ़ाने की जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं और साथ ही वर्चुअल वाटर का प्रयोग करते हुए इसके विस्तार के बारे में काम कर रहे हैं।  उदाहरण के लिए ब्राज़ील और अर्जनटाइना वे देश हैं जो इस प्रकार की शैली को अपनाए हुए हैं और इस शैली से पैदा होने वाली फसलों के लिए ग्राहको की तलाश में हैं।

 

आधुनिक अर्थव्यवस्था में खेती की आउटसोर्सिंग नाम की एक प्रक्रिया आरंभ हुई है जिसे कुछ लोग अविवादित हरा उपनिवेश भी कह रहे हैं।  इसका अर्थ होता है दूसरे देशों में कृषि करके पैदावार को वहां से आयात करना।  कहते हैं कि अलौकिक खेती, किसी देश के लिए कृषि उत्पाद और खाद्य सुरक्षा की समृद्धि को आधार प्रदान करती है।  इसके अन्तर्गत जो देश अपने यहां उपजाऊ ज़मीन और पानी के संकट से जूझ रहे हैं वे दूसरे देशों में खेती की ज़मीन किराए पर लेकर अपनी ज़रूरत की फ़सले पैदा कर सकते हैं।  हालांकि इस खेती के मुद्दे पर बहुत गंभीरता से विचार-विमर्श किया जाना चाहिए ताकि इससे संबन्धित किसी भी पक्ष को किसी प्रकार की क्षति न होने पाए।

सिंचाई के लिए भूमिगत स्रोतों से उपयोग किये जाने वाले पानी को "जीडब्लूडी" का नाम दिया गया है।  लंदन और कोलंबिया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने सन 2000 से 2010 तक कृषि उत्पादों के अन्तर्राष्ट्रीय निर्यात एवं आयात में "जीडब्लूडी" की मात्रा का तुल्नात्मक अध्ययन किया था।  इस अध्ययन से पता चला कि दस वर्षों में विश्व में "जीडब्लूडी" सिंचाई प्रणाली में 22 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।  भूमिगत स्रोतों से सिंचाई करके जिन देशों में फसलें पैदा की गईं वे थे अमरीका, चीन, भारत, मैक्सिको और पाकिस्तान।  यह वे देश हैं जहां पर संसार की आबादी का अधिकांश भाग रहता है।  यह वे देश हैं जो भूजल संसाधनों पर अधिक निर्भर हैं।

इन देशों में भूमिगत जल स्रोतों से कृषि में लाभ उठाया जा रहा है।  जीडब्लूडी में सबसे बड़ा भाग गेहूं का है जिसके बाद चावल, गन्ना, मकई और कपास का नंबर आता है।  जीडब्लूडी के हिसाब से विभिन्न उत्पादों के लिए प्रयोग किये जाने वाले जल की मात्रा अलग-अलग होती है।  जीडब्लूडी के अन्तर्गत सामान्यतः एक किलो गेहूं के लिए 812, चावल के लिए 199 तथा मकई के लिए 72 लीटर पानी की आवश्यकता होती है।/ 

"जीडब्लूडी" सिंचाई प्रणाली से पैदा किये जाने वाले उत्पादों का चीन सबसे बड़ा आयातकर्ता है।  चीन के बाद अमरीका, ईरान, मैक्सिको और जापान का नंबर आता है।  इस सिंचाई प्रणाली  से पैदा किये जाने वाले उत्पादों के मुख्य आयातकर्ता, मध्यपूर्व के 5 देश हैं इसीलिए इन देशों की एसे कृषि उत्पादों पर निर्भरता बहुत अधिक है।  जानकारों का कहना है कि वे देश जो इस सिंचाई प्रणाली के उत्पादों का निर्यात करते हैं उनको कुछ समय के लिए तो इससे लाभ हासिल हो सकता है किंतु उनका यह लाभ स्थाई नहीं होगा और साथ ही उनकी खाद्य सुरक्षा ख़तरे में रहेगी विशेषकर उन देशों में जिनके यहां पानी की कमी पाई जाती है।

बहुत से जानकारों ने वर्तमान समय में कृषि उत्पादों और उनके अनुचित प्रयोग की गहन समीक्षा की है उनका मानना है कि वर्तमान जलसंकट, एसा संकट है जिसका संबन्ध सरकारों से है।  एसे में जलसंकट को नियंत्रित करने के लिए सरकारों और समाजों के बीच समन्वय की आवश्यकता है।  इस स्थिति में सरकारों को चाहिए कि वे खाद्य उत्पादन और उससे संबन्धित उद्योगों की निगरानी के साथ ही साथ ऊर्जा तथा जल-संसाधनों के कम से कम प्रयोग को प्राथमिकता दें।

एसे में आशा की जा सकती है कि खाद्य संकट के मुद्दे के समाधान के साथ ही जलसंकट की समस्या को भी नियंत्रित किया जा सकता है। पानी के सही प्रयोग के लिए एक सटीक कार्यक्रम की ज़रूरत होती है जिसके तहत पानी का इस्तेमाल करने वाले सभी लोगों को पानी के महत्व से पूरी तरह अवगत कराना चाहिए।  इस पूरी प्रक्रिया में केवल व्यवहारिक मार्गों पर ही ध्यान दिया जाना चाहिए और महत्वाकांक्षी एवं काल्पनिक समाधानों से बचना चाहिए।  इस संबन्ध में सही तरीका यह है कि समाज के लिए पानी की उपयोगिता को साधारण और सादे रूप में बताते हुए उससे लोगों को अवगत कराया जाए।

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