Aug २४, २०२२ १६:२४ Asia/Kolkata
  • इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की शहादत, दुआ के ज़रिए इस्लाम के संदेश को दुनिया तक पहुंचाया

एक रिवायत के मुताबिक़, 25 मोहर्रम का दिन पैग़म्बरे इस्लाम (स) के प्राणप्रिय नवासे हज़रत इमाम हुसैन (अ) के बेटे और शिया मुसलमानों के चौथे इमाम, अली इब्ने हुसैन इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की शहादत का दिन है।  

ऐसे समय में कि जब रोटी और अज्ञानता ने लोगों को उलझा रखा था और इस्लाम की शिक्षाओं में बदलाव किया जा रहा था, पैग़म्बरे इस्लाम (स) के परिजनों में से एक व्यक्ति उठा और उसने दुआ के सुन्दर शब्दों में इस्लाम की अद्वितीय शिक्षाओं एवं नैतिक सिद्धांतों को दुनिया के सामने पेश किया। ऐसा समय कि जब कर्बला में अमानवीय अपराधों के बाद बनी उमय्या ने समाज के वातावरण को संदेहपूर्ण एवं ज़हरीले प्रचारों से दूषित कर रखा था, इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने उच्च मानवीय व्यवहार एवं अर्थपूर्ण दुआओं द्वारा अपनी महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी को अदा किया। ऐसे ज़हरीले वातावरण में अनैतिकता एवं भ्रष्टाचार अपने चरम पर थे, इसीलिए इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ) ने लोगों का नैतिक प्रशिक्षण किया और उन्हें शुद्ध धार्मिक सिद्धांतों की शिक्षा दी।

इमाम अली इब्ने हुसैन (अ) के कई उपनाम थे जिनमें सज्जाद, सय्यादुस्साजेदीन और ज़ैनुल आबेदीन प्रमुख हैं। उनकी इमामत का काल कर्बला की घटना और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद शुरू हुआ। इस काल की ध्यानयोग्य विशेषताएं हैं। इमाम सज्जाद ने इस काल में अत्यंत अहम और निर्णायक भूमिका निभाई। कर्बला की हृद्यविदारक घटना के समय उनकी उम्र 24 साल थी और इस घटना के बाद वे 34 साल तक जीवित रहे। इस अवधि में उन्होंने इस्लामी समाज के नेतृत्व की ज़िम्मेदारी संभाली और विभिन्न मार्गों से अत्याचार व अज्ञानता के प्रतीकों से मुक़ाबला किया। इस मुक़ाबले के दौरान इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के बारे में जो बात सबसे अधिक स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है वह कर्बला के आंदोलन की याद को जीवित रखना और इस अमर घटना के संदेश को दुनिया तक पहुंचाना है। इमाम ज़ैनुल आबेदीन को वर्ष 95 हिजरी में 25 मुहर्रम को उमवी शासक वलीद इब्ने अब्दुल मलिक के आदेश पर एक षड्यंत्र द्वारा ज़हर देकर शहीद कर दिया गया था।

उल्लेखनीय है कि इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ) कर्बला के संघर्ष में शहीद नहीं हुए थे। इसलिए कि वे उस समय बीमार थे। कर्बला में बीमारी के कारण वे अत्यधिक कमज़ोर हो चुके थे, यहां तक कि दुश्मनों को लग रहा था कि आपकी प्राकृतिक मौत निकट है और आपको शहीद करने की कोई ज़रूरत नहीं है। हालांकि इमाम सज्जाद की यह स्थिति ईश्वरीय योजना के अनुसार थी, ताकि धरती ईश्वरीय दूत से ख़ाली न रहे और दुनिया ईश्वरीय दूत के प्रकाश से प्रकाशमय रहे। (RZ)

 इमाम ज़ैनुल आबेदीन की शहादत के अत्यंत दुखद मौक़ पर हम आप सबकी सेवा में हार्दिक संवेदना प्रकट करते हैं।

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