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मार्गदर्शन

Jan ०१, २०१७ १६:४१ Asia/Kolkata
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  • मार्ग दर्शन- 18
    पवित्र कुरआन ऐसा महासागर है जिसकी गहराइयों में मूल्यवान रत्नों के खज़ाने हैं। ये खज़ाने वही ज्ञान हैं जो पवित्र कुरआन की आयतों और उसके सूरों में नीहित हैं और इंसान इन्हीं खजानों को निकाल कर ज्ञान अर्जित करने की राह में कदम रखता है और पवित्र कुरआन की तिलावत इस दिशा का आरंभिक बिन्दु है।
  • मार्गदर्शन-17
    पवित्र क़ुरआन ईश्वर की ओर से इंसान को सबसे मूल्यवान तोहफ़ा व बेजोड़ रत्न है।
  • मार्गदर्शन-16
    हमने लोगों के शिक्षण-प्रशिक्षण के संबंध में ईश्वरीय पैग़म्बरों के अथक प्रयासों के बारे में बात की थी और बताया था कि अत्यचार न करना, न्याय से काम लेना, सच्चाई, भलाई और इस प्रकार के सभी शिष्टाचारिक कर्म, ईश्वरीय पैग़म्बरों की मार्गदर्शक शिक्षाओं में शामिल हैं लेकिन वर्तमान समय के बहुत से लोग पैग़म्बरों के संदेश से काफ़ी दूर हो चुके हैं और उनकी शिक्षाओं की अनदेखी करते हैं।
  • मार्गदर्शन -15
    हमने उल्लेख किया था कि बुद्धि इंसान के लिए ईश्वर की सबसे बड़ी अनुकंपा है और ईश्वर को पहचानने का सबसे महत्वपूर्ण माध्यम है।
  • मार्गदर्शन-14
    ईश्वर की ओर से इंसान को दी गयी बड़ी अनुकंपाओं व नेमतों में से एक बुद्धि और बुद्धि से प्राप्त समझ है।
  • मार्गदर्शन-13
    महान ईश्वर ने पवित्र कुरआन की कुछ आयतों में मोमिनों से बहुत से वादे किये हैं।
  • मार्गदर्शन -12
    क़ुराने मजीद के सूरए आले इमरान की 135वीं और 136वीं आयतों में तौबा के बारे में उल्लेख किया गया है कि जो लोग महा पाप करते हैं या छोटे पापों से अपने ऊपर अत्याचार करते हैं, उन्हें ईश्वर को याद करना चाहिए और अपने पापों को लिए माफ़ी मांगनी चाहिए, कौन है ईश्वर के अलावा पापों को क्षमा करने वाला, जो कुछ उन्होंने किया है, हालांकि वे जानते हैं कि यह सही नहीं है, लेकिन वे अपने गुनाहों पर आग्रह नहीं करते, उन्हें क्षमा कर दिया जाएगा और ईश्वर उन्हें स्वर्ग प्रदान करेगा, जिसमें नहरें जारी होंगी, वे सदैव उसमें र
  • मार्गदर्शन-11
    इंसान का ईश्वर से दूर हो जाना एसा ही है जैसे कोई बूंद समुद्र से अलग हो जाए।
  • मार्गदर्शन-10
    हमने तक़वा अर्थात ईश्वरीय भय के बारे में वरिष्ठ नेता के दृष्टिकोणों को बयान किया और उसे महान ईश्वर से प्रेम और उसके सामिप्य की भूमिका बताया।
  • मार्गदर्शन -9
    दुआ चाहे किसी भी भाषा में की जाए, इसका मतलब है ईश्वर को पुकारना।
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