Jul ०२, २०२२ १८:३७ Asia/Kolkata
  • भारत में नफ़रती बयानों की बाढ़, कार्यवाही एकतरफ़ा! क्या वोट की लालच में देश की नींव को चोट पहुंचा रहे हैं नक़ली राष्ट्रवादी?

भारत एक ऐसा सुंदर और महान देश है जहां एक ही गुलदस्ते में अलग-अलग धर्मों के विभिन्न रंगों के फूल हमेशा से खिलते चले आ रहे हैं। यह स्वाभाविक है कि कभी-कभी मौसमों की तेज़ी और नर्मी की वजह से इन फूलों को नुक़सान पहुंचता रहा है लेकिन कभी इन फूलों का अस्तित्व ख़तरे में नहीं पड़ा। पत्तियां गिर गईं पर जड़े हमेशा की तरह मज़बूत बनी रही, लेकिन इधर कुछ बरसों से तथाकथित राष्ट्रवादी इस पूरे गुलदस्ते को ही तबाह करने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं।

पिछले 4-5 वर्षों से नफ़रती बयानबाज़ी की बाढ़ आई हुई है। पीले कपड़े पहने, हाथ में तलवार और त्रिशूल लिए लोग टी वी के स्क्रीन पर और सार्वजनिक स्थानों में, अल्पसंख्यकों के क़त्ले आम और अल्पसंख्यक महिलाओं के साथ बलात्कार की बातें बड़े सहज रूप से कर रहे हैं। आशचर्य की बात यह है कि केंद्र से लेकर राज्य सरकारों तक सब ऐसे नफ़रती लोगों की बातों को अनसुनी कर रहे हैं। इन्हीं सरकारों में से एक सरकार के एक मंत्री पर 2 साल से नफ़रत भरे नारे लगाने के जुर्म मे मुक़द्दमा दर्ज करने की कोशिश की जा रही है लेकिन निचे से लेकर उच्च न्यायालय तक इसकी मंज़ूरी नहीं दे रहे हैं क्योंकि इसकी अनुमति सरकार ने नहीं दी है। पिछले माह, भाजपा की अधिकृत प्रवक्ता, नूपुर शर्मा, ने एक राष्ट्रीय टी वी चैनल पर पैग़म्बरे इस्लाम (स) पर आपत्तीजनक टिप्पणी की, लेकिन इसपर भी भारतीय जनता पार्टी और इस पार्टी की सरकारें दोनों ख़ामोश रहे। इसकी वजह भी साफ़ थी, क्योंकि नूपुर शर्मा पहली बीजेपी या उससे जुड़े संगठनों की नेता नहीं थी कि जिसने मुसलमानों और मुसलमानों की महान हस्तियों के ख़िलाफ़ कुछ अपमानजनक बात बोली हो। लेकिन जब नूपुर शर्मा की अपमानजनक टिप्पणी के ख़िलाफ़ इस्लामी देशों की सरकारों ने घोर आपत्ति जताई और सरकार को माफी मांगने और प्रवक्ता को दल से निलंबित करने पर मजबूर किया तब जाकर बीजेपी ने नूपुर शर्मा को पार्टी से निष्कासित कर दिया। लेकिन इसके बावजूद नूपुर शर्मा को न गिरफ़्तार किया गया और न ही उन्हें कोई सज़ा मिली। लेकिन हां उनके बयान को लोगों तक पहुंचाने वाले पत्रकार ज़ुबैर अहमद को ज़रूर गिरफ़्तार कर लिया गया।

नूपुर शर्मा का पक्ष लेने वाले अब कह रहे हैं कि उस पर तो कार्यवाही हुई है लेकिन हिन्दूओ की भावनाओं को आहत करने वालों के ख़िलाफ़ कार्यवाही क्यों नहीं हो रही है? वहीं नूपुर शर्मा का समर्थन करते हुए भी आपको भाजपा समर्थक सड़कों पर मिल जाएंगे। लेकिन उनके ख़िलाफ़ कौन कार्यवाही करे, इसका जवाब किसी के पास नहीं है। अब जब उदयपूर की घटना हुई है, जिसका हम बिल्कुल समर्थन नहीं करते और ऐसी घटना की भरपूर निंदा करते हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि आख़िर भारत में क्या यह पहली घटना है। जिसको देखों इस घटना पर आंसू बहा रहा है। राष्ट्रवाद के नारे लगा रहा है। घटना ग़लत है, लेकिन सोचने वाली बात यह है कि आख़िर यह घटना हुई क्यों? काश दादरी, रांची और भारत के विभिन्न कोनों में अल्पसंख्यक मुसलमानों को नोच-नोच कर मारने वाले भगवाधारी भेड़िये हिन्दुओं को उसी समय सज़ा दे दी जाती तो किसी में यह साहस भी पैदा न होता कि आज वह उदयपूर के दर्ज़ी कन्हैया लाल की हत्या करता। ख़ैर अब यह भी सामने आ रहा है कि उदयपूर की घटना को अंजाम देने वाले हत्यारों का संबंध बीजेपी के बड़े बड़े नेताओं से रहा है। इन बातों ने इस घटना को भी सवालों के घेरे में ला दिया है। यह अब जांच का विषय है कि आख़िर कन्हैया लाल की हत्या की पीछे कोई बड़ी साज़िश तो नहीं है? कुल मिलाकर नफ़रत फैलाने वालों के ख़िलाफ़ सख़्त से सख़्त कार्यवाही होनी चाहिए। ऐसी कार्यवाही कि जिसके बाद कोई भी नफ़रत फैलाने के बारे में सोचने से पहले हज़ार बार सोचे। लेकिन सवाल यह है की नफ़रती लोगों के ख़िलाफ़ कार्यवाही क्यों नहीं हो रही है?  और हो भी रही है तो क्यों एकतरफ़ा कार्यवाही हो रही है? ऐसा तो नहीं कि नफ़रत फैलाने वालों के रोज़ देखे जाने वाले दंगल से आर्थिक लाभ सरकार के पक्षधर मीडिया को हो रहा है और राजनैतिक लाभ सरकार चलाने वालों का? अनसुनी आवाज़ों को सुनना होगा, बड़ी घटनाओं के पीछे छिपे अनदेखे अन्याय को खोजना होगा और बार बार दोहराई जाने वाली सच्चाई के पीछे असली तथ्य खोजने होंगे। (RZ)     

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