Jun ०३, २०२४ १९:५६ Asia/Kolkata
  • स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह. व हुकूमत करने के तरीक़े में परिवर्तन/ पश्चिम के तरीक़े से नहीं

पार्सटुडे- पश्चिम के प्राचीन फ़ल्सफ़ियों का मानना था" कि किसे हुकूमत करना चाहिये" यह महत्वपूर्ण है।

 पश्चिमी फ़ल्सफ़ी व दर्शनशास्त्री शासकों के लिए कुछ विशेषताओं को बयान करते थे और उनका मानना था कि जब शासकों में ये विशेषतायें मौजूद होंगी तो एक मानवीय प्रक्रिया तय करने के बाद वे एक आदर्श समाज गठित कर सकते हैं। अलबत्ता यह दृष्टिकोण व विचारधारा कभी व्यवहारिक नहीं हुई और पश्चिम में इस प्रकार की सरकार कभी गठित नहीं हो पायी।

 

पश्चिम के नये राजनीतिक फ़ल्सफ़ियों का भी मानना है कि यह महत्वपूर्ण है कि किस प्रकार हुकूमत की जानी चाहिये। उन्होंने यह तय करने के लिए दृष्टिकोण बनाये और पेश किये हैं कि शक्ति और सम्पत्ति कैसे उत्पन्न की जानी चाहिये और उसका वितरण कैसे किया जाना चाहिये। इस नीति के परिणाम व अंजाम को इस समय पश्चिम में देखा जा सकता है और पश्चिम के राजनीतिक फ़ल्सफ़ी उसके पतन के अंतिम चरण की सूचना दे रहे हैं।

स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह. एक राजनीतिक विचारक व महान बुद्धिजीवी थे और उनके विचारों व दृष्टिकोणों का आधार इस्लाम धर्म की विशुद्ध शिक्षायें थीं और उनका मानना है कि दोनों चीज़ों को अच्छे व वांछित तरीक़े से एक स्थान पर जमा किया जा सकता है। यानी दोनों एक जगह पर इकट्ठा हो सकती हैं। किसे हुकूमत करना चाहिये और किस तरह हुकूमत की जानी चाहिये। ईश्वरीय शिक्षाओं को आधार बनाकर इन दोनों विचार धाराओं को व्यवहारिक बनाया जा सकता है।

 

पश्चिम के प्राचीन और नये राजनीतिक फ़ल्सफ़ियों में से किसी एक ने भी इस बात का दावा नहीं किया कि उसने अपनी थ्योरी के अनुसार हुकूमत का गठन किया है और उसका दृष्टिकोण व धारणा केवल कल्पना की दुनिया में रही है मगर पूरे विश्वास से कहा जा सकता है कि स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह. इस्लामी जगत और फ़ल्सफ़े की दुनिया के पहले महान राजनीतिक फ़ल्सफ़ी थे जिन्होंने थ्योरी बनाने के अलावा उसे व्यवहारिक व अमली जामा भी बना पहना दिया और अपनी धारणा को ज़ेहन से बाहर की दुनिया में अमली कर दिया।

 

इमाम ख़ुमैनी रह. की राजनीतिक धारणा में फ़ेक़्ह और ईश्वरीय आदेश

स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह. की राजनीतिक धारणा में फ़ेक़्ह और ईश्वरीय आदेशों का एक स्थान है इस प्रकार से कि उन्होंने फ़रमाया है कि फ़ेक़्ह, पालने से लेकर क़ब्र तक इंसान के संचालन की वास्तविक थ्योरी है।

स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह. फ़ेक़्ह पर विशेषरूप से ध्यान देते थे चाहे वह हुकूमत करने का मामला रहा हो, चाहे नीति बनाने का मामला रहा हो और चाहे उसे सरल बनाने का मामला रहा हो। उनके अनुसार जिस व्यवस्था का आधार फ़ेक़्ह हो उसमें कोई बंद गली नहीं है।

स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह. ने अपने बहुत से संदेशों और भाषणों विशेषकर अपने ईश्वरीय वसीयतनामे में फ़ेक़्ह और ईश्वरीय शिक्षाओं से हटने और पश्चिमी दर्शनशास्त्रियों को आदर्श बनाकर सरकार चलाने के ख़तरे से आगाह किया है।

 

इमाम ख़ुमैनी रह. के उत्तराधिकारी इमाम ख़ामेनेई ने भी Council of Experts के छठीं बार के उद्घाटन संदेश में फ़रमाया था कि इस्लामी व्यवस्था में शासन मानवीय और ईश्वरीय उद्देश्य है। अलबत्ता इस मानवीयता का अर्थ वह नहीं है जो पश्चिमी Scholarism में है। इस मानवीयता का आधार ज्ञान है न कि आस्था और ज्ञान जैसा दूसरा फर्ज़। मिसाल के तौर पर 19वीं शताब्दी में पश्चिम में एक राजनीतिक दर्शनशास्त्री ने मार्क्सवाद शीर्षक के अंतर्गत एक धारणा पेश की और उसका दावा था कि इस धारणा का आधार ज्ञान है। इस धारणा के दो प्रतिस्पर्धी उदारवादियों और फासीवादियों का भी यही दावा था कि उसका आधार इल्म है।  

20वीं शताब्दी के अंत में और इन दावेदारों के बाद पश्चिम में बड़े राजनीतिक फ़ल्सफ़ियों व दर्शनशास्त्रियों ने एलान किया कि तीनों धारणाओं ने अज्ञानता के जंगल में मानवता को गुमराह व भटका दिया है अतः उनकी उपलब्धि को ऐसी उपलब्धि नहीं मानी जा सकती जिसका आधार ज्ञान हो।

 

ईरान में धार्मिक लोकतंत्र और संविधान की बुनियाद स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह. ने रेफ़रेन्डम के माध्यम से रखी और उसे मज़बूती प्रदान की और लोगों के मतों व वोटों से देश के अधिकारियों का चयन करके उसे व्यवहारिक बनाया और एक नई इंसानी हुकूमत की बुनियाद व आधारशिला रखी और ईरान की इस्लामी व्यवस्था वास्तव में ईश्वरीय दूतों व पैग़म्बरों के मिशन का जारी क्रम है।  

स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह. ने बड़ी बहादुरी व साहस के साथ इस ईश्वरीय आदर्श को 19वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में पेश किया और ईरानी लोगों ने बहादुरी के साथ उसका स्वागत और समर्थन किया।

 

धार्मिक लोकतंत्र यानी ज्ञान, विद्वानों, प्रतिबद्ध बुद्धिमानों, सोच- विचार रखने वालों, विभिन्न क्षेत्रों में अनुभव और दक्षता की उपस्थिति है और उच्च ईश्वरीय उद्देश्यों की ओर देश और समाज की प्रगति व विकास के लिए लोगों का चयन और न्याय को व्यवहारिक बनाना है कि जो समाज के लिए पवित्र कुरआन का एक मूल सिद्धांत व मूल मंत्र है। mm

स्रोतः अंबारलुई, मोहम्मद काज़िम, हुक्मरानी बश्री, फार्स न्यूज़

कीवर्ड्सः इमाम ख़ुमैनी कौन थे, इमाम ख़ुमैनी के विचार, इमाम ख़ुमैनी की रचनायें, इस्लाम में शासन

हमारा व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाइन करने के लिए क्लिक कीजिए

हमारा टेलीग्राम चैनल ज्वाइन कीजिए

हमारा यूट्यूब चैनल सब्सक्राइब कीजिए!

ट्वीटर पर हमें फ़ालो कीजिए 

फेसबुक पर हमारे पेज को लाइक करें। 

टैग्स