आर्मीनिया पर फिर छाने लगे युद्ध के बादल
आर्मीनिया की सरकार ने आज़रबाइजान गणराज्य पर आरोप लगाया है कि वह सैनिकों और हथियारों को सीमावर्ती क्षेत्र में स्थानांतरित कर रहा है।
सोशल मीडिया और संचार माध्यमों से पता चलता है कि आज़रबाइजान की सेना ने मंगलवार से अपने हथियारों को एक-स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाने का काम शूरू कर दिया है।
एसा लगता है कि दक्षिणी आर्मीनिया क्षेत्र में आज़रबाइजान गणराज्य की ओर से की जाने वाली सैन्य गतिविधियां बढ़ी हैं। यही कारण है कि आर्मीनिया के विदेश मंत्रालय ने इसपर प्रतिक्रिया दी है। अपनी प्रतिक्रया में उसने कहा है कि पहाड़ी क़रेबाग में रहने वाले आर्मीनियन्स के साथ आर्मीनियां का संपर्क मार्ग केवल लाचीन कारीडोर ही है जिसपर दोनो पक्षों ने सहमति जताई है। आर्मीनिया के अनुसार उसका कोई भी विकल्प नहीं है।
इस बात में कोई शक नहीं है कि इल्हाम अलीओव के अधिकारी, विदेशियों के कहने पर आर्मीनिया के विरुद्ध उत्तेजक कार्यवाहियां कर रहे हैं। हालांकि ईरवान सरकार ने बल देकर कहा है कि लाचीन मार्ग से गुज़रने के बारे में उनकी नीति में कोई भी परिवर्तन नहीं हुआ है। लग यह रहा है कि ईरवान सरकार की ओर से किये जाने वाले अन्तर्राष्ट्रीय प्रयासों के कारण इस्हाल अलीओफ की सरकार के अधिकारी परेशान हो गए हैं क्योंकि क़रेबाग़ शांति वार्ता और लाचीन कारीडोर को बंद करने का मुद्द अब संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद में जा चुका है।
इसी बीच आर्मीनिया के सैन्य विशेषज्ञों और जानकार सूत्रों ने बताया है कि अवैध ज़ायोनी शासन, पूरी गतिशीलता के साथ आज़रबाइजान गणराज्य को सशस्त्र कर रहा है। इस संदर्भ में आर्मीनिया के एक सैन्य विशेषज्ञ कैरेन होवानीसियान ने फेसबुक पर लिखा है कि पिछले एक महीने के दौरान इस्राईल के कार्गो विमान कम से कम तीन बार आज़रबाइजान गणराज्य के लिए हथियार लाए हैं। वे लिखते हैं कि इस्राईल, आज़रबाइजान गणराज्य को सशस्त्र करने में लगा हुआ है विशेषकर पिछले एक महीने के दौरान।
इन बातों और गतिविधियों से इस आशंका को बल मिलता है कि इल्हाम अलीओफ की सरकार, क्षेत्र में कोई नई सैन्य कार्यवाही करना चाहती है। इन हालात को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि आज़रबाइजान गणराज्य, आर्मीनिया से मिलने वाली सीमा पर संभवतः एक नए युद्ध की भूमिका तैयार कर रहा है। यह काम काकेशिया क्षेत्र में अस्थिरता का कारण बनेगा और साथ ही क्षेत्र के स्वतंत्र देशों पर दबाव का कारण होगा जिसमें रूस सर्वोपरि है।
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