Nov १३, २०१९ १६:३७ Asia/Kolkata
  • किस तरह शीया-सुन्नी एकता से भयभीत हो गई थी ब्रितानी दूत?

पैग़म्बरे इस्लाम के शुभ जन्म दिन का मौक़ा है तो मुसलमानों की एकता की बात करने का अच्छा अवसर है। एकता सप्ताह उस विश्व साम्रज्य से मुकाबले का एक मोर्चा है जो आर्थिक और प्रचारिक पूरी शक्ति के साथ इस्लामी जगत के खिलाफ षडयंत्र रचने और मुसलमानों में फूट डालने में लगा हुआ है। 

साम्राज्यवादी ताक़तें दो तरीक़ों से यह काम कर रही हैं। एक यह कि विश्व साम्राज्य मुसलमानों के मध्य फूट डाल रहा है और दूसरे यह है कि वह पूरी दुनिया को इस्लाम और मुसलमानों से डरा रहा है और इस्लाम और मुसलमानों की छवि ख़राब कर रहा है।

 

 

इस्लामी देशों और मध्यपूर्व के क्षेत्र में सबसे पहले ब्रिटेन ने मतभेद का बीज बोया। फ़िलिस्तीन में ज़ायोनी शासन के अवैध अस्तित्व की भूमिका ब्रिटेन ने तैयार की और पश्चिम, यूरोप और क्षेत्र के कुछ देश जायोनी शासन की विस्तारवादी कार्यवाहियों का समर्थन कर रहे हैं। 

क्षेत्र में ब्रिटेन की भूमिका के बारे में ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई कहते हैं "ब्रिटेन हमारे क्षेत्र में सदैव बुराई का स्रोत और राष्ट्रों की तबाही का कारण रहा है। ब्रिटेन ने क्षेत्र के राष्ट्रों को जो नुकसान पहुंचाया है दुनिया में कम ही इसका उदाहरण मिलेगा। उसने भारतीय उपमहाद्वीप में लोगों को एक प्रकार से आघात पहुंचाया और उन पर दबाव डाला और अफगानिस्तान में अलग प्रकार से, ईरान में एक अलग प्रकार से, इराक़ में अन्य प्रकार से और फिलिस्तीन में एक अलग तरीके से अपना शैतानी काम किया और मुसलमानों को बेघर कर दिया उन्हें उनके घरों से निकाल दिया।

मुसलमानों के मध्य फूट डालने और इस्लामोफोबिया फैलाने का ब्रिटेन का लंबा इतिहास है। वर्ष 1920 में इराक़ में होने वाली क्रांति में ब्रिटेन की भूमिका को साफ़ तौर पर देखा जा सकता है। ब्रिटेन ने जब इराक पर क़ब्ज़ा करने और उसकी सम्पत्ति लूटने का इरादा किया तो उसे इराक में शीया-सुन्नी मुसलमानों के मध्य मौजूद एकता एक बड़ी रुकावट के रूप में नज़र आई। उस समय ब्रिटेन ने अपनी जो महिला दूत इराक़ भेजी था उससे प्राप्त होने वाले पत्र से राज़ खुला कि ब्रितानी दूत किस सीमा तक मुसलमानों के मध्य एकता से भयभीत थी।

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ब्रितानी दूत ने अपने पिता के नाम पत्र में लिखा था "हमें बहुत बड़ी कठिनाई का सामना है और हमें चिंता है कि कट्टरपंथियों ने वह रास्ता अपना लिया है जिसका मुकाबला सख्त है। यह शैली वही शीया- सुन्नी एकता की शैली है यानी इस्लामी जगत में एकता।

वह लिखती हैः "रमज़ान के जश्न कभी शीया मुसलमानों की मस्जिदों में होते हैं और कभी सुन्नी मुसलमानों की मस्जिदों में होते हैं और दोनों संप्रदाय के लोग इन जश्नों में भाग लेते हैं। इसी प्रकार इन जश्नों में उन शेरों को भी पढ़ा जाता है जिसमें यह कहा गया होता है कि राजनीति धर्म से अलग नहीं है। इसी तरह इस प्रकार के जश्नों में भाषण दिए जाते हैं कि धर्म और राजनीतिक एक दूसरे से अलग नहीं हैं। इस प्रकार के समस्त जश्नों का आधार काफिरों से दुश्मनी होता है।"

इस समय भी अमेरिका, ब्रिटेन, इस्राईल और इनके द्वारा इस्लामी देशों में कठपुतली सरकारों ने बहुत अधिक समस्याएं उत्पन्न कर दीं हैं। वे मध्यपूर्व और दूसरे इस्लामी देशों में बहाबियत जैसी भ्रामक विचारधारा को बढ़ावा देकर और अलकायदा, तालेबान और दाइश जैसे ख़तरनाक आतंकवादी गुटों का गठन करके दुनिया में इस्लामोफोबिया को हवा दे रहे हैं और मुसलमानों को आतंकवादी कह रहे हैं।

वे मुसलमानों विशेषकर शीया और सुन्नी मुसलमानों के मध्य मतभेद का बीज बोने के लिए शीया-सुन्नी नाम से अलग- अलग टीवी चैनल भी खोलते हैं। जो शीया-सुन्नी मुसलमानों के मध्य मतभेद फैलाते हैं, उन्हें ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई अमेरिकी सुन्नी और ब्रितानी शीया का नाम देते हैं।

यासिर अलहबीब का टीवी प्रसारण लंदन से होता है

शीया- सुन्नी मतभेदों को हवा देने के लिए तथाकथित शीया चैनल का केन्द्र बिटेन है और वह अहले सुन्नत की महान हस्तियों का अपमान करता है। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता इस झूठे टीवी चैनल के बारे में कहते हैं” हम उस शीयत को नहीं मानते जिसके प्रचार का केन्द्र लंदन है। यह वह शीयत नहीं है जिसका प्रचार- प्रसार हमारे इमामों ने किया है। जिस शीयत की बुनियाद मतभेद फैलाने और दुश्मनों का कार्य आसान बनाने पर रखी गयी है वह शीयत नहीं है,  गुमराही है।“  आयतुल्लाह ख़ामेनई अपने एक अन्य संबोधन में कहते हैं” ब्रितानी शीया और अमेरिकी सुन्नी एक कैची के दो फल हैं और इनका लक्ष्य दोनों संप्रदायों को एक दूसरे से लड़ाना और मतभेद की आग को भड़का देना है।“

अदनान अलअरऊर शीयों पर हमले करते हैं

 

ईरान के एक बुद्धिजीवी डाक्टर रहीमपुर अज़ग़दी, आयतुल्लाह खामेनई के इस बयान की व्याख्या करते हुए कहते हैं ”ब्रितानी शीया और अमेरिकी मुसलमान वहीं हैं जो इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को देख रहे हैं किन्तु न तो जेहाद करने वाले हैं और न ही शहादत देने वाले हैं और न ही अच्छाई का आदेश देने वाले और बुराई से रोकने वाले हैं। ये आराम पसंद हैं और इन्हें दुनिया में आराम और सुख सुविधा की चीज़ें चाहिये।

यहया रहीमपुर अज़ग़दी

 

इस समय हम यह देख रहे हैं कि विश्व के साम्राज्यवादी और वर्चस्ववादी अपने अवैध व तुच्छ लक्ष्यों को हासिल करने के लिए इस्लामी एकता के मुकाबले में खड़े हो गये हैं क्योंकि इस्लामी एकता को अपने अवैध हितों के रास्ते की एक बड़ी रुकावट के रूप में देख रहे हैं।

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